Thursday, August 28, 2025

विज्ञापन शोध

विज्ञापन में डेमोग्राफिक (जनसांख्यिकीय) और साइकोग्राफिक (मनोवैज्ञानिक) के अलावा निम्नलिखित विश्लेषण भी किया जाता है:

  1. भौगोलिक (Geographic) विश्लेषण - यह उपभोक्ताओं को उनके भौगोलिक स्थान जैसे देश, राज्य, शहर, क्षेत्र आदि के आधार पर विभाजित करता है। इससे पता चलता है कि विज्ञापन किस भौगोलिक क्षेत्र में प्रभावी होगा।

  2. व्यवहारिक (Behavioral) विश्लेषण - यह उपभोक्ता के व्यवहार, जैसे खरीदारी की आदतें, ब्रांड वफादारी, उपयोग की आवृत्ति, उत्पाद के प्रति रुख, और लाभ की चाह आदि को समझता है।

  3. टेक्नोग्राफिक (Technographic) विश्लेषण - यह उपभोक्ताओं द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक और उपकरणों जैसे मोबाइल, लैपटॉप, सॉफ्टवेयर आदि के आधार पर होता है। यह डिजिटल युग में विज्ञापन रणनीतियों के लिए महत्वपूर्ण है।

इस प्रकार, विज्ञापन में डेमोग्राफिक, साइकोग्राफिक के साथ-साथ भौगोलिक, व्यवहारिक और टेक्नोग्राफिक विश्लेषण भी महत्वपूर्ण होते हैं जो विज्ञापन को अधिक प्रभावी और लक्षित बनाने में सहायता करते हैं.विज्ञापन में बिहेवियरल (व्यवहार) लक्ष्यीकरण के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं.

खरीदारी की आदतों पर आधारित विज्ञापन - जैसे यदि कोई ग्राहक बार-बार किसी विशेष प्रकार का उत्पाद या ब्रांड खरीदता है, तो उसे उसी से संबंधित नए उत्पादों का विज्ञापन दिखाना।

ब्राउज़िंग इतिहास के अनुसार विज्ञापन - उपयोगकर्ता ने किन-किन वेबसाइटों या पृष्ठों को देखा है, उसके आधार पर उन उत्पादों या सेवाओं का विज्ञापन प्रस्तुत करना। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति फिटनेस उपकरणों वाली वेबसाइट पर गया है, तो उसे फिटनेस से जुड़े विज्ञापन दिखाए जा सकते हैं।पुनः लक्ष्यीकरण (Retargeting) - जिसने कोई उत्पाद देखा लेकिन खरीदा नहीं, उसे फिर से उसी उत्पाद या संबंधित उत्पादों के विज्ञापन दिखाना।

सत्र व्यवहार के आधार पर विज्ञापन - जैसे किसी वेबसाइट पर बिताए समय, क्लिक किए गए आइटम, या कार्ट में जोड़े गए प्रोडक्ट पर आधारित विज्ञापन देना।

ब्रांड वफादारी के आधार पर विज्ञापन - जिन उपयोगकर्ताओं ने किसी ब्रांड की कई बार खरीदारी की हो, उन्हें उसी ब्रांड के एक्सक्लूसिव ऑफर्स या नए लॉन्च का विज्ञापन दिखाना।इन उदाहरणों से विज्ञापनदाता उपभोक्ता के व्यवहार को समझकर अधिक प्रासंगिक, प्रभावी और व्यक्तिगत विज्ञापन प्रस्तुत कर सकते हैं, जिससे विज्ञापन की सफलता दर बढ़तीपरिभाषाppppppp

परिभाषा

ऑनलाइन बिहेवियारल ऐडवरटाइजिंग (OBA) एक ऐसी तकनीक है जिसमें उपयोगकर्ता की ऑनलाइन गतिविधियों जैसे वेबसाइट विज़िट, खोज क्वेरीज, क्लिक, और अन्य व्यवहार का डेटा एकत्रित किया जाता है। इस डेटा का उपयोग उपयोगकर्ता के रुचि और व्यवहार के आधार पर लक्षित विज्ञापन प्रदान करने के लिए किया जाता है। इसे इंटरस्ट-बेस्ड (रुचि-आधारित) विज्ञापन भी कहा जाता है। OBA उपयोगकर्ताओं को उनके ऑनलाइन व्यवहार के अनुसार व्यक्तिगत और प्रासंगिक विज्ञापन दिखाने में मदद करता है।

घटक

डेटा संग्रहण (Data Collection) - उपयोगकर्ता की गतिविधियों का डेटा इकट्ठा करना, जैसे कि कौन-से पेज देखे गए, किन आइटम्स पर क्लिक किया गया, और क्या खोजा गया। यह डेटा कुकीज, पिक्सल टैग्स आदि के माध्यम से इकट्ठा होता है।

उपयोगकर्ता प्रोफाइलिंग (User Profiling) - एकत्रित डेटा का विश्लेषण कर उपयोगकर्ता की रुचियों, व्यवहार और जनसांख्यिकी के आधार पर प्रोफाइल बनाना

विज्ञापन लक्ष्यीकरण (Ad Targeting) - उपयोगकर्ता की प्रोफाइल के आधार पर उपयुक्त विज्ञापन प्रदर्शित करना

विज्ञापन नेटवर्क (Ad Networks) - विज्ञापनदाताओं और वेबसाइटों के बीच मध्यस्थ का कार्य करना, जो विज्ञापन स्पेस बेचते और खरीदते हैं।

रोचकता और वैयक्तिकरण (Relevance and Personalization) - विज्ञापनों को उपयोगकर्ता की रुचि और व्यवहार के अनुरूप बनाकर अधिक प्रभावी और उपयोगकर्ता-अनुकूल बनाना।

OBA उपयोगकर्ता के ऑनलाइन व्यवहार की गहरी समझ का लाभ उठाता है ताकि विज्ञापन सही समय पर सही व्यक्ति तक पहुंच सकें, जिससे विज्ञापन की प्रभावशीलता बढ़ती है

भारतीय डिजिटल विज्ञापन उद्योग के बारे में प्रमुख जानकारी इस प्रकार है:

उद्योग का आकार और वृद्धि

भारत का विज्ञापन बाजार 2025 में 1.64 लाख करोड़ रुपये तक पहुँचने वाला है, जिसमें डिजिटल विज्ञापन का हिस्सा 60% से अधिक होगा। यह तेजी से बढ़ते हुए बाजार का बड़ा हिस्सा बन चुका है।

डिजिटल विज्ञापन बाजार 2029 तक लगभग 17-19 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, जिसमें 10-15% की कंपाउंडेड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) होगी।।

प्रमुख ट्रेंड और तकनीक

AI, डेटा प्राइवेसी, मिक्स्ड रियलिटी, इमर्सिव टेक्नोलॉजी, और हाइपर-पर्सनलाइजेशन डिजिटल विज्ञापन के नए ट्रेंड हैं, जो उद्योग की दिशा तय कर रहे हैं।

भारत में डिजिटल और टीवी विज्ञापन कुल विज्ञापन खर्च का 86% हिस्सा रखते हैं, जिसमें डिजिटल मीडिया अत्यधिक बढ़ रहा है।

डेटा प्राइवेसी, मिक्स्ड रियलिटी, इमर्सिव टेक्नोलॉजी, और हाइपर-पर्सनलाइजेशन के बारे में जानकारी इस प्रकार है:


डेटा प्राइवेसी

इमर्सिव टेक्नोलॉजी और मिक्स्ड रियलिटी (Mixed Reality) जैसी तकनीकों में उपयोगकर्ताओं का संवेदनशील डेटा जैसे कि बायोमेट्रिक, स्पैशियल और व्यवहारिक जानकारी एकत्रित होती है। इससे डेटा सुरक्षा और प्राइवेसी एक बड़ा मुद्दा बन जाती है क्योंकि यह डेटा अनाधिकृत पहुंच और सुरक्षा उल्लंघनों के लिए लक्षित हो सकता है। इसलिए, प्राइवेसी और सुरक्षा उपायों का कड़ाई से पालन करना अनिवार्य होता है ।


मिक्स्ड रियलिटी (Mixed Reality)

मिक्स्ड रियलिटी वर्चुअल रियलिटी (VR) और ऑगमेंटेड रियलिटी (AR) का संयोजन है, जो उपयोगकर्ता को वास्तविक और वर्चुअल दोनों दुनियाओं के साथ असली समय में इंटरैक्शन करने की सुविधा देता है। यह तकनीक शॉपिंग, इंडस्ट्री, शिक्षा, हेल्थकेयर आदि क्षेत्रों में उच्चतम स्तर की इंटरैक्टिविटी और फ्यूजन अनुभव प्रदान करती है। मिक्स्ड रियलिटी में उपयोगकर्ता वास्तविक और डिजिटल माध्यमों को एक साथ अनुभव करता है ।


इमर्सिव टेक्नोलॉजी (Immersive Technology)

यह तकनीक उपयोगकर्ता को वर्चुअल और वास्तविक दुनिया के बीच एक ऐसा अनुभव देती है जो पूर्णतः वास्तविक या मिश्रित हो सकता है। VR, AR और MR इसके मुख्य भाग हैं। ये तकनीकें उपयोगकर्ता के संज्ञान, भावना, और व्यवहार के आधार पर अनुभव को व्यक्तिगत करने की क्षमता रखती हैं, जिससे उपयोगकर्ता का जुड़ाव (Engagement) बढ़ता है ।


