Saturday, August 16, 2014

नक्सलबाड़ी से घर की बाड़ी तक का सफ़र आखिर कब थमेगा .

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् द्वारा दिनांक 11 व् 12 अगस्त 2014 को भोपाल में दो  दिवसीय  नक्सलवाद विषय पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमे इससे सम्बंधित सारे विषयों पर दो दिनों तक विषय विशेषज्ञों की उपस्थिति में विचार विमर्श किया गया.
इस कार्यशाला के प्रथम सत्र में छात्तिश्गढ़ के बाल न्यायलय के अध्यक्ष न्यायधीश श्री के.के. अग्रवाल जी के मुख्या आतिथ्य में सम्पन्न हुआ. उन्होंने नक्सलवाद के गढ़ के रूप में देश में स्थापित बस्तर से ही अपनी बात की शुरुआत की, उन्होंने बताया की 50 के दशक में बस्तर में पूरी तरह शांति स्थापित थी जो की 1973- 74 तक रही परन्तु इसके बाद नक्सलवाद पनपना शुरू हुआ इसका सबसे बड़ा कारण गरीबी और अशिक्षा है  और इसी वजह से बस्तर के आदिवासी आज भी ठगे जा रहे हैं. बस्तर में आम, इमली व् अमचूर के बदले नमक लेने का प्रचलन सदियों से बदस्तूर जारी है.

इस सत्र में विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित श्री रविरंजन सेन जो की विद्यर्थी परिषद् से सन 1991 से संपर्करत है. उन्होंने नक्सलवाद के एतिहासिक परिदृश्य पर चर्च में बताया कि भारत में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया का गठन 1925 में हुआ. सन 1966 से 1976 तक चीन में सांस्कृतिक क्रांति हुई जिसमे तक़रीबन 30 लाख लोग मरे गए थे. सन 1967 में ही भारत के ही नक्सलबाड़ी नामक स्थान में पहली घटना घटी. जिसमे प्रमुख रूप से लापा किसन, सांगू किसन तथा 150  कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थक लोग शामिल थे. इस घटना से नक्सलबाड़ी में तकरीबन 52 दिन उथल-पुथल रहा. जो की भारत में नक्सलवाद की पहली दस्तक थी.

भारत में नक्सलवादी आन्दोलन के प्रमुख नेता के रूप में श्री कानू सान्याल, चारू मजुमदार तथा जंगल संथाल पूर्ण रूप से उभर चुके थे, जिसमे से कनु सान्याल का दायित्व संगठन को सम्हालने का था, वहीँ जंगल संथाल ने इस आन्दोलन में ज्यादा-से-ज्यादा आदिवासियों को जोड़ने में महती भूमिका निभाई. नक्सलवाद से जुड़े हुए नेताओं ने भारत में चर्चा-परिचर्चा हेतु युगास्ता क्लब की स्थापना किये. जिसमे महात्मा गाँधी, रजा राममोहन राय तथा जवाहर लाल नेहरु के विचारों पर बाकायदा बहस किया जाता था. इस आन्दोलन के प्रमुख नेता श्री चारू मजुमदार वर्ग संघर्ष में विश्वास करते थे , उनका मानना था कि- “ जिस व्यक्ति में वर्ग शत्रु के खून में अपना हाथ नहीं डुबोया हो वो कम्युनिस्ट नहीं हो सकता है.” इसी कारण वे इस आन्दोलन में आदिम हथियार जैसे – तीर कमान, टंगिया जैसे हथियारों के प्रयोग के पक्षधर थे. All India Coordination Committee of Communist Revolutionaries द्वारा 22 अप्रैल सन 1969 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) नाम के एक दल का गठन हुआ जिसका उद्देश्य भारत को तोडना था. जिसमे “चीन का अध्यक्ष, हमारा अध्यक्ष” तथा “चीन का पथ हमारा पथ” का नारा दिया गया. इसी कड़ी में आंध्रप्रदेश में ग़दर के नेतृत्व में जन नाट्य मण्डली का गठन , 1985 में दिल्ली में जन नाट्य मंचका गठन तथा  9 अगस्त 1990 में AISA का गठन किया गया. सन 2001 में दक्षिण एशिया के माओवादी संगठनो के द्वारा दक्षिण एशिया में माओवादी गतिविधियों के सञ्चालन हेतु  Coordination Committee of Maoist Parties and Organizations of South Asia (CCOMPOSA)   की स्थापना की गई. इसके स्थापना के पश्चात मई 2010 में पश्चिम बंगाल के ज्ञानेश्वरी में एक घटना को अंजाम दिया गया. वर्ष 2011 में पश्चिम बंगाल में किशंजीत की हत्या की गई. इस घटना के तुरंत बाद ही इस आन्दोलन के प्रमुख नेता कनु सान्याल के द्वारा वर्ष 2012 में उत्तरबंग में आत्महत्या की जानकारी मिलती है. इसी कड़ी में मई 2013 छात्तिश्गढ़ के कई बड़े कांग्रेस नेताओं पर हमला किया गया जिसमे विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा तथा नन्द कुमार पटेल शामिल थे. 21 मार्च 2014 को आँध्रप्रदेश में PWG व MCC (माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर) को मिलकर CPI (माओवादी ) का गठन किया गया. अभी हाल ही में नक्सली दम्पति सव्यसाची पंडा की गिरफ़्तारी इसकी एक कड़ी के रूप में शामिल है. इस तरह इसके गठन के बाद से अब तक नक्सलवादी आन्दोलन में  आम आदिवासी, पुलिस कर्मचारी सहित कई लोगों सहीद हो चुके हैं, कई लोग अनाथ हो चुके है, बेघर हो चुके है. पता नहीं इस दंश से आम आदमी कब तक इसे ही मारा जाता रहेगा, अगर समय रहते इस इससें नहीं निपट पाए तो हम आनेवाली पढ़ी को क्या जवाब देंगे.

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् नेपाल के राष्ट्रीय संगठन सचिव श्री दीपल अधिकारी जी नक्सलवाद के दर्शन पर प्रकाश डालते हुए बताया की पुरे विश्व में दो प्रकार के दर्शन हैं – 1. सर्वहारा दर्शन तथा 2. पूंजीपति दर्शन . उनके अनुसार कम्युनिस्ट विचारधारा एक विस्तारवादी विचारधारा के रूप में स्थापित है जो कि तकरीबन 62 बार विखंडित हो चूका है तथा 28 बार स्थापित हुआ है. उन्होंने बताया की कोई भी विचारधारा साहित्य, मीडिया व साहित्य से ही संपन्न होता है, और इस कम्युनिस्ट पार्टी के विस्तार का आधार ही यही है अतः हमें इसके विस्तार को ख़त्म करने की रणनीति पर काम करना होगा तभी हम इसे समूल नष्ट कर पाएंगे.इस कार्यशाला में विशेष रूप से उपस्थित छात्तिश्गढ़ के आई. जी. श्री दीपांशु काबरा ने नक्सलवाद संगठन के संगठनात्मक ढांचे पर विस्तृत जानकरी दिए. उनके अनुसार इस संगठन में सेंट्रल कमेटी के अंतर्गत पोलित ब्यूरो व् सेंट्रल मिलिट्री कमीशन कार्य करी है जिसमे से पोलित ब्यूरो  के अधीन ररीजनल ब्यूरो, स्पेसल जोनल कमिटी, सब जोनल कमिटी, डिवीज़न कमिटी, एरिया कमिटी या टाउन कमिटी, LOS, रेवोल्यूशनरी पीपुल काउंसिल जिसमे मास ओर्गानिज़ेसन, पार्टी सेल, तथा ग्राम रक्षा दल जैसे संगठन ARD/GRD/Raksha शामिल हैं.


