Tuesday, March 31, 2015

विधि

जैसा की कई विधि से सोने का निर्माण संभव है तथा पूर्व समय में कई अनुभवी रसाचार्यों ने सोने का निर्माण कर समाज को चकित किया, यह गर्व की ही बात है। 6 नवम्बर सन 1983 साप्ताहिक हिन्दुस्तान के अनुसार सन 1942 में पंजाब के कृष्णपाल शर्मा ने ऋषिकेश में मात्र  45 मिनट में पारा के दवारा दो सौ तोला सोना बनाकर रख दी जो उस समय 75 हजार रूपये में बिका तथा वह धनराशि दान में दे दिया गया। उस समय वहा पर महात्मा गाँधी, उनके सचिव श्री महादेव देसाई, और युगल किशोर बिड़ला आदि उपस्थित थे। इससे पहले 26 मई सन 1940 में भी श्री कृष्णपाल शर्मा ने दिल्ली स्थित बिड़ला हॉउस में पारे को शुद्ध सोने में बदलकर प्रत्यक्ष  दिखा दिया था। उस समय भी वहा विशिष्ट गणमान्य  लोग उपस्थित थे।  
          
           बिडला मंदिर  में लगे शिलालेख से भी मिलता है। इस सिलसिले में नागार्जुन का नाम विख्यात तो है ही, जिन्हें स्वर्ण निर्माण में महारत हासिल थी। उनके लिखे कई महत्वपूर्ण ग्रन्थ मौजूद है। उनका अध्ययन करके साधारण व्यक्ति भी भिन्न-भिन्न विधियों से सोना बनाने की प्रक्रिया समझ सकता है। नागार्जुन की संघर्ष कथा किसी आगामी पोस्ट में जरुर दूंगा। यहाँ मैं स्वर्ण निर्माण की सहज विधि के चर्चे पर आता हूँ। और इस समय मैं सिर्फ एक अत्यंत ही सरल विधि को बता रहा हूँ  यह विधि विश्वसनीय और प्रामाणिक है। इसे त्रिधातु विधि भी कहते हैं। यानी तीन  धातुओं को मिलाकर पहले एक कटोरानुमा बर्तन बनाया जाता है। फिर उसमें शुद्ध पारे सहित भिन्न-भिन्न सामग्री  के सहयोग से स्वर्ण बनाया जाता है। बर्तन की निर्माण विधि इस प्रकार है। 
          
            शुद्ध लोहा 500 ग्राम , शुद्द पीतल 500 ग्राम  और शुद्ध कांसा 500 ग्राम लेकर उसे अलग अलग पिघलाएं। पिघल जाने पर तीनो को मिश्रण करके एक कटोरे या कढाई  का रूप दे दें। ध्यान रहे उस बर्तन में कहीं छेद न हो। तीनो धातु शुद्ध और बराबर मात्रा  में हो। ऐसा बर्तन बनाने में दिक्कत हो तो बनाने वाले से ही बनवाले। बर्तन बन जाने के बाद उसे रख लें और बाजार से किसी विश्वसनीय पंसारी की दुकान से 200 ग्राम गंधक , 200 ग्राम नीला थोथा (तुतिया), 200 ग्राम नमक और 200 कुमकुम (रोली) और रस सिंदूर ख़रीदे। इसी प्रकार विश्वसनीय स्तर पर 100 ग्राम शुद्ध पारा और शहद भी खरीद कर लें। ध्यान रहे, गंधक को सभी लोग जानते हैं। नीला थोथा  जिसे तुतिया भी कहते हैं। यह नीले रंग का होता है, यह पुर्णतः जहर होता है। 
          
             सभी सामग्री इकटठा करके गंधक , नीला थोथा, नमक और रोली अलग-अलग कूट पीसकर आपस में मिलादें। अब इसे एक किलो स्वच्छ ताजे पानी में घोल दें। इसके बाद चूल्हा या स्टोव पर आग जलाएं और तीन  धातुओं वाले बने बर्तन में इस घोल को डाले। उसे धीमी आंच पर पकाएं। जब पानी उबलने लगे तो 100 ग्राम पारे को रससिंदूर  में अच्छी तरह से घोटे। पारे का विष निकलकर साफ़ होता जाएगा। उस पारे की गोली बनाएं और उसके ऊपर शहद चिपोड दें। फिर उसे खौलते पानी में सामग्रियों के बीच  धीरे से रख दें।  उसे धीमी आंच पर पकने दें। जब दो तिहाई भाग पानी जल जाए तो पारे के गोले पर ध्यान रखे, वह गोला हल्का हल्का सुनहला होता जाएगा। जब पूरी तरह से सुनहला दिखने लगे तो बर्तन को नीचे  उतार लें। आपके दृढ आत्मविश्वास और परिश्रम से सोने का निर्माण हो चूका रहेगा।

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