हाइपर-पर्सनलाइजेशन (Hyper-Personalization)

इमर्सिव टेक्नोलॉजी में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग का उपयोग कर बैंकिंग, ई-कॉमर्स, शिक्षा आदि में उपयोगकर्ता के व्यवहार, पसंद और जरूरतों के अनुसार सामग्री और इंटरफेस को कस्टमाइज किया जाता है। यह एक-से-एक इंटरफेस की तरह काम करता है जो उपयोगकर्ता को विशिष्ट, प्रभावी और आकर्षक अनुभव प्रदान करता है 

उद्योग में योगदान और भूमिका

डिजिटल विज्ञापन भारत की आर्थिक समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। यह ब्रांड और उपभोक्ताओं के बीच संबंधों को अधिक मजबूत और व्यक्तिगत बनाता है।

SME, रियल एस्टेट, शिक्षा, BFSI और टेलीकॉम जैसे सेक्टर डिजिटल विज्ञापन में बड़ा निवेश कर रहे हैं।

भविष्य की संभावनाएं

डिजिटल विज्ञापन बाजार में और तेजी से वृद्धि होने की उम्मीद है, जो भारत को वैश्विक विज्ञापन बाजार में शीर्ष 10 में बनाए रखने में मदद करेगा।

2026 तक भारत का डिजिटल विज्ञापन बाजार 70,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है, जो मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र में डिजिटल मीडिया की प्रधानता को दर्शाता है।

निष्कर्ष

भारतीय डिजिटल विज्ञापन उद्योग तेजी से बढ़ रहा है और तकनीकी नवाचारों के साथ एक नया युग स्थापित कर रहा है। डिजिटल विज्ञापन ने पारंपरिक मीडिया के स्थान पर प्रमुख भूमिका हासिल की है और भविष्य में एक महत्वपूर्ण आर्थिक और सामाजिक घटक बनता जा रहा है

भारत में डिजिटल विज्ञापन बाजार के बारे में 2025 के लिए बाजार आकार और CAGR का प्रमुख विवरण इस प्रकार है:

भारत का डिजिटल विज्ञापन बाजार 2025 में लगभग ₹59,200 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है।

डिजिटल विज्ञापन बाजार की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) 2025 तक लगभग 19% के आसपास रहने का अनुमान है।

डिजिटल विज्ञापन अब भारत के कुल विज्ञापन खर्च का लगभग 42-44% हिस्सा नियंत्रित करता है, जो तेजी से बढ़ रहा है।

पूरे विज्ञापन उद्योग की बात करें तो 2025 तक भारत का कुल विज्ञापन बाजार लगभग ₹1.37 लाख करोड़ तक पहुंच सकता है, जिसमें डिजिटल मीडिया की भूमिका सब से बड़ी होगी।

2025-2034 के दौरान भारत में विज्ञापन बाजार का CAGR 11% रहने का अनुमान है, जो लंबी अवधि में मजबूत वृद्धि दर्शाता है।

ये आंकड़े भारत में डिजिटल विज्ञापन उद्योग की तेज़ी से बढ़ती महत्ता और उसे आर्थिक गतिविधियों में बढ़ते योगदान को दर्शाते हैं।

Dentsu और Exchange4Media (ई4एम) द्वारा जारी 'डेंट्सू-e4m डिजिटल ऐडवर्टाइजिंग रिपोर्ट 2025' के अनुसार:

भारत का डिजिटल विज्ञापन बाजार 2025 में 20.2% की वृद्धि दर से बढ़कर लगभग ₹59,200 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है।

यह वृद्धि मुख्यतः तकनीकी प्रगति, उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव और डिजिटल प्लेटफॉर्म की बढ़ती पहुंच के कारण हो रही है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2024 में भारत का डिजिटल विज्ञापन बाजार ₹49,251 करोड़ था, जो पिछले वर्ष की तुलना में 21.1% अधिक था।

डिजिटल मीडिया भारत के कुल विज्ञापन खर्च का लगभग 49% हिस्सा है, और इसका योगदान बढ़ने की उम्मीद है।

सोशल मीडिया, वीडियो प्लेटफॉर्म्स और एआई संचालित विज्ञापन डिजिटल मार्केटिंग के मुख्य प्रेरक बन गए हैं।

डिजिटल विज्ञापन के साथ-साथ टीवी, ओटीटी, प्रिंट मीडिया भी अपने-अपने क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और एकीकृत 'फिजिटल' मॉडल की ओर बढ़ रहे हैं जिससे उपभोक्ता अनुभव बेहतर बनता है।

इस रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय डिजिटल विज्ञापन उद्योग अभूतपूर्व विकास देख रहा है और तकनीकी नवाचारों तथा उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव के कारण इसका विस्तार जारी रहेगा.Dentsu और Exchange4Media (e4m) द्वारा प्रकाशित "Dentsu-e4m डिजिटल ऐडवर्टाइजिंग रिपोर्ट 2025" के अनुसार, भारत का डिजिटल विज्ञापन बाजार 2025 में लगभग ₹59,200 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है, जो 20.2% की वृद्धि दर से बढ़ेगा।

रिपोर्ट में यह बताया गया है कि 2024 में डिजिटल विज्ञापन बाजार ₹49,251 करोड़ था, जो पिछले साल की तुलना में 21.1% की वृद्धि दर्शाता है। डिजिटल मीडिया कुल विज्ञापन खर्च का लगभग 49% हिस्सा अब नियंत्रित करता है। सोशल मीडिया, वीडियो प्लेटफॉर्म्स और AI-संचालित विज्ञापन इसकी बढ़त के मुख्य कारण हैं।

इसके साथ ही, टीवी, ओटीटी और प्रिंट मीडिया भी अपने-अपने प्लेटफॉर्म पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, और एकीकृत 'फिजिटल' (डिजिटल + फिजिकल) विज्ञापन मॉडल की ओर मार्केट बढ़ रहा है जो उपभोक्ता अनुभव को बेहतर बनाता है।

यह रिपोर्ट इस बात को भी रेखांकित करती है कि डिजिटल विज्ञापन तकनीक, उपभोक्ता व्यवहार, और प्लेटर्फॉर्म एक्सेस में हो रहे बदलाव भारतीय डिजिटल विज्ञापन उद्योग को तेजी से विकसित कर रहे हैं

भारत में डिजिटल विज्ञापन 2025 के ₹59,200 करोड़ के बाजार आकार का स्रोत विश्लेषण निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं द्वारा समझा जा सकता है:

प्रमुख स्रोत और घटक

वीडियो विज्ञापन (Video Advertising)

यह डिजिटल विज्ञापन का सबसे बड़ा हिस्सा है, जो कुल डिजिटल विज्ञापन खर्च का लगभग 27% हिस्सा रखता है। वीडियो विज्ञापन में 2024 में 10% की वृद्धि हुई और इसका मूल्य ₹12,209 करोड़ तक पहुंचा है।

सोशल मीडिया विज्ञापन (Social Media Advertising)

यह दूसरा बड़ा स्रोत है, जो डिजिटल विज्ञापन खर्च में 23% का योगदान देता है। 2024 में सोशल मीडिया विज्ञापन में 21% की वृद्धि हुई, और इसका मूल्य ₹10,506 करोड़ तक पहुंचा।

ई-कॉमर्स और सर्च विज्ञापन (E-commerce & Search Advertising)

इन दोनों का संयुक्त योगदान डिजिटल विज्ञापन खर्च का लगभग 18% है। ई-कॉमर्स विज्ञापन 17% जबकि सर्च विज्ञापन 15% की वृद्धि दर पर हैं।

कनेक्टेड टीवी (Connected TV या CTV) विज्ञापन

ये तेज़ी से उभर रहा खंड है, जिसमें 2024 में लगभग 35% की वृद्धि हुई और इसका बाजार आकार ₹1,500 करोड़ तक पहुंचा। 2025 तक CTV का राजस्व ₹2,300-2,500 करोड़ तक आने की उम्मीद है।

इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग और क्षेत्रीय भाषाओं का प्रभाव

IPL जैसे घटनाओं के दौरान सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर निवेश बढ़ा है। क्षेत्रीय भाषाओं में कंटेंट का प्रादुर्भाव विज्ञापन खर्च को और बढ़ा रहा है।

टेक्नोलॉजी और AI आधारित पर्सनलाइजेशन

AI-आधारित विज्ञापन तकनीकें ग्राहक अनुभव को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं और डिजिटल विज्ञापन की प्रभावशीलता बढ़ा रही हैं।

निष्कर्ष

डिजिटल विज्ञापन में वीडियो, सोशल मीडिया, ई-कॉमर्स, सर्च, और कनेक्टेड टीवी जैसे स्रोतों का संतुलित योगदान है। तकनीकी उन्नति, उपभोक्ता व्यवहार, क्षेत्रीय भाषाओं की बढ़ती मांग और इवेंट-आधारित विज्ञापन डिजिटल विज्ञापन बाजार को 2025 तक ₹59,200 करोड़ तक पहुंचाने के मुख्य कारण हैं।यह विश्लेषण Dentsu, GroupM और अन्य मार्केट रिपोट्र्स पर आधारित है, जो भारत के डिजिटल विज्ञापन उद्योग के विस्तार और विविधता को दर्शाता है

भारत डिजिटल विज्ञापन उद्योग का समग्र डेटा और ट्रेंड्स इस प्रकार हैं:

