Tuesday, February 27, 2018

जनजाति प्राचीन ग्राम व्यवस्था

कोयापुनेमी पंहादी पारी कुपार लिंगो के व्दारा इस "दुनियां" में सर्वप्रथम 750 गोत्र में बाटा गया जो "प्रकृति सम्मत "बनाये गये .." नार व्यवस्था," "रावेन व्यवस्था, "आदिवासी कोयतोर व्यवस्था," "गोटूल व्यवस्था"बनाया गया था। जो आज भी निरन्तर संचालित होता आ रहा है। पर वही शहर एवं शहर से सटे गांव के कुछ पढ़े लिखे बुद्धिजीवी वर्ग के लोग बहारी अंधविश्वासी संस्कृति,रीति,रिवाज एवं धर्मिक संरचनाओं के आडम्बरो में लीन हो चुके है। जिनको अनादिकाल से चलते आ रही वेल डिज़ाइन नार(गांव) व्य्वस्था जो कि रूढ़ि और प्रथा है जिसमे ग्राम सभा को पांचवी अनुसूची 244 (1 व 2) में पूर्ण स्वशासन एवं नियंत्रण की शक्ति प्राप्त है। जो कि हर किसी को आसानी से समझ नही आती है।
यह लेख समाज के उन पढ़े लिखे बुद्धिजीवी वर्ग के लोगो को नार व्य्वस्था को समझाने एवं उनके अंदर समाज के प्रति अपनी सहभागिता बनाये रखने अपनी रूढ़ि प्रथा को समझाने का एक छोटा सा प्रयास है।

बस्तर में जब कोई गांव(नार)बसाया जाता है। तो सबसे पहले किसी गाँव(नार) के गायता एवं ग्राम प्रमुख के द्वारा गांव(नार) में माटी की स्थापना कि जाति है।जिसे जिमेदारीन कहते है। गांव बसने के बाद आदिवासी गोत्र में पीढ़ी दर पीढ़ी उपासना करने करने वाले पुरखा(देव) होते है, साथ ही गाँव(नार) की सुरक्षा के लिए अन्य (देवी देवताओं) पेन पुरखों को स्थापित किया जाता है।
◆नार व्यवस्था :--जिम्मेदारिन,तलुरमुत्ते,शीतला याया,मावली याया ,दरसवाली, गढ़ियां याया.

◆नार नाग मुख पेनक:--जागा भूमियार्क,भैसासुर राव, भीमालपेन,कडरेंगाल ,भुकरा राव, चूहका राव.

◆10 रावपेन :- राजा राव, कप्पेराव, कोडाराव, हन्दराव, घाटराव, पैटर्न, डण्डराव, बैहाराव, अंगरी राव, बगरी राव.

