Thursday, April 28, 2016

नवसंवत् का स्वागत पर्व

भारतीय कालगणना के अनसुार चत्रै मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि अर्थात् प्रतिपदा से नव संवत्सर का आरंभ होता है। इसी तिथि को वर्ष प्रतिपदा कहते हैं, भारत वर्ष में युधिष्ठिर संवत, वीर संवत् विक्रम संवत, शालिवाहन शक संवत आदि का प्रांरभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है। शासकीय दृष्टि से शक संवत को मान्यता है, परंतु जन जीवन में विक्रम संवत को प्रमुखता दी गई है। ऋतुओं के पूरे एक चक्र को संवत्सर कहते हैं-

चैत्रे मासे जगद ब्रह्म ससर्ज प्रथमे अहीन।
शुक्ल पक्षे समग्रेतु तदा सूर्योदय सति।

ब्रह्मपुराण में वर्णित इस श्लोक के अनुसार चैत्र मास के प्रथम सूर्योदय पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इस तिथि के कई ऐतिहासिक महत्व भी हैं। इस वर्ष से 1 अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 117 वर्ष पहले वर्ष प्रतिपदा के दिन ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि का सृजन किया था। इसी दिन

सम्राट विक्रमादित्य ने विक्रम संवत प्रारंभ किया,
शालिवाहन ने शालिवाहन संवत्सर प्रारंभ किया,
स्वामी दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना की,
सिंध प्रांत के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरुणावतार संत झूलेलाल प्रगट हुए,
युधिष्ठिर राज्याभिषेक के अवसर पर,
युगाब्द संवत्सर प्रारंभ हुआ,
प्रभु श्रीराम का राज्याभिषेक इसी अवसर पर हुआ।
देश की एकता, अखंडता एवं एकात्मता के संरक्षण के लिये सक्रिय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म भी इसी दिन हुआ।

शालिवाहन नामक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई। उस पर पानी छिड़ककर सजीव बनाया और प्रभावी शत्रुओं को परास्त किया। यह एक लाक्षणिक विषय है। वास्तव में बिल्कुल चैतन्यहीन, पौरुषहीन, पराक्रमहीन, बने समाज में चैतन्य भर दिया था। जिससे विजयी हुए। सोते हुए समाज के कानों में सांस्कृतिक शंख ध्वनि फूँकने की और मृत मानव के शरीर में जीवन संचार करने के लिये आज भी ऐसे शालिवाहनों की आवश्यकता है।
समुद्र लाँघने के समय सिर पर हाथ रखकर बैठे हनुमान को आवश्यकता है, पीठ पर हाथ रखकर विश्वास देने वाले जामवंत की। शस्त्र त्याग कर बैठे अर्जुन को आवश्यकता है, उत्साह प्रेरक मार्गदर्शक श्री कृष्ण की। संस्कृति के सपूत और गीता में वर्णित युवकों का सत्कार करने के लिये आज का समाज भी तैयार है।
आज के दिन हम सभी को पुरुषार्थी, पराक्रमी, सांस्कृतिक वीर बनने की प्रतिज्ञा करनी चाहिये। महाराष्ट्र में वर्ष का प्रथम दिन गुड़ी पड़वा कहा जाता है। गुड़ी मानव देह का प्रतीक माना जाता है, गुड़ी यानि विजय पताका। भोग पर योग की विजय, वैभव पर विभूति की विजय और विकास पर विचार की विजय।
मंगलता और पवित्रता के वातावरण में सतत् प्रसारित करने वाली इस गुड़ी को फहराने वाले को आत्म निरीक्षण करके यह देखना चाहिये कि मेरा मन शांत, स्थिर और सात्विक बना या नहीं।
सम्राट विक्रमादित्य ने शकों पर विजय के पश्चात विक्रमी संवत शुरू किया था। शास्त्र के अनुसार संवत प्रारंभ करने से पूर्व उक्त सम्राट का यह दायित्व होता था कि उसके राज्य में कोई दुखी-दीन हो। कोई कर्जदार हो। राजा सबके कर्ज चुका दे, सबके दुःख दूर कर दे। वही राजा अपने नाम से संवत शुरू कर सकता है। सम्राट वीर विक्रमादित्य ने भी न्याय और वीरता का मानदण्ड स्थापित किया था।
कैसे मनाएँ यह नव संवत्सर महोत्सव -  
·        इस दिन प्रथम नवरात्र भी होता है, अतः उपवास रखें।
·        स्नान के पश्चात घर के सभी सदस्य मिलकर यज्ञ करे।
·        नए वर्ष के लिये किसी आदत को छोड़ने की तथा किसी नयी अच्छी आदत को सीखने का संकल्प करें।
·        इस दिन किसी मंदिर में परिवार सहित जाकर पूजन करना चाहिये।
·        कथा कीर्तन का आयोजन हो सकता है।

सम्राट विक्रमादित्य अन्य महापुरुषों की कथायें सुनाई जा सकती हैं। इसी दिन संत झूलेलाल, गौतम जयंती भी होती है, डॉ. हेडगेवार जयंती भी इसी दिन है.....मित्रों, रिश्तेदारों को परस्पर शुभकामना संदेश भेजकर.....(कार्ड, फोन, मोबाइल द्वारा............) आपके पत्रों की प्रतीक्षा में

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