उद्योग का आकार और वृद्धि

भारत का विज्ञापन बाजार 2025 में लगभग ₹1,64,137 करोड़ तक पहुंचने वाला है, जिसमें डिजिटल विज्ञापन का हिस्सा 60% से अधिक होगा। यह तेजी से बढ़ते हुए बाजार का बड़ा हिस्सा बन चुका है।

डिजिटल विज्ञापन में 2024 में 21% की वृद्धि देखी गई, जबकि टेलीविजन, प्रिंट और रेडियो जैसे पारंपरिक मीडिया में गिरावट आई है।

डिजिटल और टीवी दोनों मिलाकर कुल विज्ञापन खर्च का 86% हिस्सा हैं, और स्ट्रीमिंग टीवी का हिस्सा 12.6% तक पहुंच चुका है।

भारत अब वैश्विक विज्ञापन बाजार में शीर्ष 10 विकासशील बाजारों में से एक बन गया है।

प्रमुख ट्रेंड्स

AI और डेटा प्राइवेसी: कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डेटा सुरक्षा डिजिटल मार्केटिंग के मुख्य ट्रेंड हैं। AI कस्टमर इंटरैक्शन, पर्सनलाइजेशन, और अभियान प्रबंधन में मदद करता है।

वीडियो और सोशल मीडिया का दबदबा: डिजिटल विज्ञापन में वीडियो और सोशल मीडिया का बड़ा हिस्सा है, जो तेजी से बढ़ रहा है। IPL जैसे इवेंट सोशल मीडिया विज्ञापन को बढ़ावा देते हैं।

कनेक्टेड टीवी (CTV): CTV विज्ञापन तेजी से बढ़ रहा है और हाइपर-पर्सनलाइजेशन को बढ़ावा दे रहा है।

रिटेल मीडिया और ई-कॉमर्स: ऑनलाइन और ऑफलाइन की एकीकरण रणनीतियां तेजी से अपनाई जा रही हैं, जिससे रिटेल मीडिया का विस्तार हुआ है।

पारंपरिक मीडिया में गिरावट: टेलीविजन, प्रिंट और रेडियो विज्ञापन में कमी आई है, जो डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है।

उपभोक्ता व्यवहार और प्रवृत्तियां

उपभोक्ता अब सोशल मीडिया, ओटीटी, गेमिंग, और ऑनलाइन कंटेंट प्लेटफॉर्म पर ज्यादा समय व्यतीत कर रहे हैं, जिससे डिजिटल विज्ञापन की मांग बढ़ी है।

ब्रैंड्स अधिक डेटा-संचालित, लक्ष्यित और इंटरेक्टिव अभियानों पर ध्यान दे रहे हैं, ताकि ROI बेहतर हो सके।

आर्थिक प्रभाव

डिजिटल विज्ञापन तेजी से भारत की जीडीपी में योगदान दे रहा है और कई सेक्टर्स जैसे BFSI, शिक्षा, रियल एस्टेट, टेलीकॉम में इसका निवेश बढ़ा है।

मीडिया और मनोरंजन उद्योग में डिजिटल प्लेटफॉर्म का प्रभुत्व बढ़ रहा है।

निष्कर्ष

भारत का डिजिटल विज्ञापन उद्योग तेज़ी से बढ़ रहा है, और AI, वीडियो, सामाजिक मीडिया, और कनेक्टेड टीवी इसके मुख्य अभिनेताओं में से हैं। यह उद्योग पारंपरिक विज्ञापन माध्यमों को पीछे छोड़ते हुए भारत की आर्थिक और डिजिटल प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है

GroupM की TYNY (This Year Next Year) 2025 रिपोर्ट के अनुसार, भारत का डिजिटल विज्ञापन बाजार 2025 में निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं पर आधारित है:

कुल विज्ञापन बाजार और वृद्धि

भारत का कुल विज्ञापन बाजार 2025 में 7% बढ़कर ₹1,64,137 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है।

डिजिटल विज्ञापन खर्च लगभग 11.5% की वृद्धि के साथ ₹99,137 करोड़ तक पहुंच जाएगा, जो कुल विज्ञापन खर्च का 60% से अधिक हिस्सा होगा।

डिजिटल विज्ञापन में ब्रेकडाउन

वीडियो और सोशल मीडिया प्लेटफार्म बड़े मंच हैं, जो डिजिटल विज्ञापन के प्रमुख हिस्से को नियंत्रित करते हैं।

प्रोग्रामेटिक CTV (Connected TV) और AI-संचालित रिटेल मीडिया तेजी से बढ़ रहे प्रारूप हैं।

AI आधारित वैयक्तिकरण, डेटा क्लीन रूम्स, और मिक्स्ड रियलिटी तकनीक मार्केटिंग अनुभव को बदल रहे हैं।

प्रमुख उद्योग और क्षेत्र

SME, रियल एस्टेट, शिक्षा, BFSI, और टेक/टेलीकॉम क्षेत्र विज्ञापन खर्च का लगभग 60% हिस्सा प्रदान करते हैं।

EV, फिनटेक और गेमिंग जैसे उभरते क्षेत्र भी विज्ञापन में तेजी से निवेश कर रहे हैं।

उपभोक्ता व्यवहार और ट्रेंड्स

डिजिटल पर उपभोक्ता जुड़ाव बढ़ रहा है, खासकर मोबाइल और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर।

ब्रांड्स अधिक डेटा और प्राइवेसी-केंद्रित रणनीतियां अपना रहे हैं, जो प्रभावी और पारदर्शी विज्ञापन को बढ़ावा देती हैं।

GroupM के हेड ऑफ बिजनेस इंटेलिजेंस प्रवीन शेख के अनुसार, भारत के विज्ञापन बाजार में यह वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती, डिजिटल प्लेटफॉर्म की उपलब्धता और उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव को दर्शाती है। डिजिटल विज्ञापन खर्च 2025 तक ₹99,137 करोड़ पहुंचने का अनुमान है, जो तेजी से बढ़ रहा क्षेत्र है

2025 में भारत के डिजिटल विज्ञापन उद्योग का चैनलवार प्रतिशत विभाजन और प्रमुख विवरण इस प्रकार हैं:

चैनल / माध्यम प्रतिशत योगदान (लगभग) विवरण

वीडियो विज्ञापन 27% डिजिटल विज्ञापन का सबसे बड़ा हिस्सा, 2024 में 10% वृद्धि के साथ ₹12,209 करोड़ तक पहुंचा।

सोशल मीडिया विज्ञापन 23% तेजी से बढ़ता क्षेत्र, 21% की वृद्धि के साथ ₹10,506 करोड़ तक।

ई-कॉमर्स विज्ञापन ~10-12% ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों पर विज्ञापन का बड़ा हिस्सा, 17% की वृद्धि दर।

सर्च विज्ञापन ~6-8% ऑनलाइन सर्च माध्यमों पर आधारित विज्ञापन, 15% की वृद्धि दर।

कनेक्टेड टीवी (CTV) ~4% तेजी से उभरता प्रारूप, 2024 में 35% की वृद्धि के साथ ₹1,500 करोड़ से बढ़कर ₹2,300-2,500 करोड़ तक जा रहा है।

अन्य डिजिटल माध्यम शेष प्रतिशत इनमें डिजिटल ऑउट-ऑफ-होम (DOOH), इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग और अन्य नए स्वरूप शामिल हैं।

समग्र ट्रेंड्स

डिजिटल प्लेटफॉर्म पर विज्ञापन का हिस्सा लगातार बढ़ रहा है, जो 2025 में कुल विज्ञापन खर्च का लगभग 44-46% तक पहुंच सकता है।

पारंपरिक मीडिया जैसे टीवी, प्रिंट और रेडियो का हिस्सा घट रहा है। TV के हिस्से में 2023 से 2025 तक गिरावट दिख रही है जो 32% से घटकर 24% तक आ सकता है।

डिजिटल विज्ञापन में वीडियो और सोशल मीडिया का दबदबा है, जो उपभोक्ता जुड़ाव और व्यूअरशिप के कारण हैं।

कनेक्टेड टीवी (CTV) और प्रोग्रामेटिक विज्ञापन जैसे नए प्रारूप तेजी से उभर रहे हैं।

यह चैनलवार विभाजन भारत के डिजिटल विज्ञापन उद्योग की विविधता और विकासशीलता को दर्शाता है, जिसमें टेक्नोलॉजी, उपभोक्ता व्यवहार और मीडिया उपभोग की गतिविधियां प्रमुख भूमिका निभा रही हैं

Connected TV (CTV) पर 2025 में भारत में निम्नलिखित मुख्य तथ्य, ट्रेंड्स और प्रभाव देखे जा रहे हैं:

CTV क्या है?

