Thursday, April 28, 2016

2 " रहीमन पानी राखिए बिन पानी सब सून "।


महाराष्ट्र की बात करें तो मराठवाढ़ा के सूखाग्रस्त इलाकों से किसानों एवं खेतीहर मजदूरों का पलायन शुरू हो चुका है।2016 में हर महीने करीब 90 किसानों ने आत्महत्या की।खरीफ के मौसम में पूरे महाराष्ट्र में लगभग 15750 गांव सूखे से बुरी तरह प्रभावित हैाकई तालाबों और नदियों का पानी 4% से भी कम बचा है।महाराष्ट्र लगातार चौथी बार सूखे की चपेट में है सबसे ज्यादा असर औरंगाबाद लातूर और विदर्भ में पड़ा है।लातूर में तो पानी को लेकर धारा 144 लगी है।केंद्र सरकार ने 3049 करोड़ रुपये सूखा राहत के लिए मंजूर किए हैं।

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घंटों का सफर तय करके दस वैगन पानी से भरी ट्रेन 342 कि मी चलकर राजस्थान के कोटा से चलकर पश्चिमी महाराष्ट्र के मिराज से 2.75 लाख लीटर पानी लेकर लातूर पहुँची "पानी एक्सप्रेस" पानी लाने वाली पहली ट्रेन बनी ।इस पूरे प्रोजेक्ट में 1.84 करोड़ रुपए का खर्च आया ।इसमें कोई संशय नहीं कि लातूर को  केन्द्र सरकार के इस कदम ने बहुत राहत दी है।लेकिन समस्या को जड़ से मिटाकरउसके स्थाई समाधान में वक्त लगेगा। यह सूखा एक साल की अल्पवर्षा की देन नहीं है।लगातार चार पांच सालों के खराब मौनसून से इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न हुई है अगर समय रहते पूर्ववर्ती सरकारें ने इस विषय को गंभीरता से लेकर ठोस कदम उठाए होते तो आज लातूर ही नहीं पूरे देश में  स्थिति बेहतर होती।लातूर की बात करें तो भौगोलिक कारणों से यह इलाका अल्पवर्षा का क्षेत्र हैऔर न ही इसमें कोई नदी प्रवाहित होती है।लगातार दोहन के फलस्वरूप भू जल स्तर गिरता जा रहा है।शहर को पानी की आपूर्ति मन्जारा डैम से होती है जो कि अपनी जलापूर्ति के लिए अच्छे मौनसून पर निर्भर है किन्तु लगातार चार सालों के खराब मौनसून से लातूर का यह जलस्रोत भी सूख चुका है। 
लातूर की यह स्थिति किसी भी सरकार से छिपी नहीं थी इसलिए 1972 में जब इस क्षेत्र ने सूखे का सामना किया था तब यहाँ पर गन्ने की खेती पर रोक लगा दी गई थी।यह सर्वविदित है कि गन्ने की खेती में पानी बहुत लगता है तो तत्कालीन सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए कि लोगों को पीने का पानी मिलता रहे गन्ने की खेती पर रोक लगाने का कदम उठाया था।जब 2014 से लातूर सूखे की मार झेल रहा है तो इस साल फिर से गन्ना क्यों बोया गया? क्या उससे उत्पादित गुड़ शक्कर और अलकोहोल की उपयोगिता हमारे किसानों के जीवन से अधिक है?इस सब का सबसे दुखद पहलू यह है कि इस बार की गन्ने की फसल भी पानी के अभाव में बरबादी की कगार पर है और अब शायद जानवरों के चारे के काम आए।
यह जानकारी भी आपको आश्चर्य में डाल देगी कि 2005 मे"महाराष्ट्र वाटर रिसोर्स रुगुलेटरी ओथोरिटी "
का निर्माण हुआ था जो कि महाराष्ट्र में भूमिगत जल एवं नदियों के जल एवं तालाबों के जल के प्रबंधन एवं आपूर्ति के लिए बनाया गया था।अगर इस संस्था ने जल प्रबंधन की ओर थोड़ा भी ध्यान दिया होता तो खेती न सही महाराष्ट्र के गाँवों को कम से कम पीने का पानी तो उपलब्ध होता।इससे भी अधिक आश्चर्यजनक यह तथ्य है कि 2005 में बनने के बावजूद इनके बोर्ड की पहली बैठक 2013 में हुई थी वो भी बाहरी दबाव में।क्या यह संस्था 2014 में गन्ने की खेती पर रोक नहीं लगा सकती थी पानी के प्रबन्धन की दिशा में ठोस कदम समय रहते नहीं उठा सकती थी?
 