इसी तरह सेंट्रल मिलिट्री काउंसिल CMC के अंतर्गत सेंट्रल टेक्निकल कमिटी, रीजिनल मिलिट्री कमिटी, स्टेट मिलिट्री कमीशन- जिसके अंतर्गत नार्थ यूनिफाइड कमांड, साऊथ यूनिफाईड कमांड व वेस्ट यूनिफाईड कमांड, बटालियन, डिविज़नल कमांड, कम्पनी, प्लाटून, जन मिलिसिया शामिल हैं. इस तरह नक्सल संगठन इस समय कार्यरत हैं. अगर बस्तर की बात करें तो इस समय 2 बटालियन व 14 कम्पनी दंडकारन्य क्षेत्र में कार्यरत है. इसी तरह इस क्षेत्र में ग्राम पार्टी कमिटी व रेवोलुश्नरी पीपल कौसिल के रूप में जनताना सरकार कार्यरत है जिसके तीन रूप पार्टी सेल, रक्षा सेल व अग्र संगठन है. दंडकारन्य स्पेशल जोनल कमिटी तीन क्षेत्रों में कार्यरत है जिसमे से दक्षिण यूनिफायड कमांड देवजी के नियंत्रण में है, उत्तर यूनिफाइड कमांड का नेतृत्व कोसा के हाथ में है. हिडमा इस कमिटी के प्रमुख साथी हैं. जो सम्मिलित रूप से इस क्षेत्र को अपने नियंत्रण में रखे हुए हैं. और इस क्षेत्र में प्रमुख कार्यवाहियों को अंजाम देते हैं.
नक्सलवाद के शहरी परिदृश्य पर बात करने के लिए विषय विशेषज्ञ के रूप में वरिष्ठ पत्रकार श्री रमेश नैय्यर जी उपस्थित थे. उन्होंने पत्रकारिता के अपने अब तक के अनुभवों को साझा करते हुए बताया की वर्ष 1949 में दक्षिण बस्तर में बहुत से लोग आकर बसे थे जो शायद वहां की जनजातीय संस्कृति के लिए सबसे बड़ा खतरा साबित हुई. उस समय बस्तर में शक्ति के तीन प्रमुख केंद्र थे – प्रथम माई दंतेश्वरी, दूसरे बस्तर के महाराजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव तथा तीसरी वहां जनजातियों के मध्य प्रचलित घोटुल प्रथा थी. ये तीनो केंद्र जनजातीय समाज को आपस में जोड़े रखा था जो इनके आस्था के सर्वोच्च प्रतीक थे. 25 मार्च 1966 में इन प्रतीकों में से एक प्रतीक महाराजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव की षड़यंत्र पूर्वक गोलीबारी में हत्या की गई. श्री गनपत लाल साव जो कि महाराजा के सचिव थे उनके अनुसार ब्रिटिशर्स के द्वारा सन 1910 में बस्तर में अपनी शिक्षा व्यवस्था कायम करने कोशिश किये जिसका बस्तर में पुरजोर विरोध हुआ. उसी समय बस्तर की क्रांति के रूप में विख्यात भूमकाल आन्दोलन का भी जिक्र आता है, जो कहीं न कहीं इस विद्रोह की कड़ी से जुड़ता है. इसी बीच कम्युनिस्ट नेता कोंडापल्ली सीतारामैय्या के द्वारा बस्तर में मलेरिया से पीड़ित आदिवासियों को मलेरिया की गोली बाँटने का जिक्र आता है, जो सरकार की पहुँच से दूर बस्तर क्षेत्र के विकास के लिए तालाब का निर्माण करवाकर वहां के आदिवासियों को मुख्यधारा से जोड़ने का पहला प्रयास के रूप में देखा जा सकता है.