Connected TV (CTV) स्मार्ट टीवी और इंटरनेट से जुड़ी स्ट्रीमिंग डिवाइसेज को कहते हैं, जिनके माध्यम से डिजिटल वीडियो कंटेंट बड़ी स्क्रीन पर देखा जाता है।

2025 तक भारत में लगभग 60 मिलियन से अधिक घरों में CTV पहुंचने की उम्मीद है, जो पिछले वर्षों से चार गुना वृद्धि दर्शाता है।

विज्ञापन की प्रमुख विशेषताएं

CTV विज्ञापन डिजिटल विज्ञापन की परंपरागत सीमा से परे जाकर इंटरैक्टिव और वैयक्तिकृत विज्ञापन प्रदान करता है।

विज्ञापनदार घरों, उपयोगकर्ताओं के डेमोग्राफिक्स, भूगोल, भाषाई प्राथमिकता आदि के आधार पर सटीक लक्ष्यीकरण कर सकते हैं।

QR कोड, शॉपेबल वीडियो, गेमिफिकेशन, और AR जैसे क्रिएटिव फॉर्मेट्स CTV विज्ञापनों को अधिक एंगेजिंग बनाते हैं।

CTV विज्ञापन में >90% एड कम्प्लीशन रेट और 23% बेहतर ROI होता है पारंपरिक टीवी की तुलना में।

2025 के ट्रेंड्स और तकनीकी विकास

Free Ad Supported Streaming TV (FAST) चैनल्स का विकास जो बिना सब्सक्रिप्शन के विज्ञापन के साथ कंटेंट देते हैं।

regional content और localized ads का महत्व बढ़ रहा है, जिससे अलग-अलग भाषाई वर्गों को लक्षित किया जा रहा है।

AI और मशीन लर्निंग आधारित मीडिया प्लानिंग, ओमनी-चैनल कैंपेन, और रियल-टाइम डेटा अनालिसिस लोकप्रिय हो रहे हैं।

CTV विज्ञापन जनरेशन AI के उपयोग से क्रिएटिव और वैयक्तिकृत होते जा रहे हैं।

भारत में महत्व

CTV भारतीय बाजार में मुख्यधारा का हिस्सा बन चुका है, तेज़ी से बढ़ते इंटरनेट और सस्ते स्मार्ट टीवी के कारण।

यह पारंपरिक TV का विकल्प बनकर उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव ला रहा है।

ब्रांड इसके माध्यम से बड़े पैमाने पर प्रभावशाली और मापन योग्य अभियान चला पा रहे हैं।

उदाहरण

Samsung India का CTV-फर्स्ट अभियान YouTube CTV पर 80% घरों तक पहुंचा, 2x विज्ञापन रिकॉल और 5x ब्रांड जागरूकता हासिल की।

संक्षेप में, Connected TV 2025 में भारत के डिजिटल विज्ञापन परिदृश्य का एक प्रमुख केंद्र बन गया है, जो सटीक लक्ष्यीकरण, मापन, और इंटरेक्टिविटी के साथ नया अनुभव दे रहा है

TYNY 2025 रिपोर्ट के अनुसार, प्रोग्रामैटिक CTV (Connected TV) और रिटेल मीडिया डिजिटल विज्ञापन उद्योग में महत्वपूर्ण प्रभाव डाल रहे हैं:

प्रोग्रामैटिक CTV प्रभाव

CTV ने 2025 में विज्ञापन परिदृश्य में क्रांति ला दी है, ब्रांड्स को बड़े पैमाने पर पहुंच के साथ-साथ प्रदर्शन-उन्मुख परिणाम प्रदान करता है।

CTV की विशेषताएं जैसे सटीक लक्ष्यीकरण, इंटरैक्टिव विज्ञापन, और बेहतर मापन इसे पारंपरिक टीवी से अलग और प्रभावी बनाती हैं।

भारतीय मार्केट में CTV का महत्व तेजी से बढ़ रहा है, जहां यह टियर-3 शहरों तक पहुंच बना रहा है और आभासी विज्ञापन और हाइपर-पर्सनलाइजेशन में जोर दे रहा है।

QR कोड, गेमिफिकेशन और AR जैसे क्रिएटिव फॉर्मेट्स इसके साथ इस्तेमाल किए जा रहे हैं, जिससे विज्ञापन प्रभावशीलता और एंगेजमेंट में 10-15% की वृद्धि हुई है।

CTV पर विज्ञापन मापन के लिए क्लीन रूम टेक्नोलॉजी और AI आधारित वैयक्तिकरण तेजी से अपनाया जा रहा है।

रिटेल मीडिया प्रभाव

रिटेल मीडिया ने डिजिटल विज्ञापन में नया आयाम जोड़ा है, जहां ब्रांड्स सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचने के लिए रिटेलर के प्रथम-पक्ष डेटा का उपयोग करते हैं।

यह अधिक पारदर्शी, लक्षित और प्रभावी विज्ञापन बनाने में मदद करता है, विशेष रूप से ई-कॉमर्स और ऑफलाइन रिटेल के बीच पुल जोड़ते हुए।

2025 में रिटेल मीडिया नेटवर्क की बढ़ती संख्या और उनकी प्रभावशीलता विज्ञापन तकनीक में बड़े निवेश का कारण हैं।

रिटेल मीडिया डेटा क्लीनरूम और प्रोग्रामैटिक प्लेटफॉर्म के साथ जुड़ा हुआ है, जो विज्ञापन की प्राथमिकता और मापन को बेहतर बनाता है।

समग्र प्रभाव

ये दोनों क्षेत्र विज्ञापन उद्योग को अधिक डेटा-संचालित, ग्राहक-केंद्रित और प्रदर्शन उन्मुख बना रहे हैं।

मार्केटर्स की रणनीतियाँ अब AI, डेटा क्लीन रूम, और इमर्सिव अनुभवों पर केंद्रित हो रही हैं, जिससे ROI बेहतर हो रहा है।

यह प्रभाव भारत समेत विश्व के डिजिटल विज्ञापन बाजार में नवाचार और तेजी से बढ़ते ट्रेंड्स को दर्शाता है और 2025 के लिए महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है

2025 में DOOH (Digital Out of Home) और OTT (Over-The-Top) का डिजिटल विज्ञापन उद्योग में महत्वपूर्ण प्रभाव है, जो निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं से समझा जा सकता है:

DOOH विज्ञापन का प्रभाव

DOOH विज्ञापन डिजिटल बिलबोर्ड, स्क्रीन, और सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित होते हैं, जो पारंपरिक आउटडोर विज्ञापन की तुलना में अधिक प्रभावी और लक्षित होते हैं।

5G और तकनीकी प्रगति के कारण DOOH विज्ञापन तेजी से बढ़ रहे हैं, जो रीयल-टाइम डेटा के आधार पर ज्यादा प्रासंगिक विज्ञापन दिखाते हैं।

AI-संचालित ऑडियंस मापन और प्रोग्रामैटिक विज्ञापन के कारण DOOH की पहुंच और प्रभावशीलता में लगातार वृद्धि हो रही है।

इनडोर DOOH विज्ञापन और रिटेल मीडिया नेटवर्क मिलकर ग्राहकों के खरीद अनुभव को बेहतर बनाते हैं और विज्ञापन के प्रभाव को सुदृढ़ करते हैं।

OTT विज्ञापन का प्रभाव

OTT प्लेटफॉर्म जैसे Netflix, Amazon Prime, Disney+ Hotstar आदि डिजिटल वीडियो कंटेंट के प्रमुख स्रोत हैं, जहां विज्ञापन दर्शकों तक सीधे पहुँचते हैं।

OTT विज्ञापन इंटरैक्टिव, वैयक्तिकृत और डेटा-संचालित होते हैं, जो उपभोक्ता की रुचि और व्यवहार के अनुसार लक्षित किए जाते हैं।

OTT विज्ञापन गति और दर्शकों की पसंद के कारण पारंपरिक टीवी विज्ञापन को टक्कर दे रहे हैं।

AI और मशीन लर्निंग द्वारा समर्थित मीडिया प्लानिंग और कैम्पेन रियल-टाइम में OTT विज्ञापन को और प्रभावी बना रहे हैं।

संयुक्त प्रभाव

DOOH और OTT दोनों डिजिटल विज्ञापन के नए आयाम खोल रहे हैं, जहां DOOH अधिक भौगोलिक और सार्वजनिक जगहों पर प्रभावी है, वहीं OTT व्यक्तिगत उपभोक्ता जुड़ाव बढ़ाने में सक्षम है।

ये दोनों माध्यम विपणक को व्यापक, लक्षित और मापन योग्य विज्ञापन अभियान चलाने की अनुमति देते हैं, जिससे विज्ञापन का ROI बेहतर होता है।

तकनीकी नवाचार, डेटा प्राइवेसी, और उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव के साथ, DOOH और OTT 2025 में डिजिटल विज्ञापन उद्योग के महत्वपूर्ण स्तंभ बन गए हैं।

इस प्रकार, DOOH और OTT ने 2025 में डिजिटल विज्ञापन को अधिक प्रभावशाली, पारदर्शी और उपभोक्ता-केंद्रित बना दिया है, जिससे उद्योग को नए अवसर और चुनौतियाँ मिली हैं

2025 में भारत में DOOH (Digital Out of Home) और OTT (Over-The-Top) के संयुक्त डिजिटल विज्ञापन खर्च का अनुमान इस प्रकार है:

कुल भारत में डिजिटल विज्ञापन खर्च लगभग ₹59,200 करोड़ के करीब है, जिसमें DOOH और OTT दोनों का महत्वपूर्ण योगदान है।

वैश्विक रूप से 2025 में OOH (Out of Home) विज्ञापन बाजार का आकार लगभग 52 बिलियन डॉलर होगा, जिसमें से 41% डिजिटल OOH (DOOH) हिस्सा बनाता है। भारत में इसकी कीमत लगभग 520 मिलियन डॉलर (₹4200 करोड़ के करीब) होने का अनुमान है।

OTT विज्ञापन बाजार भी तेजी से बढ़ रहा है। भारत में OTT का राजस्व 2025 तक ₹12,000 करोड़ तक पहुंच सकता है, जो डिजिटल विज्ञापन बाजार का एक बड़ा हिस्सा है। OTT का CAGR लगभग 15% के आसपास है।

दोनों प्लेटफार्म मिलकर डिजिटल विज्ञापन के नए और तेजी से बढ़ते क्षेत्रों के रूप में उद्योग को नए अवसर प्रदान कर रहे हैं। ये पारंपरिक मीडिया की तुलना में अधिक लक्षित, डेटा-संचालित और प्रभावी हैं।

इस प्रकार, DOOH और OTT डिजिटल विज्ञापन बाजार के महत्वपूर्ण स्तंभ बन गए हैं, जो भारत में डिजिटल विज्ञापन खर्च के बड़े हिस्से को नियंत्रित करते हैं और 2025 में इसका प्रबल विस्तार होगा

ACR (Automatic Content Recognition) तकनीक एक एडवांस्ड टेक्नोलॉजी है जो टीवी या अन्य मीडिया डिवाइसेज पर चलने वाले कंटेंट को रीयल-टाइम में पहचानने और ट्रैक करने में सक्षम होती है।

ACR तकनीक क्या है?

