Sunday, August 24, 2025
भारत का एक प्राचीन ब्रांड चंदेरी सिल्क साड़ी
महाभारत में चंदेरी का उल्लेख मुख्यतः उसके राजा शिशुपाल के रूप में मिलता है, जो चेदि देश का शासक था। शिशुपाल महाभारत के समय चंदेरी (जिसे बूढ़ी चंदेरी भी कहा जाता है) का राजा था। महाभारत में चेदि की राजधानी का नाम स्पष्ट नहीं है, लेकिन पौराणिक कथा अनुसार चंदेरी इस क्षेत्र की राजधानी थी।चंदेरी का प्राचीन नाम 'चंद्रगिरि' रहा है और यह मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में स्थित है। महाभारत काल से इसका ऐतिहासिक महत्व है, जहां यह राजा शिशुपाल की राजधानी के रूप में विख्यात था। चंदेरी का क्षेत्र बाद में विभिन्न राजवंशों जैसे प्रतिहार, खिलजी और मुगल साम्राज्य के अधीन रहा।इस प्रकार, महाभारत में चंदेरी का उल्लेख शिशुपाल के शासनकाल के संदर्भ में होता है, जो चेदि जनपद का शासक था और जिसे भगवान श्रीकृष्ण का प्रतिद्वंद्वी भी माना जाता हैचंदेरी साड़ी का इतिहास अत्यंत प्राचीन और गौरवशाली है, जिसकी जड़ें महाभारत काल तक जाती हैं और जिसका संबंध भगवान कृष्ण के समय, बुनकारी परंपरा, और भारतीय राजघरानों से जुड़ा हुआ है.प्रारंभिक ऐतिहासिक संदर्भचंदेरी साड़ी का नाम मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले के चंदेरी कस्बे से लिया गया है, जो विंध्याचल पर्वत शृंखला में स्थित है।इसके इतिहास का उल्लेख रामायण और महाभारत जैसी प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। पौराणिक मान्यता अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण की बुआ के पुत्र शिशुपाल को इसकी खोज का श्रेय दिया जाता है।वैदिक काल में यहाँ कपड़े की बुनाई का कार्य शुरू हो गया था, और यह परंपरा दिव्यता, शाही परिधान और भारतीय संस्कृति से जुड़ गई।मध्यकाल और मुगलकाल13वीं-14वीं शताब्दी में बंग्ला के सूफी संत वजीउद्दीन के चंदेरी आने और बुनकर समाज के बसने के साथ चंदेरी बुनाई को बढ़ावा मिला।मुगलकाल में इन साड़ियों को शाही परिधान का दर्जा मिला, जिनकी नर्मता, उत्कृष्टता और बारीक कढ़ाई की खूब तारीफ की जाती थी। राजघराने की महिलाएँ इन बारीक वस्त्रों को पसंद करती थीं।उस समय चंदेरी साड़ी की बुनाई इतने पतले धागों से होती थी कि पूरी साड़ी एक मुट्ठी में समा जाती थी।आधुनिक काल और विविधता19वीं सदी के अंत में बदलाव शुरू हुए—बुनकरों ने मिलमेड यार्न और फिर कॉटन, सिल्क एवं सिल्क-कॉटन ब्लेंड का प्रयोग शुरू किया गया।चंदेरी साड़ी की पारंपरिक पहचान हैं - बारीक जरी की किनारी, पारदर्शी नर्म कपड़ा और अनूठे पारंपरिक पैटर्न, जैसे नलफर्मा, डंडीदार, चटाई, जंगला आदि।वर्ष 2004 में चंदेरी को भौगोलिक संकेतक (GI टैग) भी प्रदान किया गया, जिससे इसकी प्रामाणिकता और विरासत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली।सांस्कृतिक, धार्मिक महत्वश्रीकृष्ण जन्माष्टमी या अन्य धार्मिक आयोजनों में इन साड़ियों का विशेष स्थान होता है, क्योंकि इन्हें सौंदर्य, परंपरा, और शाही संस्कृति का प्रतीक माना जाता है।आज भी चंदेरी साड़ी भारतीय एवं विदेशी महिलाओं की पसंद बनी हुई है, और इसे “साड़ियों की रानी” कहा जाता हैचंदेरी साड़ी का पौराणिक स्रोत महाभारत काल और भगवान श्रीकृष्ण की कथा से जुड़ा हुआ माना जाता है।मुख्य पौराणिक कथामान्यता है कि चंदेरी साड़ी की उत्पत्ति महाभारत काल में हुई थी।कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण की बुआ के पुत्र शिशुपाल को चंदेरी साड़ी का खोजकर्ता कहा जाता है।शिशुपाल, छेदी नरेश, का संबंध कृष्ण और पांडवों से था, और इसी वंश में चंदेरी बुनाई की परंपरा शुरू मानी जाती है।धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वचंदेरी साड़ी को श्रीकृष्ण के शाही और दिव्य वस्त्रों से जोड़कर देखा जाता है, क्योंकि यह सुंदरता, परंपरा और दिव्यता का प्रतीक है।श्रीकृष्ण पूजन, जन्माष्टमी जैसे धार्मिक आयोजनों में भी इन साड़ियों का विशेष स्थान होता है।प्राचीन कथाओं और मान्यताओं में चंदेरी वस्त्रों को इतने बारीक और मुलायम बताया गया है कि पूरी साड़ी मुट्ठी में समा जाती थी।संक्षिप्त निष्कर्षइतिहास और परंपराओं के अनुसार, चंदेरी साड़ी का पौराणिक स्रोत शिशुपाल और श्रीकृष्ण काल से जुड़ा है, और यह भारतीय शाही संस्कृति, धर्म, और सौंदर्य का महत्वपूर्ण प्रतीक बनी हुई हैमहाभारत में चंदेरी का उल्लेख मुख्यतः उसके राजा शिशुपाल के रूप में मिलता है, जो चेदि देश का शासक था। शिशुपाल महाभारत के समय चंदेरी (जिसे बूढ़ी चंदेरी भी कहा जाता है) का राजा था। महाभारत में चेदि की राजधानी का नाम स्पष्ट नहीं है, लेकिन पौराणिक कथा अनुसार चंदेरी इस क्षेत्र की राजधानी थी।चंदेरी का प्राचीन नाम 'चंद्रगिरि' रहा है और यह मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में स्थित है। महाभारत काल से इसका ऐतिहासिक महत्व है, जहां यह राजा शिशुपाल की राजधानी के रूप में विख्यात था। चंदेरी का क्षेत्र बाद में विभिन्न राजवंशों जैसे प्रतिहार, खिलजी और मुगल साम्राज्य के अधीन रहा।इस प्रकार, महाभारत में चंदेरी का उल्लेख शिशुपाल के शासनकाल के संदर्भ में होता है, जो चेदि जनपद का शासक था और जिसे भगवान श्रीकृष्ण का प्रतिद्वंद्वी भी माना जाता है.
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