बस्तर क्षेत्र के तमाम समस्याओं पर अगर गौर करें तो हम यह पाते है कि शिक्षा व् स्वास्थ्य की पहुँच से दूर बस्तर के पिचादने के तीन बड़े कारण – पुलिस, व्यापारी व् प्रशासन है. क्योंकि पुलिस व् प्रशासन के बारे में यह प्रचलन है की वे जनजातीय समाज के लोगों के घरों से डरा धमकाकर मुर्गा और दारु की मांग की जाती थी नहीं देने का खामियाज़ा भी भुगतना पड़ता था, वहीँ व्यापारी नमक के बदले वहां के आदिवासियों का जल जंगल जमीन तक हड़प लेते थे. शायद यही कारण था कि बस्तर जैसे मनोरम, शांति के टापू पर नक्सलवाद दस्तक देता नज़र आ रहा था. अगर बस्तर आज थोडा बहुत बचा है तो सरदार वल्लभ भाई पटेल की वजह से ही बचा है जो कि बस्तर स्टेट को भारत के 537 रियासत में शामिल करने में सफल रहे, अन्यथा बस्तर की बैलाडीला पहाड़ी को हैदराबाद के निज़ाम ने खरीद लिया था जिसे कोरिया के राजा के हस्तक्षेप पर ही भंजदेव ने बस्तर को बचाया था जिसका प्रमाण हिंदी ग्रन्थ अकादमी में मौजूद हैं.
आज बस्तर खून की होली खेल रहा ही कल तक शांति के टापू के रूप में स्थापित बस्तर में आज गोली की आवाजें गूंजने लगी है. भारत में नक्सलवाद का खत्म बस्तर के नक्सलवाद के खात्मे पर ही टिका है. नक्सलवाद विषय पर बोलते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के जनजातीय छात्र कार्य प्रमुख श्री प्रफुल्ल आकांत ने कहा कि इस समय नक्सलवाद की कहर से देश के 16 प्रान्तों के लगभग 20 जिलों के 1400 गाव जूझ रहे हैं. उड़ीसा के कंधमाल में स्वामी लक्ष्मानंद के सामाजिक अन्दिलन की वजह से तथा राजनंदगांव के मोहला-मानपुर क्षेत्र में सामाजिक अलख जगाने में भूमिका निभाने वाले लाल श्याम शाह की वजह से इस क्षेत्र में नक्सलवाद नहीं पनप पाया जिन्होंने इन क्षेत्रों में व्यसन मुक्ति के आन्दोलन चलाये तथा शिक्षा के कई केंद्र स्थापित किये. इसी तरह जशपुर के कैलास गुफा व बागीचा के क्षेत्रों में गहिरा गुरु का योगदान महत्वपूर्ण है जिन्होंने इस क्षेत्र में शिक्षा का अलख जगाया. वर्ष 1952 में जशपुर में वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य, शिक्षा व सामाजिक उत्थान हेतु कार्य करने के उद्देश्य से की गई थी जो की निरंतर अभी भी जारी है. वर्ष 1966 में बस्तर के महाराजा प्रवीर चन्द्रभंजदेव की हत्या के लगभग 12 वर्ष बाद 1980 तक नक्सलवाद का कोई नामोनिशान नहीं था. उसके बाद नारायणपुर व ओरछा वर्ष 1991-92 में पहली बार ग्राम जागरण अभियान चलाया गया. 2003 में गीदम का थाना लुटा गया, युम्नर का बाजार लुटा गया जिसमे पुलिस ने 13 ग्रामीणों को जेल में दाल दिया और उन्हें उनके पास पाए गए सामान की पावती दिखाने को कहा गया और ऐसा प्रचारित किया गया की यह बाज़ार जनजाति समाज ने लुटा है. इस घटना से जनजाति समाज आहात हुआ और सामाजिक कार्यकर्ता सुखदेव तांती के नेतृत्व में लगभग 500 लोगों के साथ इन्द्रावती नदी के उस पार नक्सलियों से उनके केम्पों में मिलने पहुंचे और नक्सलियों को उसके दूसरे दिन यह बताना पड़ा कि इस घटना में जनजाति समाज का कोई हाथ नहीं है. इसके बाद लगभग 100 गांवों में ग्राम सुरक्षा समिति बनाई गई जिसने नक्सलियों को गोवों से बहार का रास्ता दिखाया गया. 19 मई 2005 में बस्तर के ग्रामीणों के द्वारा इस समस्या से निपटने के लिए चल रही बैठक में नक्सलियों के द्वारा 19 लोगों की हत्या की गई इसी तरह 22 मई 2005 को 5000 ग्रामीणों की बैठक के दौरान भी हत्या के प्रयास नक्सलियों के द्वारा किया गया जिसमे ग्रामीणों के द्वारा संयुक्त रूप से तय किया गया की नक्सलवाद का मुकाबला हम “सलवा जुडूम” से करेंगे, जो की देश में इस तरह का पहला प्रयास था.


