Sunday, October 27, 2019

पूरब से पश्चिम तक हर जगह राम .

पूरब से पश्चिम तक हर जगह राम .

भारत की जिवंत संस्कृति, अध्यात्म संस्कृति और आत्मशक्ति के प्रतिनिधि राम और उसकी रामकथा में हैं, राम की कथा चतुर्दिक है. पूरब से पश्चिम तक राम के मूल्य और आदर्श किसी न किसी रूप में मौजूद है, जो भारत की अध्यात्मिक पहचान से सांस्कृतिक पहचान को जोड़ते है, वाल्मीकि की रामायण अपने अलग अलग रूपों में कई देशों में मौजूद है, जैसे- रामवत्थु(बर्मा), रामकियेन अथवा रामकीर्ति (थाईलैंड), रामकोर (कम्बोडिया), मलेराज कथाव (सिंहली), काकविन रामायण(इंडोनेशिया), रामकेर्ति-रियामकेर (कम्बोडिया), काव्यादर्श(तिब्बती), होबुत्सुशु (जापानी), फ्रलक-फ्रलाम-रामजतक(लाओस), हिकायत सेरीराम(मलेशिया), खोतानी रामायण(तुर्किस्तान), जीवक जातक(मंगोलिया), मसीही रामायण(फारसी) आदि. ये ग्रन्थ यह सन्देश देते हैं की राम और उनके आदर्श किसी न किसी रूप में मौजूद है. मेडागास्कर से ऑस्ट्रेलिया तक देश द्वीपों तक राम रमते हैं. अब तो पाश्चात्य देशों में विशेषकर रूस, जर्मनी, अमेरिका आदि देश में राम की प्रतिष्ठा व् प्रासंगिकता बढ़ रही है. श्री राम तमाम देशों की लोक  कलाओं, नुक्कड़ नाटकों व् रामलीलाओं वहां की जनजीवन से जुडी परम्पराओं, नामों, या वंशावलियों में दिखाई देते हैं. मलेशिया में मुस्लिम अपने नाम के साथ राम, लक्ष्मण व् सीता नाम जोड़ते हैं. थाईलैंड में पुराने राजाओं में भारत की तरह राम के खडाऊ लेकर राज करने की परंपरा मौजूद थी और थाई राजा स्वयं को रामवंशी मानते हैं. वहां तो अजुधिया, लवपुरी व् जनकपुर जैसे नगर भी हैं. हिन्दचीन में कुछ शिलालेखों में राम नाम का वर्णन मिलता है यहाँ की मान्यताओं व्  परम्पराओं के अनुसार यहाँ के निवासी स्वयं को वानर कुल नसे उत्पन्न मानते हैं और राम को अपना प्रथम शासक. जावा में राम राष्ट्र में पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिष्टित हैं जबकि सुमात्रा के जनजीवन में रामायण ठीक उसी प्रकार से अनुप्राणित हैं जैसे भारतीय जनजीवन में. दक्षिण पूर्व एशिया में काव्यों के साथ साथ पत्थर की शिलाओं पर भी राम कथा की व्यंजन अपने वैभवशाली रूपों में हुई है. इस दृष्ठि से इंडोनेशिया की प्रम्बनान की शिला चित्रकारी सबसे ऊपर है, जहाँ संपूर्ण रामकथा का अंकन किया गया है. इसके अलावा कम्बोडिया के अंकोरवाट, अन्कोरथाम आदि स्थानों पर रामकथा शिलाओं पर उकेरी गई है. अंकोरवाट का महत्व इसलिए है क्योंकि इसकी प्रस्तुति वाल्मीकि रामायण के अनुरूप हुई हैं. थाईलैंड के बंकोक के राजभवन परिषर के दक्षिणी किनारे स्थित एक बौद्ध विहार में रामकथा के १५२ शैलचित्र है. दक्षिण पूर्व एशिया के उन देशों में जहाँ धर्म इस्लाम होने बाद भी संस्कृति में राम ही रचे बसे हैं राम का चरित्र उनके लोकजीवन में इतना गहराई तक जुड़ा है की राम उनकी संस्कृति हा मूल अधर बन गए हैं. एक विएतनामी कलाकार के अनुसार राम कथा जीने का सही तरीका सिखाती है. यही कारन है की दुनिया की सर्वाधिक मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में रामायण(काकविन रामायण) पवित्र  राष्ट्रीय पुस्तक है. मलेशिया के अनेक मुसलमान रामकथा के मंचन में कलाकार, दर्शक व् आयोजक के रूप में चढ़-बढ़कर हिस्स लेते है. थाईलैंड के अधिकांश निवासी बौद्ध धर्मं के उपासक होने के बाद भी उनके रजा अपने नाम के साथ राम लगते आये हैं. इस दृष्टि से रामायण का मूल स्थान भले ही भारत है पर वह मलेशिया, सिंगापूर, कम्बोडिया, थाईलैंड आदि की संस्कृति का अभिन्न अंग है.