इजरायल जैसे देश ने जल संकट को विज्ञान से हरा दिया एक समय था जब इजरायल के नल सूखे थे वहाँ लोग पानी की एक एक बूँद को तरसते थे लेकिन वहाँ की सरकार की जल प्रबंधन नीतियों ने समस्या की जड़ पर प्रहार करके आज अपने देश को सम्पूर्ण विश्व के लिए एक मिसाल के रूप में पेश किया है।भले ही आज हम इजरायल की तर्ज पर समुद्री जल का विलवणीकरण करने की स्थिति में नहीं हैं लेकिन घरेलू अपशिष्ट जल को पुनः चक्रित करके कृषि के उपयोग में लेने जैसी पानी प्रबंधन की नीतियाँ अवश्य बना सकते हैं।

किन्तु हमारी विकास नीति के केंद्र में पानी  प्रबंधन न हो कर मुआवजा प्रबन्धन  है इसीलिए पी सांई नाथ को किताब लिखनी पढ़ी "एवरीबडी लव्स अ गुड डौट"(सभी को सूखे से प्रेम है) उनके अनुसार सूखा राहत भारत का सबसे बड़ा विकास उद्योग है।

क्या इस देश  में आज जो पानी की स्थिति है उसके लिए कहीं न कहीं हम सभी जिम्मेदार नहीं हैं!विकास के नाम पर जो अर्थव्यवस्था की रचना हुई उसमें हमने अपने परम्परागत जलस्रोतों जैसे तालाब बावड़ी कुंओं के विकास की न सिर्फ उपेक्षा की अपितु उन्हें खत्म कर कान्क्रीट के जंगल उगा दिए जो पानी वर्षा के दिनों में यहां इकट्ठा हो कर साल भर ठहर कर उस इलाके के भूजल स्तर को ऊपर उठाने का काम करता था उसे हमने नष्ट कर दिया।भारतीय किसान यूनियन के शिवनारायण परिहार कहते हैं कि बुन्देलखण्ड पाँच नदियों का क्षेत्र रहा है जिसे पंचनद के नाम से जाना जाता था इस क्षेत्र में कई छोटी नदियाँ और काफी संख्या में पोखर हुआ करते थे लेकिन अवैध बालू उत्खनन से छोटी नदियों का गला घोंटा गया और भू माफिया ने पोखरों को मारकर इमारतें खड़ी कर दी।पर्यावरणविदों का कहना है कि दिल्ली जैसे शहर में सैकड़ों तालाब थे जो वहाँ के भू जल स्तर को बनाए रखते थे लेकिन हमने विकास की अन्धी दौड़ में विनाश का रास्ता पकड़ लिया।भले ही हम जल संकट की सारी जिम्मेदारी कृषि क्षेत्र पर डालें लेकिन हकीकत यह है कि जल संकट गहराने में उद्योगों की अहम भूमिका है कई बार फैक्टरियाँ एक ही बार में उतना पानी खींच लेती हैं जितना पूरा गाँव एक महीने में भी नहीं खींचता।
हमारा समाज बहुत रचनात्मक समुदाय है एवं इसमें सामाजिक बदलाव लाने की अद्भुत क्षमता है हम सभी ने मिलकर बड़ी से बड़ी आपदाओं का सफलतापूर्वक सामना किया है।राजस्थान के गाँवों की सफलता की कहानी समाज की सफलता की कहानी है।आसमान से गिरने वाली बूंदों को सहेज कर धरती की गोद भरकर जिस प्रकार राजस्थान जैसे इलाके की नदियों को पुनर्जीवित किया गया वह यह बताता है कि पर्यावरण को सहेज कर, बेहतर बनाकर ही हम पर्यावरण का लुत्फ़ उठा पाएंगे।समाज में बदलाव भाषणों से नहीं जमीनी स्तर पर काम करने से आता है।।पानी से ही धरती का पेट भरता हैं जिस दिन हम उसका पेट भरने के उपाय खोज लेंगे हमारी नदियाँ हमारे खेत सब भर जाँएगे ।हम धरती को जितना देते हैं वह उसे कई गुना कर के लौटाती है इस बात को उस किसान से बेहतर कौन समझ सकता है जो कुछ बीज बोकर कई गुना फसल काटता है।जब हम धरती का ख्याल नहीं रखेंगे तो धरती हमारा ख्याल कैसे रखेगी?

