Thursday, September 18, 2025

मंजिल

अनजान मुशफिर तुम भी हो, 
अनजान मुशफिर हम भी हैं.
अनजान डगर ये क्या जाने, 
रस्ते पे कहीं एक मंजिल भी है.

सरिता की धारा को हमने, 
क्या यूँ ही बहते देखा है.
जल की धारा क्या जाने है, 
इस रस्ते पे कहीं मंजिल भी है.

अनजान निशाना को आखिर, 
कब तक यूँ ही साधोगे.
तीर बेचारा क्या जाने,
कहीं तुम्हारी मंजिल भी है.

यौवन

जितने यौवन हो गये तुमसे, 
उतने यौवन बीते होंगे.
हर यौवन मे सावन आये, 
उतने यौवन मीठे होंगे.

अथक प्रशंसा ना हो मुझसे, 
फिर भी सावन मीठा होगा.
तेरा यौवन जैसे सावन, 
श्रृंगार सामने झूठा होगा.

तेरे यौवन की तरुणाई, 
जैसे सावन घिर घिर आई. 
यौवन को तुम पल्लवित करना, 
वरना साजन रूठा होगा.