मेरी नज़्में
मेरे लड़खड़ाते कदमों को सम्हल जाने दो।
हो गई है लावा इसे पिघल जाने दो।
इस दरिया के तूफान को ज़रा टल जाने दो।
सिर्फ लिखना ही मेरा मकसद नहीं है यारों,
मेरी कोशिश है कि इस ज़माने को बदल जाने दो।
इन लड़खड़ाते कदमों को सम्हल जाने दो।।
मेरे लफ्जों में जो जो बात है उसे तुम क्या जानों।
मेरे अश़्कों की सौगात को तुम क्या जानों।
ये मेरा ज़ुनून ही नहीं मेरी ख़्वाइस है यारों।
ज़रा मेरी नज़्मों से उन्हें भी तो जल जाने दो।
मेरे लड़खड़ाते कदमों को ज़रा सम्हल जाने दो।।
Date 19/03/1999
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