Friday, April 29, 2016

जनसंपर्क में अपर संभावनाएं !



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राष्ट्रीय परिदृश्य

 1)   महिला और मंदिर प्रवेश :-

गत कुछ दिनों से महिलाओं के मंदिर प्रवेश को लेकर कुछ समूहों द्वारा विवाद का मुद्दा बनाया जा रहा है। भारत में प्राचीन काल से ही धार्मिक, आध्यात्मिक क्षेत्र में पूजा-पाठ की दृष्टि से महिला-पुरुषों की सहभागिता सहजता से रही है, यह अपनी श्रेष्ठ परम्परा है। सामान्यतः सभी मंदिरों में महिला-पुरुष भेद न रखते हुए सहजता से प्रवेश होता ही है। महिलाओं द्वारा वेदाध्ययन, पौरोहित्य के कार्य भी सहजता से संपन्न हो रहे हैं। अनुचित रुढ़ी परंपरा के कारण कुछ स्थानों पर मंदिर प्रवेश को लेकर असहमति दिखाई देती है। जहां पर यह विवाद है संबंधित बंधुओं से चर्चा हो एवं मानसिकता में परिवर्तन लाने का प्रयास हो। इस प्रकार के विषयों का राजनीतिकरण न हो एवं ऐसे संवेदनशील विषयों का समाधान संवाद, चर्चा से ही हो नहीं कि आंदोलन से। इसे भी ध्यान में रखना आवश्यक है। सामाजिक, धार्मिक क्षेत्र का नेतृत्व, मंदिर व्यवस्थापन आदि के समन्वित प्रयासों से सभी स्तर पर मानसिकता में परिवर्तन के प्रयास सामाजिक स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक है। 

    2) सुरक्षा संस्थान, देश विरोधी शक्तियों का लक्ष्य :-

गत कुछ दशकों से बार-बार सुरक्षा संस्थानों को लक्ष्य बनाकर किए गए हमले देश की सुरक्षा व्यवस्था के सामने एक आह्वान है। सुरक्षा बल के जवानों द्वारा पूरे साहस के साथ संघर्ष करते हुए देश विरोधी शक्तियों के प्रयासों को विफल करने में अच्छी सफलता पायी है। अभी-अभी पठानकोट स्थित वायुसेना के मुख्य शिविर पर किया गया आक्रमण तजा उदाहरण है। इस प्रकार के घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इस दृष्टि से सुरक्षा व्यवस्थाओं को अधिक सक्षम बनाने की आवश्यकता है। सुरक्षाबलों की कार्यक्षमता, साधन एवं नियुक्त अधिकारियों की समुचित समीक्षा करते हुए आवश्यक सुधारों पर भी अधिक ध्यान देना होगा। सीमाओं से अवैध नागरिकों का प्रवेश, होनेवाली तस्करी तथा पाक प्रेरित आतंकवादी तत्वों के गतिविधियों की और अधिक कड़ी निगरानी आवश्यक है। इस दृष्टि से समय-समय पर सीमावर्ती क्षेत्र का विकास, सीमा सुरक्षा एवं सुरक्षा संसाधनों की ढांचागत व्यवस्थाओं की समीक्षा भी आवश्यक है। ऐसा लगता है कि भारत के संदर्भ में पाकिस्तान की नीति चयनीत सरकार नहीं तो वहां की सेना तय करती है। मुंबई में हुए हमले से लेकर पठानकोट की घटना इस बात की पुष्टि करती है। आज सारा विश्व समूह बढ़ती आतंकवादी घटनाओं से चिंतित है।

 3) देश में बढ़ता साम्प्रदायिक उन्माद :-


देश में विभिन्न स्थानों पर घटित हिंसक उग्र घटनायें, देशभक्त, शांतिप्रिय जन एवं कानून व्यवस्था के सम्मुख गंभीर संकट का रूप ले रही हैं। छोटी-मोटी घटनाओं को कारण बनाकर शस्त्र सहित विशाल समूह में सड़कों पर उतरकर भय-तनाव का वातावरण निर्माण किए जाने की मालदा जैसी घटनाएं विविध स्थानों पर गत कुछ दिनों में हुई हैं। सार्वजनिक तथा निजी संपत्ति का नुकसान, कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ाकर पुलिस दल पर हमले की घटनाएं और विशेषतः हिन्दू बंधुओं के व्यावसायिक केन्द्र, सभी लूटपाट-आगजनी के भक्ष बनते हैं। राजनीतिक दलों ने तुष्टिकरण की नीति छोड़कर ऐसी घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए, कानून-प्रशासन व्यवस्था को शांति बनाई रखने में सहयोगी बनने की आवश्यकता है। यह तभी संभव है जब राजनीतिक दल, सत्ता दल संकुचित ओछी राजनीति से मुक्त होकर सामूहिक प्रयास करेंगे। देश की सुरक्षा से महत्वपूर्ण कोई राजनीतिक दल अथवा कोई व्यक्ति नहीं हो सकता। प्रशासनों का कर्तव्य है कि कानून एवं व्यवस्था बनाए रखे और सुरक्षा की दृष्टि से देशवासियों को आश्वस्त करें।

