Saturday, February 17, 2018

उदारीकरण के दौर में कार्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व की भूमिका

‘‘उदारीकरण के दौर में कार्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व की भूमिका‘‘

वैष्वीकृत अर्थव्यवस्था के इस बदलते हुए आर्थिक एवं व्यावसायिक माहौल में किसी संस्थान के जनसंपर्क महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नई पीढ़ी के पेषेवर उद्योग प्रबंधक अगर व्यवसाय में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो बेहतर सामाजिक उत्तरदायितव की उपयोगिता के सिद्धांत को स्वीकार करना पड़ेगा। उदारीकरण और भूमण्डलीकरण के इस दौर में जब व्यावसायिक चातुर्य अधिक महत्वपूर्ण हो गया है, एैसे में हमारा देष आर्थिक अलगाव में नहीं जी सकता। इसे शेष विष्व के समकक्ष आने के लिए हमारी अर्थव्यवस्था में  गुणात्मक परिवर्तन करने की साहसिक पहल करनी होगी। इस नए आर्थिक वातावरण में अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए भारतीय कम्पनियों को अपनी व्यावसायिक नीतियों के साथ-साथ संगठनात्मक ढांचागत नीतियों में भी गुणात्मक सुधार लाना आवष्यक है।

लोक-जीवन में जनसंपर्क की व्यवस्था को हमेंषा से ही स्वीकारा गया है। बच्चे के जन्म से लेकर विविध संस्कारों से मृत्युपर्यन्त उसके समस्त जीवन या किसी भी मनुष्य का जीवन बिना जनसंपर्क के विविध वृत्तियों के अधूरा ही रह सकता है। लोकजीवन में जनसंपर्क का व्यापक रूप त्यौहारों , उत्सवों और मेलों के रूप में देखा जा सकता है, जिनके माध्यम से नई पीढ़ी अपनी संास्कृतिक मर्यादाओं से परिचित होती है। यही नहीं महात्मा बुद्व (ई.पू. 623-543)और आदि शंकराचार्य (ईसवीं 623-543) के अभियानों और देष भ्रमण को जनसंपर्क या लोकसंपर्क की दृष्टि से देखना उचित होगा, क्योंकि दोनों ही व्यक्तियों ने चारों दिषाओं में संपर्क के लिए देष-भ्रमण के साथ-साथ जनसमुदायों में भाषण दिये तथा निकट संपर्क भी किया तथा पारस्पर मतान्तरों के भ्रमों का निवारण किया। प्राचीनकालीन पाष्चात्य देषों असीरिया, बैबीलोन और सुमेरिया आदि में नरेषों द्वारा अपने कीर्ति के प्रसार के लिए काव्य रचना लिखवाने और मूर्तियां निर्मित कराने का कार्य भी जनसंपर्क का एक माध्यम था।जनसंपर्क कार्य का सर्वप्रथम प्रवर्तन सन् 1903 ई. में पार्कर एण्ड ली ने किया। सन् 1916 में आधुनिक जनसंपर्क परामर्ष का कार्य इवीली, हैरिष एण्ड ली द्वारा आरंभ किया गया। भारत में जनसंपर्क की आधुनिक रूप में स्थापना सन् 1912 में टाटा आइरन एण्ड स्टील कंपनी के सामुदायिक संपर्क कार्यक्रम से आरंभ होती है। 
वर्ष 1950-1970 तक भारत में जनसंपर्क अपनी शैषवास्था में था। आज जिस तरह का जनसंपर्क का विकास हुआ है इसका अनुमान लगाना लगभग असंभव था। उदारीकरण, भूमण्डलीकरण और सूचना तकनीक ने संपूर्ण विष्व को वैष्विक ग्राम में बदल दिया है। आज विष्व आर्थिक क्षेत्र में भारत की उपेक्षा नहीं किया जा सकता है क्योकि यहां उत्पादकों के लिए सक्रिय बाजार मौजूद है। इस कारण यहां विदेषी निवेष की अपार संभावनाएं हैं। आज आर्थिक बाजार एक नई दृष्टि से करवट ले रहा है। इन सभी के परिणामस्वरूप देष में बहुराष्ट्रीय कंपनियों तथा बड़े व्यवसायिक समूहों जैसे टाटा, मिततल, रिलायंस, गोदरेज, विप्रो और इसी तरह की अन्य समूहों के मध्य विलय का वातावरण बना है। जिसके कारण कई नये मु़द्दे उभरकर सामने आये है। अतः इन सभी बदलते परिदृष्य में जनसंपर्क की भूमिका में भी बदलाव आया है जोकार्पोरेट जनसंपर्क के रूप में हमारे सामने है। कार्पोरेट जनसंपर्क को स्थापित करने का श्रेय जार्ज वेस्टिंग हाउस को जाता हैं इन्होंने वर्ष 1889 में अपनी इलेक्ट्रिक कार्पोरेषन की स्थापना की थी। वर्ष 1886 में अपनी संस्था को संगठित किया था। वर्तमान समय में उद्योगों, संस्थाओं, राजनीतिक दलों और व्यवसाय में निचले स्तर पर भी जन स्वीकृति की आवष्यकता है। इसी पर संस्थान और संगठन की सफलता निर्भर करती है। कार्पोरेट जनसंपर्क वस्तुतः दो मुख्य बातों पर ध्यान देता है -
1. संस्थान की छवि निर्माण करना 
2. संस्थान की पहचान स्थापित करना। 

