Saturday, November 1, 2008

प्रणाम.....

आज इस ब्लॉग जगत में मै एक बार फिर आपके सामने हाज़िर हूँ......आज मै अपने गांव से ब्लॉग लिख रहा हूँ.....मेरा गांव अम्बागढ़ चोकी जो की एक आदिवासी बाहुल है। यहाँ गोंड जनजाति की तादात सबसे ज्यादा है पर अपसोस गोंडी संस्कृति विलुप्त होती जा रही है...यहाँ पहले कभी गोंडी बोली का अच्छा प्रभाव हुवा करता था पर आज वो भी बिल्कुल नगण्य हो गया है। इसका सबसे बड़ा कारण शहरी संस्कृति है....शहरी संस्कृति कोई बुरी नहीं है पैर मेरी सोंच में शहरी और ग्रामीण संस्कृति में तालमेल बहुत जरुरी है..इसी कारण मेरा प्रयास गोंडी संस्कृति को बचाने का है। गोंडी बोली भाषा के सारे मापदंड पूरे करने के बाद भी भाषा के रूप में मान्यता न मिल पाना वाकई दुर्भग्य पूर्ण है।

एक नई सुबह......


मेरा घर .....मेरा आंगन.