 4) विश्वविद्यालय परिसर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के केन्द्र :-


विगत कुछ महिनों से, देश के कुछ विश्वविद्यालयों में, अराष्ट्रीय और देश विघातक गतिविधियों के जो समाचार मिल रहे हैं वे चिंताजनक हैं। देश के प्रतिष्ठित एवं प्रमुख विश्वविद्यालयों से तो यह अपेक्षा थी कि वे देश की एकता, अखण्डता की शिक्षा देकर देशभक्त नागरिकों का निर्माण करेंगे, किन्तु जब वहां पर देश को तोड़नेवाले और देश की बर्बादी का आवाहन देनेवाले नारे लगते हैं तब देशभक्त लोगों का चिंतित होना स्वाभाविक है। यह चिन्ता तब और भी बढ़ जाती है जब यह देखने को मिलता है कि कुछ राजनीतिक दल ऐसे देशद्रोही तत्वों के समर्थन में खड़े दिखाई देते हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है कि देश को तोड़नेवाले और देश को बर्बाद करनेवाले नारे लगाए जाए तथा देश की संसद को उड़ाने की साजिश करनेवाले अपराधियों को शहीद का दर्जा देकर सम्मानित किया जाए। ऐसे कृत्य करनेवालों का देश के संविधान, न्यायालय तथा देश की संसद आदि में कोई विश्वास नहीं है। इन देश विघातक शक्तियों ने लम्बे समय से इन विश्वविद्यालयों को अपनी गतिविधियों का केन्द्र बनाकर रखा है। संतोष की बात यह भी है कि जैसे ही इन गतिविधियों के बारे में समाचार सार्वजनिक हुए देश में सर्वदूर इसका व्यापक विरोध हुआ है। केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों से यह अपेक्षा है कि ऐसे राष्ट्र, समाज विरोधी तत्वों के साथ कठोरता से कारवाई करते हुए कोई भी शैक्षिक संस्थान राजनीतिक गतिविधि के केन्द्र न बने और उनमें पवित्रता, संस्कारक्षम वातावरण बना रहे यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। सामाजिक वातावरण प्रदूषित करनेवाली उपरोक्त घटनाओं से समाज जीवन प्रभावित होता है। 
गत वर्ष राजनीतिक क्षेत्र में आए परिवर्तन से जन सामान्य और भारत के बाहर अन्य देशों में रह रहे भारतवासी संतोष और गर्व का अनुभव कर रहे हैं। भारत बाहरी देशों में विविध स्थानों पर आयोजित भारत मूल समूहों के सम्मेलनों से यही मनोभाव प्रकट हुआ है। वैश्विक स्तर पर बहुसंख्य देशों द्वारा ‘‘योग दिन’’ की स्वीकार्यता भारतीय आध्यात्मिक चिंतन एवं जीवन शैली की स्वीकार्यता ही प्रकट करती है। स्वाभाविक रूप से सभी देशवासियों की अपेक्षाएं बढ़ी है। एकता का वातावरण बना हुआ है। अतः सत्ता संचालक उस विश्वास को बनाए रखने की दिशा में उचित हो रही पहल अधिक प्रभावी एवं गतिमान करें, यही अपेक्षा है।
राष्ट्रीय विचारधारा को प्राप्त हो रही स्वीकृति से अराष्ट्रीय, असामाजिक तत्वों की अस्वस्थता गत कुछ दिनों में घटित घटनाओं से प्रकट हो रही है। भाग्यनगर (हैदराबाद) विश्वविद्यालय और जे.एन.यू. परिसर में नियोजित देशविरोधी घटनाओं ने इन षड्यंत्रकारी तत्वों को ही उजागर किया है। गुजरात, हरियाणा राज्यों में आरक्षण की मांग को लेकर किया गया हिंसक आंदोलन समस्त प्रशासन व्यवस्था के सम्मुख चुनौतियों के रूप में खड़ा होता ही है परंतु सामाजिक सौहार्द्र और विश्वास में भी दरार निर्माण करता है। सामाजिक जीवन निश्चित ही ऐसी घटनाओं से प्रभावित होता है। यह सबके लिए गंभीर चिंता का विषय है। किसी के साथ किसी भी प्रकार का अन्याय, अत्याचार न हो लेकिन योजनापूर्वक देश विरोधी गतिविधि चलानेवाले व्यक्ति एवं संस्थाओं के प्रति समाज सजग हो और प्रशासन कठोर कार्रवाई करें। ऐसी विभिन्न समस्याओं का समाधान सुसंगठित समाज में ही है। अपने विभिन्न कार्यक्रमों में बढ़ती सहभागिता, शाखाओं में निरंतर हो रही वृद्धि यह हम सभी के लिए समाधान का विषय है। आज सर्वत्र अनुकूलता अनुभव कर रहे हैं। सुनियोजित प्रयास और परिश्रमपूर्वक, व्याप्त अनुकूलता को कार्यरूप में परिवर्तित किया जा सकता है। एक दृढ़ संकल्प लेकर हम बढ़ेंगे तो आनेवाला समय अपना है, यह विश्वास ही अपनी शक्ति है।