सलवा जुडूम इस प्रयास से काफी संख्या में लोग जुड़ने लगे कुटरू, ताडमेटला व भैरमगढ़ से हजारों की संख्या में जनजाति समाज जुड़ने लगे. सलवा जुडूम के इस प्रयास से नक्सली बेचैन हो उठे और सलवा जुडूम के कार्यकर्ताओं पर हमले करना शुरू किये. सरकार ने जनजातियों की सुरक्षा के लिए इन क्षेत्रों में 24 केम्पों का निर्माण कराया  जिसमे 80-100 गांवों से लगभग 52000 लोग रहने आने लगे PSO व कोया कमांडो की दहसत भी लोगों में बढने लगी, नक्सलियों का नेटवर्क ध्वस्त हो गया  इससे समर्थित संगठन हैरान हुए और इसके खिलाफ सडयन्त्र कर सुप्रीम कोर्ट में 19 याचिकाएं लगाई गई.  वर्ष 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने बगैर तहकीकात के सलवा जुडून के विरोध में एक फैसला दिया यह फैसला PUCL से प्रशिक्षित सुदर्शन रेड्डी के द्वारा PSO को निरस्त करने का का आदेश था. इस निर्णय से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विपरीत माहौल बना जो की निरासजनक था. ऐसे माहौल के बाद आज भी सुखदेव तांती जैसे लोग भटके लोगों को समाज को जोड़ने का प्रयास कर रहे है.
झारखण्ड के परिदृश्य में देखें तो यहाँ का सेन्द्रा आन्दोलन जिसके अंतर्गत गुमला क्षेत्र में यह प्रचलन था की शादी के बाद पति पत्नी को जंगल में पशु का शिकार करने का प्रशिक्षण दिया जाता था यह प्रचलित हुआ जिसमे 13 प्रमुख नेताओं को मारा गया जिसे सरकार ने संरक्षण नहीं दिया, ये शहीद हुए पर बन्दुक नहीं उठाई. उड़ीसा के मलकानगिरी, कोरापुट में 12000 लोग मारे गये जिसमे 8000 लोग जनजातीय समाज से थे. इस तरह नक्सलवाद के कारण वहां  के ग्रामीणों का वहां रहना दूभर हो गया है, ऐसे में छात्तिश्गढ़ सरकार द्वारा नक्सली प्रभावित बच्चों के लिए 9वीं से 12वी तक के बच्चों के लिए शिक्षा की गई जिसमे से 7 बच्चे IIT के लिए पास होते है वहीँ अबूझमाड़ क्षेत्र में सुखराम बोरसा( MBBS) जनजातीय क्षेत्रो में विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखकर मेडिकल केम्प लगाने के लिए संघर्ष करता है जिससे उस क्षेत्र में विकास कायम हो सके. और जनजातीय क्षेत्रों में शांति की स्थापना हो सके.