यह तकनीक ऑडियो, वीडियो, या अन्य मल्टीमीडिया सिग्नल की पहचान करती है और उसे एक डेटाबेस में रखे गए कंटेंट के साथ मैच करती है।

ACR सॉफ़्टवेयर डिवाइस पर इंस्टॉल होता है और जब भी कोई कंटेंट प्ले होता है, तो वह उसका शॉर्ट स्निपेट रिकॉर्ड कर उसे क्लाउड डेटा बेस से मिलाता है।

इस तरह से टीवी पर कौन सा शो या विज्ञापन कब और कितनी बार दिख रहा है, इसकी सटीक जानकारी मिलती है।

CTV (Connected TV) में ACR की भूमिका

CTV पर ACR तकनीक का उपयोग दर्शकों के व्यूइंग पैटर्न को समझने, लाइक-डिसलाइक, और विज्ञापन प्रभाव का मापन करने के लिए किया जाता है।

यह विज्ञापन देने वालों को उनकी विज्ञापन रणनीति को ऑप्टिमाइज करने और सही लक्षित दर्शकों तक पहुँचने में मदद करता है।


ACR के माध्यम से CTV प्लेटफ़ॉर्म उपयोगकर्ताओं के व्यवहार और रुचि के आधार पर वैयक्तिकृत विज्ञापन दिखाने में समर्थ होते हैं।


इससे विज्ञापनदाता और मीडिया एजेंसियों को वास्तविक समय में डेटा उपलब्ध हो जाता है, जिससे वे अपने अभियानों का बेहतर प्रबंधन कर पाते हैं।


संक्षेप में, ACR तकनीक CTV विज्ञापन उद्योग में अधिक प्रभावी, लक्ष्यित और डेटा-संचालित विज्ञापन प्रदर्शन के लिए एक आवश्यक उपकरण बन गया है जो विज्ञापन की सफलता मापने और उपभोक्ता अनुभव बढ़ाने में मदद करता है

ACR (Automatic Content Recognition) तकनीक की कार्यप्रणाली और श्रोत उदाहरण इस प्रकार हैं:


कार्यप्रणाली

डेटा कैप्चरिंग (Data Capturing): ACR तकनीक डिवाइस (जैसे स्मार्ट टीवी, CTV) पर चल रहे ऑडियो-विज़ुअल कंटेंट का एक शॉर्ट स्निपेट रिकॉर्ड करती है।


सिग्नल प्रोसेसिंग (Signal Processing): यह स्निपेट सिग्नल प्रोसेसिंग तकनीकों के जरिए डिजिटल सिग्नल (जैसे ऑडियो फिंगरप्रिंटिंग) में बदला जाता है।


डेटाबेस मैचिंग (Database Matching): इस डिजिटल फिंगरप्रिंट को क्लाउड-आधारित कंटेंट की विस्तृत लाइब्रेरी से मिलाया जाता है जो पहले से इंडेक्स्ड होती है।


कंटेंट पहचान (Content Identification): मैचिंग के बाद डिवाइस को यह पता चलता है कि कौन-सा प्रोग्राम, फिल्म, या विज्ञापन चल रहा है।


रिपोर्टिंग और विश्लेषण (Reporting and Analytics): यह डेटा विज्ञापनकर्ताओं, मीडिया कंपनियों आदि को रियल-टाइम विज्ञापन प्रदर्शन, उपयोगकर्ता व्यवहार, और ट्रेंड्स के लिए रिपोर्ट करता है।


श्रोत उदाहरण

नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, हॉटस्टार जैसे OTT प्लेटफॉर्म्स ACR का उपयोग करते हैं ताकि यह पता लग सके कि उपयोगकर्ता किस कंटेंट को देख रहे हैं और उसी आधार पर विज्ञापन या सुझाव प्रदान करें।


स्मार्ट टीवी ब्रांड्स (जैसे सैमसंग, एलजी) में ACR तकनीक इंस्टॉल होती है जो टेलीविजन देखने के पैटर्न को ट्रैक करती है और विज्ञापन तकनीक को ऑप्टिमाइज़ करती है।


CTV प्लेटफॉर्म्स (जैसे रुकू, अमेज़न फायर TV) भी ACR का उपयोग करके विज्ञापनों की प्रभावशीलता मापन और लक्षित विज्ञापन में सहायता करते हैं।


ACR तकनीक की मदद से विज्ञापनदाता और मीडिया कम्पनियां उपभोक्ता व्यवहार को गहराई से समझकर विज्ञापन अभियानों को बेहतर मोड़ पर ले जा सकती हैं, जिससे ROI बढ़ता है और उपयोगकर्ता अनुभव व्यक्तिगत होता है।


यह तकनीक डेटा-संचालित और मापन योग्य डिजिटल विज्ञापन के लिए महत्वपूर्ण आधार बन चुकी है

Automatic Content Recognition (ACR) तकनीक का उद्योग पर प्रभाव व्यापक और गहरा है, विशेषकर डिजिटल मीडिया और विज्ञापन क्षेत्रों में।


उद्योग पर ACR के प्रभाव

व्यूअरशिप डेटा और विश्लेषण में सुधार

ACR तकनीक स्मार्ट डिवाइसेज से स्क्रीन पर चल रहे कंटेंट की पहचान करके वास्तविक और सटीक व्यूअरशिप डेटा प्रदान करती है। इससे टीवी नेटवर्क और OTT प्लेटफॉर्म को अपनी ऑडियंस की गहरी समझ मिलती है जिससे वे कंटेंट और विज्ञापन रणनीतियों को बेहतर बना सकते हैं।


वैयक्तिकृत और लक्ष्यित विज्ञापन

ACR के माध्यम से, विज्ञापनदाता उपभोक्ताओं के रुचि और उपभोग व्यवहार के आधार पर अधिक सटीक और प्रभावी विज्ञापन दिखा सकते हैं। इससे विज्ञापन की प्रभावशीलता बढ़ती है और ROI बेहतर होता है।


डेटा-संचालित कंटेंट रणनीतियाँ

स्मार्ट टीवी और CTV प्लेटफॉर्म ACR से प्राप्त डेटा का उपयोग करके नए कंटेंट निर्माण, अनुशंसा एल्गोरिद्म और उपभोक्ता जुड़ाव बढ़ाने के लिए रणनीतियाँ बनाते हैं।


बाजार अनुसंधान और मापन

ACR विज्ञापन प्रभाव मापन, कैम्पेन विश्लेषण, और उपभोक्ता व्यवहार अध्ययन में वास्तविक समय की जानकारी प्रदान कर उद्योग को बेहतर व्यापार निर्णय लेने में सक्षम बनाती है।


डिवाइस और प्लेटफॉर्म इंटीग्रेशन

स्मार्ट टीवी, OTT डिवाइसेज, और मोबाइल ऐप्स में ACR तकनीक के एकीकरण से समग्र विज्ञापन नेटवर्क और मीडिया उपभोग ओवरले अधिक स्मार्ट और इंटरैक्टिव बन रहे हैं।


भविष्य के अवसर और चुनौतियाँ

जैसे-जैसे ACR तकनीक उन्नत होती जा रही है, सटीकता, गोपनीयता और डेटा सुरक्षा जैसे मुद्दे उद्योग के लिए महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। फिर भी, यह तकनीक उद्योग को अधिक डेटा-संचालित, कुशल और ग्राहक-केंद्रित बनाने में मदद कर रही है।


सारांश

ACR तकनीक ने विज्ञापन और मीडिया उद्योग में पारंपरिक मापन मॉडल को बदल कर डेटा-संचालित विज्ञापन और कंटेंट वितरण को संभव बनाया है। यह उद्योग में नवाचार, उपभोक्ता अनुभव और व्यापार परिणाम सुधारने के लिए अभूतपूर्व अवसर प्रदान कर रही है।


यह तकनीक तेजी से बढ़ती डिजिटल और CTV मार्केट के लिए महत्वपूर्ण आधार बनी हुई है

ACR (Automatic Content Recognition) में उपयोग की जाने वाली ऑडियो‑फिंगरप्रिंटिंग की तकनीकी परिभाषा इस प्रकार है:


ऑडियो‑फिंगरप्रिंटिंग क्या है?