कार्पोरेट जनसंपर्क मुख्यतः प्रयास करता है कि संगठन की छवि एवं पहचान स्थापित हो। छवि निर्माण स्वतः जन मस्तिष्कों की उपज हैं। यहां जनसंपर्क का मुख्य कार्य अपने जन के मध्य संगठन की छवि कैसी है ? जनता संगठन के बारे में क्या सोचते हैं ? अतः कार्पोरेट जनसंपर्क यह प्रयास करता है कि संगठन की छवि और विष्वनीयता हमेषा बनी रहेे।व्यापारिक मामलों की प्रबंध व्यवस्था में कंपनी, संस्थान और जनसमुदाय के बीच संपर्क आज के युग का महत्वपूर्ण कार्य है। किसी भी औद्योगिक संगठन के सामुदायिक संपर्क के क्षेत्र में स्थानीय समुदाय के लिए कल्याणकारी योजनाओं से लेकर सामाजिक जीवन स्तर को उंचा उठाने के स्थाई प्रयासों को लिया जा सकता है। जिसमें जनसमुदाय के अधिक से अधिक व्यक्तियों को रोजगार के साधन उपलब्ध कराना, औषधालय, विद्यालय, आवास तथा स्वच्छ पानी जैसे मूलभूत सुविधाओं को सुनिष्चित करना शामिल है। 
एक आदर्ष संगठन को जन समुदाय के प्रति निम्नांकित सामाजिक उत्तरदायित्वों की पूर्ति किया जाना चाहिए-
1. जनसमुदाय को कंपनी के व्यापार के लाभों में भागीदार होने के पूरे अवसर उपलब्ध कराये जाना चाहिए। इस दृष्टि से लोगों को रोजगार की सहूलियत दी जा सकती है। उन्हे कंपनी के उत्पाद से संबंधित ठेके या दूसरे काम दिये जा सकते हैं।
2. जन समुदाय को स्वास्थ्य, शैक्षणिक, शहर की साफ-सफाई तथा अन्य सामाजिक और सांस्कृतिक सुविधाएं देकर लोगों के जीवन स्तर को उपर उठाने में योगदान दे सकती है।
3. जन समुदाय के साथ मधुर और स्थायी संबंध बनाये रखने के लिए कंपनी को हमेषा ही लोगों से बातचीत करते रहना चाहिए। यदि वे कोई सुझाव देते हैं तो उन्हें यह भी बतलाया जाना चाहिए कि उनके सुझावों के अनुसार क्या कार्यवाही की गई है।
4. कंपनी को प्राकृतिक नैसर्गिक स्रोत साधनों का विवेक पूर्वक दिषा में ही उपयोग करना चाहिए ताकि बहुमूल्य स्रोत दीर्घकाल तक संरक्षित रहें और उस क्षेत्र के भौगोलिक पर्यावरण को किसी प्रकार की हानि न हो।
5. कंपनी के संयत्र, कार्यालय, फैक्टी, वर्कषाप आदि के समीप रहने वाले जन समुदाय को ऐसा ही समझना चाहिए मानों वे कंपनी के व्यापार तथा प्रगति में सहभागी हैं।
6. कंपनी को अपना व्यापार तथा धंधे से संबंधित कामकाज इस ढंग से करना चाहिए ताकि पास पड़ोस के जन समुदाय को कोई विषेष असुविधा न हो।
7. कंपनी के चारों ओर के पर्यावरण की केवल सुरक्षा ही नहीं की जानी चाहिए बल्कि उसे इस रूप में विकसित भी किया जाना चाहिए ताकि कंपनी और जनसमुदाय दोनों को उसका लाभ मिल सके।

उदारीकरण के इस दौर में अंतर्राष्ट्रीय परिदृष्य के सामने कार्पोरेट जनसंपर्क एक चुनौती लेकर आया है। विष्व की शीर्ष कंपनियों के मध्य होड़ लगी हुई है। विषेषकर उदारीकरण के बाद भारत ही नहीं विष्व के परिदृष्य में भी बदलाव आया है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में तथा भारतीय कंपनियों ने विदेषों में अपना पैर जमाना शुरू कर दिया है। वहीं निजी क्षेत्रों के बैंकों, बीमा कंपनियों, बिल्डर्स, शैक्षणिक संस्थानों और वित्तीय कंपनियों की आपसी प्रतिस्पर्धा में कार्पोरेट जनसंपर्क का दायित्व और भी अधिक बढ़ गया। आज स्थिति यह है कि मीडिया, संगीत, फिल्म, साफ्टवेयर उपभोक्ता वस्तुओं से लेकर औद्योगिक क्षेत्र, कार्पोरेट घराने, सेवा क्षेत्रों में कार्पोरेट जनसंपर्क की उपयोगिता बढ़ी है।  आज ज्यादातर अखबार, न्यूज चैनल व तमाम प्रिंट व इलेक्टानिक माध्यमों में व्यवसाय से संबंधित खबरों को प्रमुखता से प्रकाषित व प्रसारित किया जाता है।  



-लेखक
डॉ. आषुतोष मंडावी, सहायक प्राध्यापक, विज्ञापन एवं जनसंपर्क अध्ययन विभाग, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विष्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़

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