मैं सर्वव्यापी शून्य हूं।
मैं आदि हूं मैं अनंत हूं,
मैं ही जीवन पर्यन्त हूं।
मैं महात्मा मैं परमात्मा,
मैं ही तेरी आत्मा हूं।।
ना प्रेम हूं ना द्वेस हूं,
ना रूप हूं ना रंग हूं।
मैं अदृश्य मैं अखंडित,
मृत्यु फिर भी शेष हूं।।
ना पुण्य हूं, ना पाप हूं,
ना भूख हूं, ना प्यास हूं।
जन्म से मैं था तुम्हीं का,
अब भी तेरे पास हूं।।
ना सूर्य हूं, ना चंद्र हूं,
ना आकाश हूं, ना पाताल हूं।
ना ही मैं बिन्दु स्वरूप,
ना ही मैं विशाल हूं।।
ना आकार हूं, ना प्रकार हूं,
ना गुण्य हूं, ना तुल्य हूं।
मै तेज तेरा मैं ताप तेरा,
मैं सर्वव्यापी शून्य हूं।।
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