Tuesday, September 16, 2025

चिड़ियों से बात करता हूँ।

जंगल के किनारे एक गाँव है, 
नदी है पेड़ है पहाड़ है। 
पेड़ पर पक्षियाँ हैं, 
पक्षियों की चहचहाहट है। 
कभी कभी मै चिड़ियों से बात करता हूँ। 

घर पर गाय है बैल है भैंस है
घर की रखवाली के लिए एक कूत्ता है
सभी मेरे से दोस्त हैं।  
पास ही एक जंगल है
साल है साजा है डुमर है। 
और भी ना जानें कितने अनगिनत पेंड़ है
मैं पेड़ों की पूजा करता हूँ। 
जो मेरे गाँव की हर ज़रूरत पूरी करते है। 
गाँव मे एक तालाब है
हम सभी साथ में तालाब जाते हैं। 

इन्ही से है मेरा जीवन
इनके बिना मैं कुछ भी नहीं।। 
धरती, नदियाँ, पेड़ मेरे पुराने साथी हैं
हम सबका रिश्ता है अटूट है, अमर है
जल जंगल जमीन, जन और जानवर।
इन पाँच चीजों मे बसती मेरी आत्मा है।। 

संवेदना

पशु पक्षियों की आवाज़ें 
उनके संचार और व्यवहार का हिस्सा हैं, 
पेड़ पौधों की बातें अक्सर 
हमें सुनाई देतें हैं। 
वे अपनी भाषा में हमसे बात करते हैं
हम सभी पहले कभी साथ रहते थे। 
साथ साथ बड़े होते थे। 
वो मुझसे प्रेम करते थे। 
मैं उनके लिये कुछ भी करने के लिए तैयार था। 
आज हम अलग अलग हो गये हैं। 
मैं उनके साथ नहीं रहता। 
वो मुझसे प्रेम भी नहीं करते। 
संवेदना तो बहुत है पर
आज मैं उनके लिए कुछ नहीं कर सकता। 
बस जो कर सकते हैं उनको
 मैं देख सुन व पढ़ ही सकता हूँ
इन अखबारों के माध्यम से। 

गोटुल

गोटुल
मानव जीवन की पहली पाठशाला हूँ
 मैं गोटुल हूँ
मानव मूल्यों, संस्कारों तथा आचार विचार व
व्यवहार को गढ़ने का काम किया है। 
मैंने भारतीय ज्ञान परंपरा को विकसित 
करने का काम किया है।
लोकसंगीत को सुरों में पिरोया है। 
लोकगीतों को विस्तार दिया है।
लोकनाट्य, लोककला जैसे विधा को 
एक आयाम दिया है। 
आज दुनियाँ में सुर संगीत की पहली पाठशाला रही हूँ मैं। 
दुनिया के ज्ञान परंपरा की संवाहक हूँ मैं। 
आदिम युग से मशीन युग तक ले सफर को देखा है मैंने। 
आदिम मानव से रोबोट मानव तक यात्रा का साक्षी होने का गौरव मुझे प्राप्त है। 
मेरी पाठ शाला में मानव मन मे संवेदना पहली जरूरत होती थी। 
पर आज के रोबोट मानव मे इंटलीजेंसी पहली जरूरत हो गई है।