@डॅा नीलम महेंद्र 

" रहीमन पानी राखिए बिन पानी सब सून "।

अगर रहीमदास के इस दोहे को हम समझ लेते जिसे हमें बचपन में पढ़ाया गया था तो आज न हमारी धरती प्यासी होती न हम ।जल हरियाली और खुशहाली दोनों लाता है। लेकिन आज हमारे देश का अधिकांश हिस्सा पिछले चालीस सालों के सबसे भयावह सूखे की चपेट में है।महाराष्ट्र का मराठवाड़ा आन्ध्र का रायलसीमा उत्तरप्रदेश का बुन्दुलखण्ड मध्यप्रदेश का टीकमगढ़ एवं शिवपुरी झारखंड ऐसे अनेकों इलाकों की धरती की सूखी मिट्टी सूखे तालाब खाली कुँए हमारे खोखले विकास की गाथा गा रहे हैं।आजादी के 70 साल बाद भी हमारे गांव ही नहीं देश की राजधानी दिल्ली तक में पेयजल की उपलब्धता एक चुनौती है।गाँवों की स्थिति तो यह है कि पहले खेत सूखे फिर पेट सूखे अब हलक सूखने लगे हैं।टीकमगढ़ में तो पानी की सुरक्षा के लिए बाकायदा बंदूकधारी तैनात किए गए हैं
इस महीने की 12 ता० को जब दस वैगनों से भरी पानी की ट्रेन लातूर पहुँची तो स्थानीय लोगों के चेहरे उनके सूखे गलों की दास्ताँ बयाँ कर रहे थे।गांव के बुजुर्गों का पटरियों पर रात की शांति में  जाग कर पानी के आने का इंतजार उनके खाली बर्तनों का शोर सुना रहा था।पानी से भरे डब्बों को देखकर स्त्रियों की आँखों में आने वाला पानी उनके सूखे हलक की प्यास की कहानी सुना रहा था।अभी इस पानी के इस्तेमाल के लिए उन्हें और इंतजार करना था लेकिन पानी को मात्र देख कर उनके चेहरों की खुशी क्या हमें कुछ समझा नहीं रही? हम ऐसे क्यों सोचते हैं कि आज हमारे नलों में पानी आ रहा है तो कल भी आयेगा?क्या हमने पानी के प्रबंधन की दिशा में कोई कदम उठाया है यदि नहीं तो हमारे नल हमेशा यूँ ही हमें पानी परोसते रहेंगे ऐसा हम कैसे सोच सकते हैं?
वातानुकूलित कमरों में बैठकर मिनरल वाटर से अपनी प्यास बुझाने वाले क्या इस सच्चाई से वाकिफ हैं कि गाँव में लोगों का पूरा दिन पानी की व्यवस्था करने में निकलता है महिलाएं आधी रात से जाग कर पानी भरने में लग जाती हैं ताकि दिन की धूप में नहीं जाना पड़े ! सुधा (परिवर्तित नाम) उम्र 22 वर्ष, दो बार गर्भपात हो चुका है डाक्टर ने भारी वजन उठाने से मना किया है लेकिन पानी भरने लगभग चार किलोमीटर की दूरी तय करती है!

क्रमशः

नवसंवत् का स्वागत पर्व

भारतीय कालगणना के अनसुार चत्रै मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि अर्थात् प्रतिपदा से नव संवत्सर का आरंभ होता है। इसी तिथि को वर्ष प्रतिपदा कहते हैं, भारत वर्ष में युधिष्ठिर संवत, वीर संवत् विक्रम संवत, शालिवाहन शक संवत आदि का प्रांरभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है। शासकीय दृष्टि से शक संवत को मान्यता है, परंतु जन जीवन में विक्रम संवत को प्रमुखता दी गई है। ऋतुओं के पूरे एक चक्र को संवत्सर कहते हैं-

चैत्रे मासे जगद ब्रह्म ससर्ज प्रथमे अहीन।
शुक्ल पक्षे समग्रेतु तदा सूर्योदय सति।

ब्रह्मपुराण में वर्णित इस श्लोक के अनुसार चैत्र मास के प्रथम सूर्योदय पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इस तिथि के कई ऐतिहासिक महत्व भी हैं। इस वर्ष से 1 अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 117 वर्ष पहले वर्ष प्रतिपदा के दिन ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि का सृजन किया था। इसी दिन

