Thursday, April 28, 2016

" रहीमन पानी राखिए बिन पानी सब सून "।

अगर रहीमदास के इस दोहे को हम समझ लेते जिसे हमें बचपन में पढ़ाया गया था तो आज न हमारी धरती प्यासी होती न हम ।जल हरियाली और खुशहाली दोनों लाता है। लेकिन आज हमारे देश का अधिकांश हिस्सा पिछले चालीस सालों के सबसे भयावह सूखे की चपेट में है।महाराष्ट्र का मराठवाड़ा आन्ध्र का रायलसीमा उत्तरप्रदेश का बुन्दुलखण्ड मध्यप्रदेश का टीकमगढ़ एवं शिवपुरी झारखंड ऐसे अनेकों इलाकों की धरती की सूखी मिट्टी सूखे तालाब खाली कुँए हमारे खोखले विकास की गाथा गा रहे हैं।आजादी के 70 साल बाद भी हमारे गांव ही नहीं देश की राजधानी दिल्ली तक में पेयजल की उपलब्धता एक चुनौती है।गाँवों की स्थिति तो यह है कि पहले खेत सूखे फिर पेट सूखे अब हलक सूखने लगे हैं।टीकमगढ़ में तो पानी की सुरक्षा के लिए बाकायदा बंदूकधारी तैनात किए गए हैं
इस महीने की 12 ता० को जब दस वैगनों से भरी पानी की ट्रेन लातूर पहुँची तो स्थानीय लोगों के चेहरे उनके सूखे गलों की दास्ताँ बयाँ कर रहे थे।गांव के बुजुर्गों का पटरियों पर रात की शांति में  जाग कर पानी के आने का इंतजार उनके खाली बर्तनों का शोर सुना रहा था।पानी से भरे डब्बों को देखकर स्त्रियों की आँखों में आने वाला पानी उनके सूखे हलक की प्यास की कहानी सुना रहा था।अभी इस पानी के इस्तेमाल के लिए उन्हें और इंतजार करना था लेकिन पानी को मात्र देख कर उनके चेहरों की खुशी क्या हमें कुछ समझा नहीं रही? हम ऐसे क्यों सोचते हैं कि आज हमारे नलों में पानी आ रहा है तो कल भी आयेगा?क्या हमने पानी के प्रबंधन की दिशा में कोई कदम उठाया है यदि नहीं तो हमारे नल हमेशा यूँ ही हमें पानी परोसते रहेंगे ऐसा हम कैसे सोच सकते हैं?
वातानुकूलित कमरों में बैठकर मिनरल वाटर से अपनी प्यास बुझाने वाले क्या इस सच्चाई से वाकिफ हैं कि गाँव में लोगों का पूरा दिन पानी की व्यवस्था करने में निकलता है महिलाएं आधी रात से जाग कर पानी भरने में लग जाती हैं ताकि दिन की धूप में नहीं जाना पड़े ! सुधा (परिवर्तित नाम) उम्र 22 वर्ष, दो बार गर्भपात हो चुका है डाक्टर ने भारी वजन उठाने से मना किया है लेकिन पानी भरने लगभग चार किलोमीटर की दूरी तय करती है!

क्रमशः

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