आकाश है तो पाताल है,
अग्नि है तो वायु है।
जल है तो धरा है,
वह ही पंचतत्व युक्त आत्मा है।।
वही है!
जिसने धरती को सूर्य के प्रताप से जलते देखा है।
वही है!
जिसने आकाश को चन्द्रमा के आगोश में लिपटते देखा है।।
वही है!
कल की बंजर धरती को आज के लहलहाते खेतों में देखा है।
वही है!
जिसने अपने मन और मेहनत को हर मिटटी में बेचा है।।
वही है!
जिसने तुम्हारी धरती को खून पसीनें से सींचा है।
वही है!
जिनके हर दिन राहों में और हर रात कंदराओं में बीता है।।
वही है!
जिसने अपने प्रेम से इस दुनिया को को जीता है।
हाँ वही है!
तुम्हारी धरोहर जिनसे तुमने जीना सीखा है।
जीना सीखा है।।
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