ऑडियो‑फिंगरप्रिंटिंग एक ऐसी तकनीक है जो किसी ऑडियो सिग्नल के विशिष्ट और अद्वितीय नमूने को कैप्चर करती है, जिसे 'फिंगरप्रिंट' कहा जाता है। यह फिंगरप्रिंट उस ऑडियो कंटेंट का डिजिटल हस्ताक्षर होता है, जो किसी भी स्वरूप, बिट रेट या संपीड़न तकनीक से स्वतंत्र होता है।


कार्यप्रणाली

ऑडियो सिग्नल से विशेष फीचर्स को एक्सट्रैक्ट किया जाता है, जैसे पिच, टोन, स्पेक्ट्रल एनालिसिस आदि।


यह फीचर्स एक कुशल और संक्षिप्त डिजिटल फिंगरप्रिंट में कनवर्ट होते हैं जो अनूठा और पहचान योग्य होता है।


फिंगरप्रिंट को बड़े डेटाबेस के साथ मैच किया जाता है ताकि ज्ञात ऑडियो कंटेंट के साथ तुलना की जा सके।


यदि मैच होता है तो कंटेंट की पहचान हो जाती है, और संबंधित मेटाडेटा जैसे ट्रैक नाम, कलाकार, विज्ञापन आदि प्राप्त होते हैं।


विशेषताएँ

ऑडियो‑फिंगरप्रिंटिंग कंटेंट की शाखा, प्रारूप, गुण, या वितरण माध्यम से अप्रभावित रहती है।


यह लाइव या रिकॉर्डेड ऑडियो दोनों के लिए काम करती है।


लोकप्रिय ऐप्स जैसे शाज़म (Shazam), यूट्यूब, फेसबुक आदि इसी तकनीक का उपयोग करते हैं।


स्वरूपों के भिन्नता, संपीड़न, और शोर के बावजूद ऑडियो‑फिंगरप्रिंटिंग उच्च स्तर की सटीकता प्रदान करती है, जो इसका प्रमुख कारण है कि यह ACR में व्यापक रूप से उपयोग में लाई जाती है।


यह तकनीक मीडिया कंटेंट की पहचान, विज्ञापन ट्रैकिंग, और व्यक्तिगत उपयोगकर्ता अनुभव के लिए महत्वपूर्ण है

ऑडियो‑फिंगरप्रिंटिंग और Shazam‑style विजुअल मेथड की तुलना इस प्रकार है:


ऑडियो‑फिंगरप्रिंटिंग

यह तकनीक ऑडियो सिग्नल के विशिष्ट डिजिटल फिंगरप्रिंट बनाती है, जिससे लाइव या रिकॉर्डेड ऑडियो की पहचाना जाता है।


आमतौर पर स्पेक्ट्रल फीचर्स, पिच और टोन को डिजिटल फिंगरप्रिंट में कन्वर्ट किया जाता है।


यह तकनीक उच्च सटीकता और विश्वसनीयता के लिए प्रसिद्ध है, जो विभिन्न स्वरूपों और शोर के बावजूद काम करती है।


विज्ञापन, टीवी शोज़, और म्यूजिक ऐप्स जैसे शाज़म में इसका व्यापक उपयोग होता है।


Shazam‑style विजुअल मेथड

यह तकनीक ऑडियो को विजुअल स्पेक्ट्रोग्राम में कन्वर्ट करती है और फिर इसे पहचानने के लिए विशिष्ट पैटर्न की खोज करती है।


विजुअल रिप्रेजेंटेशन के कारण यह जटिल ऑडियो सिग्नल्स को पहचानने में मदद करता है।


इसे मशीन लर्निंग मॉडल्स के साथ इस्तेमाल किया जाता है ताकि स्पेक्ट्रोग्राम में पैटर्न की पहचान बढ़ाई जा सके।


यह मेथड विशेष रूप से शोर-भरे वातावरण में भी काम करने की क्षमता रखता है।


तुलना

विशेषता ऑडियो‑फिंगरप्रिंटिंग Shazam‑style विजुअल मेथड

तकनीकी फोकस ऑडियो सिग्नल के डिजिटल फीचर्स ऑडियो का विजुअल स्पेक्ट्रोग्राम

सटीकता उच्च, विभिन्न फ़ॉर्मेट में काम करता है उच्च, विशेष रूप से जटिल सिग्नल्स के लिए

शोर के प्रति संवेदनशीलता कम संवेदनशील, विश्वसनीय पहचान कम संवेदनशील, पैटर्न आधारित पहचान

उपयोग म्यूजिक ऐप्स, टीवी विज्ञापन ट्रैकिंग म्यूजिक पहचान, मशीन लर्निंग आधारित प्रणालियाँ

तकनीकी जटिलता मध्यम उच्च, मशीन लर्निंग की आवश्यकता

संक्षेप में, दोनों तकनीकें ऑडियो सामग्री की पहचान में सहायक हैं, लेकिन Shazam‑style विजुअल मेथड स्पेक्ट्रोग्राम आधारित गहराई से विश्लेषण कर जटिल सिग्नल पर बेहतर काम करती है, जबकि ऑडियो‑फिंगरप्रिंटिंग तेज और अधिक पारंपरिक रूप से प्रभावी होती है।


अगर और विस्तृत तकनीकी विवरण या उदाहरण चाहिए तो बताया जा सकता है।ऑडियो‑फिंगरप्रिंटिंग और Shazam‑style विजुअल मेथड की तुलना:


पहलु ऑडियो‑फिंगरप्रिंटिंग Shazam‑style विजुअल मेथड

वर्णन ऑडियो सिग्नल के विशिष्ट डिजिटल फिंगरप्रिंट बनाना, जो कंटेंट की पहचान करता है ऑडियो को स्पेक्ट्रोग्राम में बदलकर विशिष्ट पैटर्न ढूंढ़ना, मशीन लर्निंग आधारित

तकनीकी तरीका सिग्नल प्रोसेसिंग, पिच, टोन फीचर निष्कर्षण विजुअल स्पेक्ट्रोग्राम से पैटर्न मान्यता

सटीकता उच्च, शोर में भी काम करता है विशेष रूप से जटिल और शोर-भरे सिग्नल में दक्ष

प्रदर्शन तेज, पारंपरिक प्रभावी गहरा विश्लेषण, तकनीकी रूप से जटिल

उपयोग म्यूजिक, टीवी, विज्ञापन ट्रैकिंग म्यूजिक पहचान, इमेज संचालित पहचान

दोनों तकनीकें ऑडियो पहचान के लिए अलग दृष्टिकोण प्रदान करती हैं; ऑडियो‑फिंगरप्रिंटिंग तेजी से और व्यापक उपयोग वाली है, जबकि Shazam‑style मेथड जटिल सिग्नलों के लिए अधिक उपयुक्त है।

उत्पाद शोध (Product Research) एक व्यवस्थित प्रक्रिया है जिसमें किसी उत्पाद या विचार के बारे में जानकारी एकत्रित करके उसका विश्लेषण किया जाता है ताकि उत्पाद के डिज़ाइन, विकास और विपणन से जुड़े निर्णय बेहतर तरीके से लिए जा सकें। यह प्रक्रिया उपभोक्ता आवश्यकताओं, पसंद, और बाजार के रुझानों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है, और इससे उत्पाद की सफलता की संभावनाएँ बढ़ती हैं।


उत्पाद शोध का महत्व

यह व्यवसायों को उपभोक्ता के नजरिए से उनकी आवश्यकताओं को समझने और उनका बेहतर समाधान प्रदान करने में मदद करता है।


उत्पाद शोध से उत्पाद विकास में गलतियों का जोखिम कम होता है, संसाधनों की बर्बादी कम होती है, और ग्राहक संतुष्टि बढ़ती है।


यह प्रतिस्पर्धात्मक लाभ और ब्रांड छवि को भी मजबूत करता है, जिससे व्यवसाय अपने बाजार में बेहतर स्थिति बना सकते हैं।


उत्पाद शोध की मुख्य विधियाँ

ग्राहक साक्षात्कार


ग्राहक की आवाज़ (VoC) विश्लेषण


प्रतियोगी विश्लेषण


सर्वेक्षण और फोकस समूह


प्रयोज्यता परीक्षण और नकली दरवाज़ा परीक्षण


उत्पाद शोध के लाभ

लागत क्षमता और संसाधन अनुकूलन


जोखिम न्यूनीकरण और बेहतर रणनीतिक योजना


नवप्रवर्तन और उत्पाद लाइन विस्तार


बेहतर मार्केटिंग और प्रचार


अनुसंधान की चुनौतियाँ

उपभोक्ता व्यवहार में निरंतर बदलाव


तकनीकी प्रगति के अनुसार अपडेट रहना


सीमित डेटा और वैश्वीकरण की चुनौतियाँ


उत्पाद शोध से व्यवसाय भविष्य के बाजार रुझानों का अनुमान लगाकर अधिक प्रभावी रणनीतियाँ बना सकते हैं और उपभोक्ता की बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पाद तैयार कर सकते हैं, जो उनके व्यावसायिक सफलता के लिए अहम है।


यदि विशेष किसी क्षेत्र या प्रकार के उत्पाद के लिए शोध प्रक्रिया या तकनीकों की विस्तृत जानकारी चाहिए, तो वह भी साझा की जा सकती है।

ग्राहक साक्षात्कार के लिए 30 मिनट की रूपरेखा और प्रश्न सूची इस प्रकार है:


रूपरेखा (30 मिनट का साक्षात्कार)

परिचय (5 मिनट)


स्वागत और परिचय


साक्षात्कार का उद्देश्य समझाना


मुख्य प्रश्न सत्र (20 मिनट)


ग्राहक की आवश्यकताओं, अनुभव और अपेक्षाओं के बारे में प्रश्न


उत्पाद या सेवा के संबंध में उनकी राय और सुझाव


विशेष मुद्दों या चुनौतियों पर चर्चा


समापन (5 मिनट)


कोई अतिरिक्त सवाल पूछना


धन्यवाद कहना और आगे की प्रक्रिया बताना


30 मिनट के लिए प्रश्न सूची

परिचयात्मक प्रश्न


कृपया अपना संक्षिप्त परिचय दीजिए।


आपने हमारी कंपनी/उत्पाद का उपयोग कब शुरू किया?