सम्राट विक्रमादित्य ने विक्रम संवत प्रारंभ किया,
शालिवाहन ने शालिवाहन संवत्सर प्रारंभ किया,
स्वामी दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना की,
सिंध प्रांत के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरुणावतार संत झूलेलाल प्रगट हुए,
युधिष्ठिर राज्याभिषेक के अवसर पर,
युगाब्द संवत्सर प्रारंभ हुआ,
प्रभु श्रीराम का राज्याभिषेक इसी अवसर पर हुआ।
देश की एकता, अखंडता एवं एकात्मता के संरक्षण के लिये सक्रिय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म भी इसी दिन हुआ।

शालिवाहन नामक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई। उस पर पानी छिड़ककर सजीव बनाया और प्रभावी शत्रुओं को परास्त किया। यह एक लाक्षणिक विषय है। वास्तव में बिल्कुल चैतन्यहीन, पौरुषहीन, पराक्रमहीन, बने समाज में चैतन्य भर दिया था। जिससे विजयी हुए। सोते हुए समाज के कानों में सांस्कृतिक शंख ध्वनि फूँकने की और मृत मानव के शरीर में जीवन संचार करने के लिये आज भी ऐसे शालिवाहनों की आवश्यकता है।
समुद्र लाँघने के समय सिर पर हाथ रखकर बैठे हनुमान को आवश्यकता है, पीठ पर हाथ रखकर विश्वास देने वाले जामवंत की। शस्त्र त्याग कर बैठे अर्जुन को आवश्यकता है, उत्साह प्रेरक मार्गदर्शक श्री कृष्ण की। संस्कृति के सपूत और गीता में वर्णित युवकों का सत्कार करने के लिये आज का समाज भी तैयार है।
आज के दिन हम सभी को पुरुषार्थी, पराक्रमी, सांस्कृतिक वीर बनने की प्रतिज्ञा करनी चाहिये। महाराष्ट्र में वर्ष का प्रथम दिन गुड़ी पड़वा कहा जाता है। गुड़ी मानव देह का प्रतीक माना जाता है, गुड़ी यानि विजय पताका। भोग पर योग की विजय, वैभव पर विभूति की विजय और विकास पर विचार की विजय।
मंगलता और पवित्रता के वातावरण में सतत् प्रसारित करने वाली इस गुड़ी को फहराने वाले को आत्म निरीक्षण करके यह देखना चाहिये कि मेरा मन शांत, स्थिर और सात्विक बना या नहीं।
सम्राट विक्रमादित्य ने शकों पर विजय के पश्चात विक्रमी संवत शुरू किया था। शास्त्र के अनुसार संवत प्रारंभ करने से पूर्व उक्त सम्राट का यह दायित्व होता था कि उसके राज्य में कोई दुखी-दीन हो। कोई कर्जदार हो। राजा सबके कर्ज चुका दे, सबके दुःख दूर कर दे। वही राजा अपने नाम से संवत शुरू कर सकता है। सम्राट वीर विक्रमादित्य ने भी न्याय और वीरता का मानदण्ड स्थापित किया था।
कैसे मनाएँ यह नव संवत्सर महोत्सव -  
·        इस दिन प्रथम नवरात्र भी होता है, अतः उपवास रखें।
·        स्नान के पश्चात घर के सभी सदस्य मिलकर यज्ञ करे।
·        नए वर्ष के लिये किसी आदत को छोड़ने की तथा किसी नयी अच्छी आदत को सीखने का संकल्प करें।
·        इस दिन किसी मंदिर में परिवार सहित जाकर पूजन करना चाहिये।
·        कथा कीर्तन का आयोजन हो सकता है।

सम्राट विक्रमादित्य अन्य महापुरुषों की कथायें सुनाई जा सकती हैं। इसी दिन संत झूलेलाल, गौतम जयंती भी होती है, डॉ. हेडगेवार जयंती भी इसी दिन है.....मित्रों, रिश्तेदारों को परस्पर शुभकामना संदेश भेजकर.....(कार्ड, फोन, मोबाइल द्वारा............) आपके पत्रों की प्रतीक्षा में