Friday, October 11, 2024

मेरी नज़्में

 मेरी नज़्में


मेरे लड़खड़ाते कदमों को सम्हल जाने दो।

हो गई है लावा इसे पिघल जाने दो।

इस दरिया के तूफान को ज़रा टल जाने दो।

सिर्फ लिखना ही मेरा मकसद नहीं है यारों,

मेरी कोशिश है कि इस ज़माने को बदल जाने दो।

इन लड़खड़ाते कदमों को सम्हल जाने दो।।


मेरे लफ्जों में जो जो बात है उसे तुम क्या जानों।

मेरे अश़्कों की सौगात को तुम क्या जानों।

ये मेरा ज़ुनून ही नहीं मेरी ख़्वाइस है यारों।

ज़रा मेरी नज़्मों से उन्हें भी तो जल जाने दो।

मेरे लड़खड़ाते कदमों को ज़रा सम्हल जाने दो।।


Date 19/03/1999

मैं सर्वव्यापी शून्य हूं।

 मैं सर्वव्यापी शून्य हूं।


मैं आदि हूं मैं अनंत हूं,

मैं ही जीवन पर्यन्त हूं।

मैं महात्मा मैं परमात्मा,

मैं ही तेरी आत्मा हूं।।


ना प्रेम हूं ना द्वेस हूं,

ना रूप हूं ना रंग हूं।

मैं अदृश्य मैं अखंडित,

मृत्यु फिर भी शेष हूं।।


ना पुण्य हूं, ना पाप हूं,

ना भूख हूं, ना प्यास हूं।

जन्म से मैं था तुम्हीं का,

अब भी तेरे पास हूं।।


ना सूर्य हूं, ना चंद्र हूं,

ना आकाश हूं, ना पाताल हूं।

ना ही मैं बिन्दु स्वरूप,

ना ही मैं विशाल हूं।।


ना आकार हूं, ना प्रकार हूं,

ना गुण्य हूं, ना तुल्य हूं।

मै तेज तेरा मैं ताप तेरा,

मैं सर्वव्यापी शून्य हूं।।

सफर

 सफर


जिंदगी के चंद लम्हों को,

मैं समेटता चला जा रहा हूं।

मुझे नहीं पता मैं,

कहां जा रहा हूं।


तमन्नाएं बहुत सी,

पर ज़िदगी है कम।

दिलों में कुछ ख्वाब लिए,

चला जा रहा हूं।

मुझे नहीं पता मैं कहां जा रहा हूं।


पत्थर का दिल लिए,

ख्वाबों में मंजिल लिए।

रिस्तों को तोड़कर मैं,

चला जा रहा हूं।

मुझे नहीं पता मैं कहां जा रहा हूं।


दुनिया में ना होगा कोई,

मुझ जैसा तकदीर वाला।

दिल की गहराइयों में लिए ज्वाला मैं,

चला जा रहा हूं।

मुझे नहीं पता मैं कहां जा रहा हूं।

पुकार

 पुकार


आवाज़ की बुलंदियों में,

दर्शकों का काफिला।

तोड़कर मुश्किलें सारी,

मिटा दो वो फासला।


भूल चलो ये मंदिर मस्जि़्ाद,

भूलकर वो सिलसिला।

भूल चुकी है दुनिया सारी,

अब कर लो तुम फैसला।


आज हमारी धरती फिर से,

लगती है वीरान मुझको।

समय नहीं है पास तुम्हारे,

मत खोना तुम हौसला।।