उत्पाद या सेवा के अनुभव पर प्रश्न

3. आपने हमारे उत्पाद/सेवा का उपयोग कैसे किया?

4. आपको हमारे उत्पाद/सेवा में क्या सबसे पसंद आया?

5. क्या आपको किसी समस्या का सामना करना पड़ा? यदि हाँ, तो वह क्या थी?

6. आप हमारे उत्पाद/सेवा की तुलना प्रतिस्पर्धियों से कैसे करते हैं?

7. क्या हमारे उत्पाद में कोई सुधार आप सुझाव देना चाहेंगे?


खरीदारी और निर्णय प्रक्रिया

8. आपने हमारे उत्पाद को खरीदने का निर्णय कैसे लिया?

9. आपके लिए खरीदारी करते समय सबसे महत्वपूर्ण कारक क्या थे?

10. क्या आपने खरीदारी करते समय कोई वैकल्पिक उत्पादों पर विचार किया?


उपभोक्ता व्यवहार और प्राथमिकताएँ

11. आप आमतौर पर कितनी बार इस तरह के उत्पाद खरीदते हैं?

12. क्या आप हमारी सेवा या उत्पाद को दूसरों को सुझाएंगे? क्यों?


भविष्योन्मुखी प्रश्न

13. अगर हम नया फीचर जोड़ें तो आप किस प्रकार की सुविधा देखना चाहेंगे?

14. आप हमारे उत्पाद/सेवा में आने वाले बदलावों के बारे में कैसे सूचित रहना चाहेंगे?


अतिरिक्त प्रश्न

15. क्या आप कोई अन्य सुझाव या फीडबैक देना चाहेंगे?


यह प्रश्न सूची एक प्रभावी और संगठित ग्राहक साक्षात्कार के लिए पर्याप्त है, जो 30 मिनट में पूरे किए जा सकते हैं। प्रश्नों को आवश्यकतानुसार अनुकूलित भी किया जा सकता है

ग्राहक की आवाज़ (VoC - Voice of Customer) उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें ग्राहकों की ज़रूरतों, इच्छाओं, अपेक्षाओं, और प्रतिक्रिया को एकत्रित करके उसका विश्लेषण किया जाता है। इसका उद्देश्य व्यावसायिक निर्णयों को सुधारना और ग्राहक संतुष्टि को बढ़ावा देना होता है। VoC से कंपनियां ग्राहक अनुभव को बेहतर बनाने, उत्पाद और सेवा में सुधार करने, तथा ग्राहकों की वास्तविक जरूरतों को समझने में सक्षम होती हैं।


VoC की परिभाषा

ग्राहक की आवाज़ (VoC) वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से ग्राहक अपने उत्पाद, सेवा या ब्रांड के बारे में अपने विचार, अनुभव और अपेक्षाएं व्यक्त करते हैं, और इन्हें एकत्रित कर विश्लेषण किया जाता है ताकि व्यवसाय अपने उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं को बेहतर समझ सके।


VoC के उपयोग

ग्राहक अनुभव (Customer Experience) को बेहतर बनाना


उत्पाद और सेवा विकास में सुधार करना


ग्राहक संतुष्टि और वफादारी बढ़ाना


मार्केटिंग निर्णयों को सूचित करना


ग्राहक की अपेक्षाओं के अनुरूप रणनीतियाँ बनाना


प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्राप्त करना


VoC डेटा संग्रह के स्रोत

ग्राहक सर्वेक्षण और प्रश्नावली


ग्राहक साक्षात्कार और फोकस समूह


सोशल मीडिया और ऑनलाइन रिव्यू


ग्राहक शिकायतें और फीडबैक फ़ॉर्म


वेबसाइट व्यवहार और बिक्री रिपोर्ट


ग्राहक की आवाज़ (VoC) के माध्यम से एकत्रित जानकारी से कंपनियां ग्राहक की आवश्यकताओं को समझ कर उन्हें बेहतर समाधान प्रदान कर सकती हैं, जो दीर्घकालिक सफलता के लिए आवश्यक है।

उत्पाद अनुसंधान का लागत और समय पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता है।


लागत पर प्रभाव

उत्पाद अनुसंधान की मदद से संभावित समस्याओं को शुरुआती चरण में पहचान लिया जाता है, जिससे उत्पाद विकास में होने वाली महंगी गलतियों और संसाधन की बर्बादी को कम किया जा सकता है।


यह उत्पाद को बाजार की मांगों के साथ बेहतर ढंग से संरेखित करता है, जिससे अप्रयुक्त संसाधनों की बचत होती है।


सही शोध से जोखिम न्यूनीकरण होता है, जिससे निवेश की सुरक्षा बढ़ती है और लंबे समय में लागत नियंत्रण में मदद मिलती है।


समय पर प्रभाव

उत्पाद अनुसंधान बाजार की मांग और उपभोक्ता की जरूरतों को समझने में मदद करता है, जिससे उत्पाद को जल्दी और अधिक प्रभावी तरीके से बाजार में उतारा जा सकता है।


इससे उत्पाद लॉन्च की प्रक्रिया में देरी कम होती है क्योंकि शोध से प्राप्त जानकारी के आधार पर बेहतर निर्णय लिए जा सकते हैं।


समय पर सही उत्पाद अनुसंधान करने से उत्पाद विकास चक्र तेज होता है, जिससे प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिलता है।


संक्षेप में, उत्पाद अनुसंधान लागत में बचत, जोखिम कम करने और समय में तेजी लाने का जरिया है जो व्यवसाय को बाजार में सफलता दिलाने में सहायता करता है।

मार्केट रिसर्च उद्योग में 2025 के लिए प्रमुख नवीन रुझान और अनुमान इस प्रकार हैं:


नवीन रुझान

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और स्वचालन का बढ़ता उपयोग: डेटा संग्रह और विश्लेषण में AI का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है, जिससे अनुसंधान तेज़ और अधिक प्रभावी होता जा रहा है।


मोबाइल-प्रथम ऑनलाइन सर्वेक्षण: ऑनलाइन सर्वेक्षण अब मुख्य रूप से मोबाइल उपकरणों के लिए अनुकूलित किए जा रहे हैं, ताकि व्यापक और अधिक प्रतिनिधि डेटा प्राप्त किया जा सके।


प्रतिनिधि नमूनों की पुनः परिभाषा: शोध में सम्मिलित नमूनों को अधिक विविध और वास्तविक बनाने पर जोर बढ़ा है।


सिंथेटिक डेटा का उपयोग: विशिष्ट और तेजी से जानकारियां प्राप्त करने के लिए सिंथेटिक डेटा का इस्तेमाल किया जा रहा है।


समृद्ध मीडिया के माध्यम से अंतर्दृष्टि: वीडियो, इमेज और ऑडियो जैसे समृद्ध मीडिया का उपयोग गहरे और अधिक सूक्ष्म कस्टमर इनसाइट्स के लिए हो रहा है।


डेटा एकीकरण और गोपनीयता पर जोर: विभिन्न स्रोतों से डेटा को एकीकृत करना और डेटा सुरक्षा व गोपनीयता को सुनिश्चित करना अब अनिवार्य हो गया है।


2025 के अनुमान

बाजार अनुसंधान अधिक तेज़, सटीक और लागत प्रभावी होगा।


AI और मशीन लर्निंग के माध्यम से उपभोक्ता व्यवहार के विश्लेषण में क्रांति आएगी।


व्यक्तिगत उपभोक्ता अनुभव और कस्टमाइज्ड सर्वेक्षण डिजाइन की मांग बढ़ेगी।


डेटा गोपनीयता और नैतिक अनुसंधान के मानदंडों का कड़ाई से पालन होगा।


बेहतर ROI (रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट) पर ध्यान दिया जाएगा, जिससे अनुसंधान परियोजनाओं की प्रभावशीलता बढ़ेगी।


ये रुझान मार्केट रिसर्च को और अधिक तकनीकी, उपभोक्ता-केंद्रित और डेटा-संचालित बनाएंगे, जिससे व्यवसाय बेहतर निर्णय ले सकेंगे और उपभोक्ता जरूरतों को बेहतर तरीके से पूरा कर सकेंगे।

ई-कॉमर्स (इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स) इंटरनेट के माध्यम से व्यापार का संचालन है, जिसमें वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-बिक्री, इलेक्ट्रॉनिक डेटा का आदान-प्रदान, भुगतान, और ग्राहक सेवा शामिल होते हैं। यह न केवल खरीदना और बेचना है, बल्कि ग्राहकों और व्यापार भागीदारों के बीच सहयोग और सेवाओं का आदान-प्रदान भी होता है। ई-कॉमर्स के प्रमुख लाभों में इसका 24/7 उपलब्ध होना, तेज़ सेवा, व्यापक उत्पाद चयन, और वैश्विक पहुंच शामिल हैं। भारत में ई-कॉमर्स तेजी से बढ़ रहा है, और इसके शीर्ष कंपनियों में फ्लिपकार्ट, अमेज़न भारत, स्नैपडील, और पेटीएम प्रमुख हैं।