◆कैना नाग पोरोईंग.. कैना कोडो :--घाट कन्याग, बही कन्याग, बैदर कन्याग, उजरी कन्याग, बगरी कन्याग, सुल्की कन्याग, जलकमति कन्याग, मुरयेर कन्याग, तोन्दे कन्याग!
सभी का दायित्व गांव(नार) की सुरक्षा करना होता है। रावपेन गांव(नार)की सुरक्षा करते है। बस्तर के गांव में अनादिकाल से आदिवासियों के अलावा अन्य जाती के लोग भी निवास करते है। जब यहाँ बाहरी धार्मिक आडम्बरो का आगमन नही हुवा था तब इस नार(गांव) व्य्वस्था के अनुसार सभी समाज जाती के लोग संचालित होते थे तथा इन पेन पुरखों (देवी-देवताओं) की आराधना सभी लोगो के द्वारा की जाती है।प्रत्येक गांव के सभी जातियों में एक निशित प्रकार की धार्मिक व्यवस्था पाया जाता है। तथा उनके द्वारा निशि्चत प्रकार का धार्मिक रूढ़ि प्रथा देव पूजन में पूर्ण योगदान दिया जाता है जैसे कि---
*1)धड़वा--* समाज के लोग के द्वारा देव पूजन समाग्री हेतु समाग्री बनाई जाती है या लाई जाती है। जैसे-- पेन पुरखों (देवी-देवताओं) के आभूषण  बाजूबंद, पैजनी, बाजनी पौड़ी, देव पूजन समाग्री में कलश, गुब्बा, घण्टी, मोहरी, तोड़ी आदि आदि बना कर धार्मिक रूढ़ि प्रथा व्य्वस्था देव कार्य मे सहयोग प्रदान करते है।
*2)लोहार* --- समाज के लोगो के द्वार पूजन समाग्री--- काटाकुरची(काटा झूला), देव मुकुट, बरछी, भाला, घोड़ा, खुटा दिया तथा वाद्ययंत्रों में नगाड़ा, चिलकुली, झुमका बगड़ी आदि बना कर धार्मिक रूढ़ि प्रथा व्य्वस्था देव कार्य मे सहयोग करते है।
*3)कुम्हार ---* समाज के लोगो के द्वारा देव कार्य हेतु----- हाथी, घोड़ा, बेदरी, हुमनी, रूखी दिया, करसा आदि बना कर धार्मिक रूढ़ि प्रथा व्य्वस्था देव कार्य मे सहयोग किया जाता है।
*4)बढ़ाई---* समाज के लोगो के द्वारा देव पूजन हेतु देव पीढा, डूमर सोली, डूमर पायली, देव कुरची, देव झूला आदि का निर्माण कर देव कार्य मे सहयोग दिया जाता है।
*5)कोस्टा/माहार----* समाज के लोगों के द्वारा देव कार्य हेतु कपड़ा बुना जाता है। डांग के ध्वज एवं देवी देवताओं के वस्त्र तैयार करने हेतु आज भी कपड़ा इन्ही के द्वारा बना जाता है।
*6)बंजारा----* समाज के लोगो के द्वारा देवी देवताओं के वस्त्रों को शृंगार किया जाता है। काचडी, जैकेट लहंगा, केटवा जिन्हें कौड़ियों एवं चमकीले रंग बी रंगे पत्थर एवं कांच से सजा कर तयार किया जाता है।
*7)राउत(यादव/अहीर)----* समाज के लोगो के द्वारा पानी लाया जाता है जिससे देवी देवताओ को स्नान कराया जाता है। तथा राउत के द्वारा बनाया गया भोजन सभी को ग्रहण होता है।
*8)तेली---* समाज के लोगो के द्वारा इनके द्वारा घर से बना कर लाया गया तेल से देवी देवताओं के गुड़ी में राउड में दीपक जलाया जाता तथा तेल की व्य्वस्था करता है।
*9)कलार---* समाज का व्यवसाय महुवे की शराब बनाने का था। इनके द्वारा बनाई गई शराब देवताओं, पुरखों को अर्पित एवं विभिन्न देव कार्य हेतु शराब का उपयोग किया जाता है।
‌*10)गाड़ा---* समाज के लोगो के द्वारा देव कार्य में शादी विवाह में वाद्ययन्त्र बजाते है। इनके वाद्ययन्त्र पर देवी देवताओं का नृत्य(जतरा)होता है। जिसमे मोहरी वादक की मुख्य भूमिकाभूमिका होता है | ढफरा , निशान , तुडबुडी आदि वाघ यंत्रो का प्रयोग कर देवी कार्य मे  अपनी अहम भूमिका निभाते है |
*11) सिंसोनार(सोनार) -* समाज के लोग  देवी देवताओ के लिए सोना चांदी के आभुषण का निर्माण करते है तथा पीढी दर पीढी विशेष अवसर पर देवी देवताओ को सजाते है।
*12) मरार (माली)-* समाज के लोग के व्दारा मडाई के दिन देवी देवताओ के लिए निशुल्क फुल और मालाओ की व्यवस्था की जाती है  एवं  विशेष पर्व शादी मे छिंद के पत्ते को गुथ कर  और बनाकर देवताओ  मे चढा कर  देव आराधना  की जाती है

|| यह जानकारी  ली गई है वह गयता, सिरहा पटेल, मांझी ,मुखिया से लिया गया है।।