                              विजय इच्छा चिर सनातन नित्य अभिनव
                             आज की शत व्याधियों का श्रेष्ठतम उपचार है,
                             चिर विजय की कामना ही राष्ट्र का आधार है।।

दैनन्दिन जीवन में समरसतापूर्ण व्यवहार करें

भारत एक प्राचीन राष्ट्र है और इसकी चिन्तन परम्परा भी अति प्राचीन है। हमारी अनुभूत मान्यता है कि चराचर सृष्टि का निर्माण एक ही तत्व से हुआ है और प्राणिमात्र में उसी तत्व का वास है। सभी मनुष्य समान हैं, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य में वही ईश्वरीय तत्व समान रूप से व्याप्त है। इस सत्य को ऋषियों, मुनियों, गुरुओं, संतगणों तथा समाज सुधारकों ने अपने अनुभव एवं आचरण के आधार पर पुष्ट किया है।
जब-जब इस श्रेष्ठ चिन्तन के आधार पर हमारी सामाजिक व्यवस्थाएँ तथा दैनन्दिन आचरण बना रहा तब-तब भारत एकात्म, समृद्ध और अजेय राष्ट्र रहा। जब इस श्रेष्ठ जीवन दर्शन का हमारे व्यवहार में क्षरण हुआ, तब समाज का पतन हुआ, जाति के आधार पर ऊँच-नीच की भावना बढ़ी तथा अस्पृश्यता जैसी अमानवीय कुप्रथा का निर्माण हुआ।
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने दैनन्दिन जीवन में व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा सामाजिक स्तर पर अपने इस सनातन और शाश्वत जीवन दर्शन के अनुरूप समरसतापूर्ण आचरण करना चाहिए। ऐसे आचरण से ही समाज से जाति भेद, अस्पृश्यता तथा परस्पर अविश्वास का वातावरण समाप्त होगा एवं तभी हम सब शोषणमुक्त, एकात्म और समरस जीवन का अनुभव कर सकेंगे।
राष्ट्र की शक्ति समाज में और समाज की शक्ति एकात्मता, समरसता का भाव व आचरण और बंधुत्व में ही निहित है। इसका निर्माण करने का सामर्थ्य अपने सनातन दर्शन में है। ‘‘आत्मवत् सर्व भूतेषु’’ (सभी प्राणियों को अपने समान मानना) ‘‘अद्वेष्टा सर्वभूतानां’’ (सभी प्राणियों के साथ द्वेषरहित रहना) तथा एक नूर ते सब जग उपज्या, कौण भले, कौ मन्दे’ (एक तेज से पूरे जग का निर्माण हुआ तो कौन बड़ा और कौन छोटा) के अनुसार सबके साथ आत्मीयता, सम्मान एवं समता का व्यवहार होना चाहिए। समाज जीवन सें भेदभाव पूर्ण व्यवहार तथा अस्पृश्यता जैसी कुप्रथा जड़ मूल से समाप्त होनी चाहिए। समाज जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए समाज की सभी धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं को इसी दिशा में कार्यरत होना चाहिए, यह महती आवश्यकता है।
सनातन काल से समाज जीवन की आदर्श स्थिति का समग्र विचार राष्ट्र के सामने रखते समय अनेक महापुरूषों एवं समाज सुधारको ने समतायुक्त व शोषणमुक्त समाज निर्मिति के लिए व्यक्तिगत तथा सामूहिक आचरण में देश, काल, परिस्थिति सुसंगत परिवर्तन लाने पर बल दिया है। उनका जीवन, जीवनदर्शन और कार्य समाज के लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत रहा है।