इस कार्यशाला में राजनंदगांव जिले मदनवाडा क्षेत्र के निवासी श्री भगत झाडे आमंत्रित थे जो की पूर्व में नक्सली संगठन में डिवीज़नल कमेटी सदस्य रह चुके हैं उन्होंने बताया कि मदनवाडा क्षेत्र में नक्सलियों का दखल 2004 में शुरू हुआ जिस समय वे 10वी कक्षा में पढ़ रहे थे नक्सलियों ने सभी युवाओं को जोड़ने की बात कहते हुए बताया कि आज़ादी के बाद से अब तक इस क्षेत्र में किसी ने ध्यान नहीं दिया इसलिए सभी पड़े लिखे युवा साथियों से नक्सलियों ने आह्वान किया कि अगर क्षेत्र का विकास चाहिए तो हमसे जुड़िये क्योंकि 2010 तक हमारी सरकार बन जाएगी इससे प्रभावित होकर मई 2004 में इस संगठन में शामिल हुआ और 2007  से 2014 तक नक्सली दलम में सदस्य के रूप में काम किया. इसी वर्ष ओटेकसा में 24 गांववालों के सामने 4 लोगों की डंडे से मार-मारकर हत्या कर दी गई. हम लोग भी नक्सली संगठन में नक्सलियों के डर से ही शामिल हुए थे क्योंकि उस समय वहां तक प्रशासन नहीं पहुंचा था. गावों में शासन की पहुँच ना होने के कारन नक्सली गांवों में जनअदालत लगते थे जिसमे लड़की व् लड़के को ही बुलाते थे और वे बुजुर्गों व् ठाकुरों के खिलाफ भड़काते थे. हमारे क्षेत्र में वर्ष 2007-08 में बड़ी भरी संख्या में लगभग 100 लोग नक्सली संगठन में भर्ती हुए, जिसमे से छात्तिश्गढ़ के लोगों को छोटे-मोटे कामों में ही उपयोग करते थे बाकी आँध्रप्रदेश व् उड़ीसा के लोग ही इसमें प्रमुख पदों पर थे. बाद में शासन के योजनाओं को सुकर व् देखकर हम वापिस आकर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किये. इस तरह हम कह सकते है की नक्सली संगठन में छात्तिश्गढ़ के लोगों को डरा धमकाकर सामिल किया जाता है.तथा साथ ही 5वीं कक्षा में इस संगठन से जुड़ी श्रीमती वनोजा झाडे नेभी अपना अनुभव बताया जो की कि जो कि पूर्व में इसी संगठन के चेतना नाटक मंच में शामिल थी.
भोपाल में अवैध हथियार फैक्ट्री को पकड़वाने में प्रमुक भूमिका निभाने वाली महिला पुलिस अधिकारी  श्रीमती अनुराधा शंकर सिंह (IPS) ने नक्सलवाद विषय पर बोलते हुए कहा कि चुनौती नक्सलवाद की नहीं बल्कि माओवाद की है जिसके इस समय नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी व भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी नाम के दो धड़े कार्यरत है. उन्होंने इस विषय पर बात करते हुए बताया की पार्टी की लिटिल रेड बुक में अंतर्राष्ट्रीयता के नाम से क्रांति करने की अपील की थी. जिसके परिणाम स्वरूप भारत में छात्तिश्गढ़. महाराष्ट्र, उड़ीसा, झारखण्ड व पश्चिम बंगाल में युद्ध हो रही है. माओवाद के अनुसार राज्य उनका शस्त्रागार(QUARTER MASTER) है इसी कारण हम देखते हैं कि, माओवादी अपने शस्त्र की पूर्ति राज्यों के पुलिस थानों को लूटकर Reverse इंजीनिरिंग के माध्यम से ठीक कर उपयोग में लाते है.

