Friday, June 27, 2014

शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य चरित्र निर्माण है।

         वर्तमान समय में देश में कई समस्याएँ व्याप्त हैं। विभिन्न सरकारों द्वारा समस्यायों के समाधान के लिए किये जा रहे सारे प्रयास असफल साबित हो रहे हैं । आज कन्या भ्रूण हत्या बात करे या महिलाओ पर अत्याचार, चाहें आतंकवाद की बात करें या साम्प्रदायिकता की ये सारी समस्याओं  तीव्र गति से निरंतर बढ़ते जाना चिंता का विषय है।
         आजादी के इतने सालों के बाद भी देश का एक हिस्सा मूलभूत सुविधाओं से वंचित नजर आ रहा है , देश की शिक्षा व्यवस्था ढुलमुल गति से सिर्फ आगे बढ़ रही है उसमे विकास का नामोनिशान तक नहीं है। देश की शिक्षा व्यवस्था को राजनीतिक रंग देने का प्रयाश किया जा रहा है,जिसका हालिया उदाहरण देखने को मिला जिसमे दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन को 4 वर्षीय कोर्स को राजनितिक ड्रामा के बाद आखिरकार वापिस लेना पड़ा ।
         स्वामी विवेकानंद ने 140 वर्ष पूर्व तत्कालीन समस्याओं के समाधान के लिए जो विचार व्यक्त किये थे वे अज भी उतने ही प्रासंगिक हैं । विशेष रूप से स्वामीजी ने शिक्षा के बारे में जो चिंतन व्यक्त किया है, उनका वर्तमान शिक्षा में समावेश किया जाए या उन विचारों के आधार पर वर्तमान शिक्षा का ढांचा बनाया जाये तो देश की शिक्षा के साथ -साथ औ र भी कई समस्याएं हैं जनके समाधान तक पहुँचने में सक्षम हो सकते हैं।
          जीवन के लक्ष्य औ र शिक्षा के लक्ष्य में कोई अंतर नहीं होना चाहिए। हर सामान्य मनुष्य के अन्दर देवत्व औ र दानत्व दोनों ही विद्यमान होते है। उनके अन्दर विद्यमान देवत्व को जागृत करना एवं प्रकट करने में सहायता करना ही शिक्षा का कार्य है।
         इस सम्बन्ध में स्वामीजी ने शिक्षा क्या है व् क्या नहीं है ? दोनों सन्दर्भ में विचार व्यक्त किये हैं। " शिक्षा विविध जानकारियों का ढेर नहीं है जो मस्तिष्क में ठूंस दिया गया हो । शिक्षा का सार तथों का संकलन नहीं बल्कि मन की एकाग्रता प्राप्त करना है।"
          हमें तो ऐसी शिक्षा चाहिए जिससे चरित्र का निर्माण हो, मानसिक बल का विकास हो, बुद्धी का विकास हो ओर जिससे मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा हो सके । स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार- सम्पूर्ण शिक्षा तथा समस्त अध्ययन का एकमात्र उद्देश्य व्यक्तित्व को गढ़ना है।
          व्यक्ति का व्यक्त रूप ही व्यक्तित्व है। अब प्रश्न यह उठता है की मनुष्य बनाने वाली या व्यक्तित्व को गढ़ने वाली शिक्षा कैसी हो ? वर्तमान शिक्षा में तो जानकारियों के ढेर के अलावा बहुत कुह दिखाई नहीं देता है।
         स्वामी विवेकानंद ने कहा है- चरित्र यानी क्या ? उन्होंने बहुत ही सरल शब्दों में समझाते हुए कहा है कि - " छोटा बालक देख-देख कर सीखता है, धीरे-धीरे वहुसकी आदत बन जाती है। लम्बे समय तक उस प्रकार की आदतों के रहने के कारण उसी प्रकार का उनका स्वाभाव बनता है वाही चरित्र है।"
         अच्छी आदतें ही मूल्य है। हमारी शिक्षा  व्यवस्था एवं परिवारों में मूल्यों के द्वारा ही बालक अच्छे आचरण सीखता है। अतः चरित्र निर्माण हेतु घर व् पाठशाला दो का सामान दायित्व है औ र इस दायित्व को हमें भली भांति समझना होगा जिससे नए विद्यार्थियों में चरित्र का निर्माण हो सके ।


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