न जाने जोरों से क्यों ?
राजनीति में मच गई है कुछ हलचल।
हो गए हैं राजनैतिक नेता भी ,
अपनी राजनैतिकता में विफल।
पर क्या ? सहीं में हमारी गुहाँरे सुनने को
उनके ज़ी कतरातें हैं या फिर,
उन आशाभरी पुकारों को,
सुनकर भी अनसुनी कर जाते हैं।
सच कहिये तो हुज़ूर
हंमे उनके वो निभाए वादे
नज़र नहीं आते हैं।
क्योंकि वे उन वादों से मुकर जातें है।
पर खैर जो भी हो,
आज मेरी राय में , हम आदमी के लिए
बेशक बेंसफी है।
ज़रा देख भी लें की कतार कितनी लम्बी है,
इस बेवफाई की,
क्योंकि,
मेरी चाँद इन्साफ भी अभी बाकी है।।
(स्वरचित कविता)
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