मानव जीवन की पहली पाठशाला हूँ
मैं गोटुल हूँ
मानव मूल्यों, संस्कारों तथा आचार विचार व
व्यवहार को गढ़ने का काम किया है।
मैंने भारतीय ज्ञान परंपरा को विकसित
करने का काम किया है।
लोकसंगीत को सुरों में पिरोया है।
लोकगीतों को विस्तार दिया है।
लोकनाट्य, लोककला जैसे विधा को
एक आयाम दिया है।
आज दुनियाँ में सुर संगीत की पहली पाठशाला रही हूँ मैं।
दुनिया के ज्ञान परंपरा की संवाहक हूँ मैं।
आदिम युग से मशीन युग तक ले सफर को देखा है मैंने।
आदिम मानव से रोबोट मानव तक यात्रा का साक्षी होने का गौरव मुझे प्राप्त है।
मेरी पाठ शाला में मानव मन मे संवेदना पहली जरूरत होती थी।
पर आज के रोबोट मानव मे इंटलीजेंसी पहली जरूरत हो गई है।
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