श्रीमती अनुराधा शंकर ने बताया कि माओ एक ऐसे क्रांतिकारी नेता थे जो कभी किसी से नहीं मिलते थे फिर भी कानु सान्याल व् चारू मजुमदार से मिलकर उन्हें भारत में वामपंथी के दूत निरुपित किया. उन्होंने बताया कि वामपंथी Cultural Revolution के माध्यम से अपने विचारधारा को प्रतिपादित करते हैं जिनका प्रचार तंत्र बहुत सघन फैला हुआ है जिसके लिए वे World to Win नमक पत्रिका भी निकलते हैं तथा इसी कड़ी में भारत में 2001 में कोआर्डिनेशन कमिटी ऑफ़ माविस्ट पार्टी एंड ओर्गनाइज़ेसन ऑफ़ साउथ एशिया(COMPOSA) नमक संगठन स्थापित हुआ. जिसके सहयोग से 2004 में PWG का गठन हुआ जिसमे बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल व बर्मा सदस्य देश के रूप में शामिल हैं जो जन संघर्ष में विश्वास करती है फिलीपिंस में तो 1940 से माओवाद का संघर्ष जरी है. वर्ष 2002 में MLM की स्थापना हुई जिसके प्रेरक के रूप में गोंज़ालो प्रतिष्ठित हुए. 2006 में भारतीय माओवादी संगठन का सहयोग करने से नेपाल ने मन कर दिया जिसके कारण का. गणपति, का. किसनजीत ने इस्लामिक आतंकवादियों से सहयोग के लिए संपर्क स्थापित किए व 2007 से 2010 तक इस्लामिक संघर्ष से सम्बंधित संयुक्त बयांन दिए गए. वर्ष 2006 के बाद से बांग्लादेश से भी हथियार आने शुरू हो गए. श्रीमती अनुराधा ने बताया कि अंतराष्ट्रीय माओवाद संगठन का पंचम सम्मेलन 2011 में झारखण्ड के सरंडा के जंगलों में संपन्न हुआ जिसमे बांग्लादेश, भूटान व श्रीलंका के लोग शामिल हुए तथा इन सभी देशों में एक संगठन बनाने की रणनीति बनी. उनके अनुसार भारत में माओवाद को ULFA का अच्छा सहयोग मिल रहा है, इस्लामाबाद में इस्लामिक आतंकवाद पर संघर्ष जारी है. इस तरह उन्होंने नक्सलवाद के अन्तराष्ट्रीय संबंधों पर प्रकाश डाला. इसी सत्र में इस विषय पर बोलते हुए जी. लक्षमण ने इस समस्या को Socio Economic व Low n Order से उत्पन्न समस्या बताया जिसका उद्देश्य गन के माध्यम से सत्ता में आना है जिसके लिए 2004 के बाद से इस समय तक लगभग 40 संगठन कार्य कर रहे है.  जिसमे की 2004 से अब तक विभिन्न मुठभेड़ों में 2,237 सिविलियन तथा 1200 माविस्ट मरे गए हैं. इस तरह नक्सलवादियों का संगठन देश में कार्य करता है उनका उद्देश्य Kill 1 Terror 100 की विचारधारा पर कार्य करती है और लोगों में भय उत्पन्न कर लगभग 12 से 14 प्रतिशत तक की लेवी मध्यप्रदेश व् छात्तिश्गढ़ से वसूलती है, गाँव के किसानो को एक एकड़ में गांजा की खेती उगाने के लिए दबाव डालती है. इस तरह हम कह सकते है की यह विचारधारा लोगों में निरंतर भय उत्पन्न किये हुए हैं जिसे समूल नष्ट किया जाना समय की मांग है.
कार्यक्रम के अंतिम उद्बोधन में विद्यार्थी परिषद् के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री सुनील अम्बेकर् जी ने कहा की नक्सलवाद में से नक्सल को सरकार समाप्त करेगी तथा वाद को समाप्त करने ठेका समाज को लेना होगा. उन्होंने इसे आगे बढ़ाते हुए यह कहा की बन्दूक की क्रांति थोड़े समय के लिए होती है क्षणभंगुर होती है अगर क्रांति करनी है तो विचारों की क्रांति होनी चाहिए और येही विचारों की क्रांति ही इस समय बदलाव ला सकती है इसके लिए हमें विद्यर्थियों को हर तरह के वाद के लिए Offence is Best Defence की रणनीति के तहत आगे बदना होगा. उन्होंने कहा की इस समय सारी दुनिया में 600 करोड़ लोग निवास करते हैं तो अकेले भारत में 100 करोड़ लोग निवास करते हैं अतः भारत को अपना विकास Modernity with Eternal Charector के तहत करना चाहिए. तभी भारत का सही मायनों में विकास होगा.