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा सभी पूज्य संतों, प्रवचनकारों, विद्वज्जनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से विनम्र अनुरोध करती है कि इस हेतु समाज प्रबोधन में वे भी अपना सक्रिय योगदान दें। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा स्वयंसेवकों सहित सभी नागरिकों से समरसता के अनुरूप व्यवहार करने का तथा सभी धार्मिक एवं सामाजिक संगठनों से समरसता का भाव सुदृढ़ करने के हर संभव प्रयास करने का आग्रह करती है।

गुणवत्तापूर्ण एवं सस्ती शिक्षा सबको सुलभ हो

किसी भी राष्ट्र समाज के सर्वांगीण विकास में शिक्षा एक अनिवार्य साधन है, जिसके संपोषण, संवर्द्धन संरक्षण का दायित्व समाज सरकार दोनों का है। शिक्षा छात्र के अन्दर बीजरूप में स्थित गुणों संभावनाओं को उभारते हुए उसके व्यक्तित्व के समग्र विकास का साधन है। एक लोक कल्याणकारी राज्य में शासन का यह मूलभूत दायित्व है कि वह प्रत्येक नागरिक को रोटी, कपड़ा, मकान और रोजगार के साथ-साथ शिक्षा चिकित्सा की उपलब्धता सुनिश्चित करे।
भारत सर्वाधिक युवाओं का देश है। इस युवा की अभिरूचि, योग्यता क्षमता के अनुसार उसे उचित शिक्षा के निर्बाध अवसर उपलब्ध कराकर देश के वैज्ञानिक, तकनीकी, आर्थिक सामाजिक विकास में सहभागी बनाना समाज एवं सरकार का दायित्व है। आज सभी अभिभावक अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना चाहते हैं। जहाँ शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है वहाँ उन सबके लिए सस्ती गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पाना दुर्लभ हो गया है। विगत वर्षों में सरकार द्वारा शिक्षा में अपर्याप्त आवंटन और नीतियों में शिक्षा को प्राथमिकता के अभाव के कारण लाभ के उद्देश्य से काम करने वाली संस्थाओं को खुला क्षेत्र मिल गया है। आज गरीब छात्र समुचित गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। परिणामस्वरूप समाज में बढ़ती आर्थिक विषमता समूचे राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है।
वर्तमान शैक्षिक परिदृश्य में सरकार को पर्याप्त संसाधनों की उपलब्धता तथा उचित नीतियों के निर्धारण के अपने दायित्व के लिए आगे आना चाहिए। शिक्षा के बढ़ते व्यापारीकरण पर रोक लगनी चाहिए ताकि छात्रों को महंगी शिक्षा प्राप्त करने को बाध्य होना पड़े।
सरकार द्वारा शिक्षा संस्थानों के स्तर, ढांचागत संरचना, सेवाशर्ते, शुल्क मानदण्ड़ आदि निर्धारण करने की स्वायत्त एवं स्वनियमनकारी व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाए ताकि नीतियों का पारदर्शितापूर्वक क्रियान्वयन हो सके।
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का यह मानना है कि प्रत्येक बालक-बालिका को मूल्यपरक, राष्ट्र भाव से युक्त, रोजगारोन्मुख तथा कौशल आधारित शिक्षा समान अवसर के परिवेष में प्राप्त होनी चाहिए। राजकीय निजी विद्यालयों के शिक्षकों का स्तर सुधारने हेतु शिक्षकों को यथोचित प्रशिक्षण, समुचित वेतन तथा उनकी कर्त्तव्यपरायणता दृढ़ करना भी अति आवश्यक है।
परम्परा से अपने देश में सामान्य व्यक्ति को सस्ती गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने में  समाज ने महती भूमिका निभाई है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी सभी धार्मिक-सामाजिक संगठनों, उद्योग समूहों, शिक्षाविदों प्रमुख व्यक्तियों को अपना दायित्व समझकर इस दिशा में आगे आना चाहिए।

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा केन्द्र, राज्य सरकारों स्थानीय निकायों से आग्रह करती है कि सस्ती गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सबको उपलब्ध कराने के लिए समुचित संसाधनों की व्यवस्था तथा उपयुक्त वैधानिक प्रावधान सुनिश्चित करें। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा स्वयंसेवकों सहित समस्त देशवासियों का भी आवाहन करती है कि शिक्षा प्रदान करने के पावन कार्य हेतु विशेषकर ग्रामीण, जनजातीय एवं अविकसित क्षेत्र में वे आगे आवें ताकि एक योग्य, क्षमतावान ज्ञानाधारित समाज का निर्माण हो सके जो इस राष्ट्र के उत्थान विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।