ई-कॉमर्स कई प्रकार के होते हैं, जैसे B2B (व्यवसाय से व्यवसाय), B2C (व्यवसाय से उपभोक्ता), C2C (उपभोक्ता से उपभोक्ता) आदि। इसके अंतर्गत ऑनलाइन रिटेल, मोबाइल कॉमर्स, इलेक्ट्रॉनिक धन हस्तांतरण, आपूर्ति शृंखला प्रबंधन, और ऑनलाइन विपणन जैसी गतिविधियां आती हैं।


भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ने के कारण ई-कॉमर्स का दायरा भी बढ़ा है और यह खुदरा और थोक व्यापार दोनों को प्रभावित कर रहा है। सुरक्षा, गोपनीयता, और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि एन्क्रिप्टेड संचार और प्रमाणिक लेन-देन प्रणाली।


संक्षेप में, ई-कॉमर्स एक व्यापक प्रणाली है जो इंटरनेट के माध्यम से व्यापार को आसान, तेज, और विश्वव्यापी बनाती है .मोबाइल कॉमर्स (एम-कॉमर्स) में मुख्य रुझान और विकास इस प्रकार हैं:


तेजी से बढ़ती लोकप्रियता: स्मार्टफोन और टैबलेट के बढ़ते उपयोग के कारण अधिक लोग मोबाइल उपकरणों से ऑनलाइन खरीदारी कर रहे हैं। खुदरा विक्रेता अपनी वेबसाइट और ऐप्स को मोबाइल फ्रेंडली बना रहे हैं, जिससे चलते-फिरते खरीदारी आसान हो गई है। अनुमान है कि मोबाइल कॉमर्स अंततः पारंपरिक ई-कॉमर्स से आगे निकल जाएगा।


भारत में वृद्धि: 2023 तक मोबाइल ई-कॉमर्स बिक्री का लगभग 60% हिस्सा होने का अनुमान है। मोबाइल कॉमर्स व्यवसायों के लिए जरूरी हो गया है ताकि वे बढ़ती मोबाइल उपयोगकर्ता संख्या का लाभ उठा सकें।


तकनीकी प्रगति: बेहतर मोबाइल नेटवर्क (3G, 4G, अब 5G) ने मोबाइल शॉपिंग को तेज़ और आसान बनाया है। मोबाइल चैटबॉट्स और पर्सनलाइजेशन जैसे उपाय ग्राहकों का अनुभव सुधार रहे हैं, जिससे खरीदारी अधिक आकर्षक होती है।


सोशल मीडिया का प्रभाव: फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म से सीधे उत्पाद खरीदना संभव हो गया है, जिससे मोबाइल कॉमर्स में बढ़ोतरी हुई है। साथ ही, ऐप-आधारित प्रचार, नोटिफिकेशन और व्यक्तिगत ऑफ़र बिक्री बढ़ाने में मदद करते हैं।


व्यापार रणनीतियाँ: कंपनियां मोबाइल के लिए विशेष ऐप और साइट बनाकर, व्यक्तिगत अनुभव देकर, इंटीग्रेटेड (ओम्नीचैनल) बिक्री चैनलों का उपयोग कर रही हैं जिससे ग्राहक जुड़ा रहता है और बिक्री बढ़ती है।


भविष्य की संभावना: फॉरेस्टर के अनुसार, अगले पांच वर्षों में एम-कॉमर्स की बिक्री चार गुना बढ़कर 31 अरब डॉलर तक पहुंच सकती है, जो इसके उज्ज्वल भविष्य को दर्शाता है।


अतः मोबाइल कॉमर्स उपभोक्ताओं की सुविधा, लचीलापन, बेहतर पहुंच और तकनीकी नवाचारों से प्रेरित होकर तेजी से बढ़ रहा है और आने वाले वर्षों में इसका बाजार और विस्तृत होने की संभावना है।


इस प्रकार के रुझान व्यवसायों को मोबाइल कॉमर्स अपनाने और विकसित करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं ताकि वे प्रतिस्पर्धात्मक बने रहें और ग्राहकों को बेहतर अनुभव दे सकें

2025 में मोबाइल कॉमर्स उपयोगकर्ता व्यवहार के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:


मोबाइल उपकरणों का बढ़ता उपयोग: 2025 तक दुनिया भर में लगभग 4.8 अरब से अधिक स्मार्टफोन उपयोगकर्ता होंगे, जो वैश्विक आबादी के लगभग 59% हैं। इससे मोबाइल कॉमर्स में खरीदारी का हिस्सा बढ़कर ई-कॉमर्स की कुल बिक्री का लगभग 61% होने की उम्मीद है।


समय की बचत और सुविधा: उपयोगकर्ता मोबाइल से जल्दी और आसानी से खरीदारी करना पसंद करते हैं क्योंकि यह समय बचाता है और कहीं भी कभी भी ऑनलाइन शॉपिंग की सुविधा देता है। मोबाइल ऐप और पीडब्ल्यूए (Progressive Web Apps) द्वारा वैयक्तिकृत अनुभव और तेज़ पारदर्शी चेकआउट प्रक्रिया प्रमुख हैं।


निजीकरण और स्थान आधारित सेवाएं: मोबाइल कॉमर्स में उपयोगकर्ता व्यवहार के अनुसार वैयक्तिकृत प्रमोशन, उत्पाद सुझाव, और स्थान आधारित ऑफर आम हो रहे हैं, जिससे खरीदारी का अनुभव बेहतर बनता है।


सोशल कॉमर्स का प्रभाव: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से सीधे खरीदारी की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिससे उपयोगकर्ता आसानी से प्लेटफॉर्म छोड़े बिना उत्पाद खरीद सकते हैं। इससे मोबाइल कॉमर्स और भी ज्यादा लोकप्रिय हो रहा है।


डिजिटल भुगतान और वॉलेट्स का उपयोग: उपयोगकर्ता डिजिटल वॉलेट्स जैसे Google Pay, Apple Pay आदि से भुगतान करना पसंद करते हैं, जो लेनदेन को अधिक सुविधाजनक और तेज़ बनाते हैं।


वॉइस कॉमर्स और AR/VR का उदय: वॉइस सर्च और खरीदारी, साथ ही बढ़ी हुई और आभासी वास्तविकता का उपयोग कर खरीददारों को बेहतर उत्पाद अनुभव देने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।


ऐप आधारित खरीदारी: लगभग 83% खरीदार मोबाइल शॉपिंग ऐप का उपयोग करते हैं, ये ऐप उपयोगकर्ता को अपने हिसाब से खरीदारी का अनुभव देने में सक्षम हैं।


वन-क्लिक चेकआउट और मोबाइल चैटबॉट: खरीद प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए वन-क्लिक भुगतान और चैटबॉट ग्राहक सहायता प्रमुख हैं, जो खरीद दाढ़ को कम करते हैं।

संक्षेप में, 2025 में मोबाइल कॉमर्स उपयोगकर्ता तेज, सुविधाजनक, और व्यक्तिगत खरीदारी अनुभव की मांग कर रहे हैं, जिसमें तकनीकी नवाचार और डिजिटल भुगतान बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इससे व्यवसायों को भी अपने मोबाइल प्लेटफॉर्म को और बेहतर बनाने की आवश्यकता बढ़ रही है

वॉइस कॉमर्सवॉयस कॉमर्स 2025 में ऑनलाइन शॉपिंग का एक उभरता हुआ क्षेत्र है, जिसमें उपभोक्ता आवाज के जरिए उत्पादों को खोजने, तुलना करने और खरीदने के लिए स्मार्ट डिवाइस जैसे स्मार्टफोन, स्मार्ट स्पीकर (जैसे अमेज़न एलेक्सा, गूगल असिस्टेंट, ऐप्पल सिरी) का इस्तेमाल करते हैं। यह तकनीक टाइपिंग या क्लिकिंग की जगह हैंड्स-फ्री, तेज़ और सहज खरीदारी अनुभव प्रदान करती है।


मुख्य विशेषताएं और लाभ:

वॉयस कमांड के माध्यम से ऑर्डर करना और चेकआउट प्रक्रिया को तेज़ करना।

वॉयस रिकग्निशन के आधार पर व्यक्तिगत सिफारिशें और पूर्व खरीदारी पैटर्न के अनुसार सुझाव देना।

शारीरिक अक्षमता वाले या दृष्टि कमज़ोर उपयोगकर्ताओं के लिए खरीदारी को आसान बनाना।

बहुभाषी सपोर्ट से अधिक बाजार पहुंच सुनिश्चित करना।

खरीदारी के दौरान स्क्रीन या कीबोर्ड को छूने की आवश्यकता न होना, जिससे उपयोगकर्ता कहीं भी खरीदारी कर सकते हैं।

वॉयस कॉमर्स अपनाने वाले ब्रांडों में रूपांतरण दरों में लगभग 20% की बढ़ोतरी देखी गई है।

2025 तक अनुमान है कि वॉयस-सक्षम उपकरणों की संख्या 8 से 9 अरब से अधिक होगी, और वॉयस कॉमर्स का वैश्विक बाजार लगभग $164 बिलियन तक पहुंच सकता है। भारत सहित कई बाजारों में वॉयस कॉमर्स तेजी से लोकप्रिय हो रहा है, खासकर अमेज़न एलेक्सा और गूगल असिस्टेंट के माध्यम से।

इस प्रकार, वॉयस कॉमर्स भविष्य की खरीदारी का एक बड़ा हिस्सा बनने जा रहा है, जो ऑनलाइन शॉपिंग को और अधिक सहज, व्यक्तिगत और सुलभ बना रहा है 

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