Thursday, September 18, 2025

मंजिल

अनजान मुशफिर तुम भी हो, 
अनजान मुशफिर हम भी हैं.
अनजान डगर ये क्या जाने, 
रस्ते पे कहीं एक मंजिल भी है.

सरिता की धारा को हमने, 
क्या यूँ ही बहते देखा है.
जल की धारा क्या जाने है, 
इस रस्ते पे कहीं मंजिल भी है.

अनजान निशाना को आखिर, 
कब तक यूँ ही साधोगे.
तीर बेचारा क्या जाने,
कहीं तुम्हारी मंजिल भी है.

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