ढाका का मलमल एक अत्यंत महीन, हल्का और पारदर्शी सूती कपड़ा है, जो कभी लगभग 200 वर्षों तक दुनिया का सबसे कीमती कपड़ा माना जाता था। इसे ढाका के आसपास, खासकर मेघना नदी के किनारे उगाए जाने वाले एक खास प्रकार के कपास से बनाया जाता था। यह कपड़ा सोलह चरणों से गुजरकर अत्यंत कुशल कारीगरों के हाथों बुनता था और इसकी महीनाई इतनी अधिक थी कि इसे "बाफ्त हवा" यानी बुनी हुई हवा कहा जाता था। मलमल इतना महीन था कि 300 फीट लंबे कपड़े के टुकड़े को एक अंगूठी से निकालना संभव था। इसका प्रयोग प्राचीन काल में देवी-देवताओं की मूर्तियों और मुगल बादशाहों के वस्त्रों में भी होता था।ढाका का मलमल अपने समय में रॉयल्टी और उच्च वर्गों के बीच अत्यंत प्रसिद्ध था और इसकी कीमत भी अत्यंत ऊँची थी। हालांकि, ब्रिटिश शासन के दौरान इस उद्योग का पतन हो गया, क्योंकि मशीनों से कम गुणवत्ता वाले कपड़े का उत्पादन शुरू हो गया और दुर्लभ फुटी करपास नामक कपास का पौधा विलुप्त हो गया। आजकल ढाका के मलमल को पुनर्जीवित करने की कोशिशें हो रही हैं, लेकिन वह मूल गुणवत्ता तक पहुँचना अभी भी चुनौती है।संक्षेप में, ढाका का मलमल एक विश्व प्रसिद्ध, अत्यंत महीन, पारदर्शी और हल्का सूती कपड़ा था जो बंगाल क्षेत्र के विशिष्ट कपास से बनता था और अपनी विशेष वस्त्र कला के कारण समृद्धि और सांस्कृतिक महत्व रखता थाढाका मलमल का इतिहास और विरासत बहुत ही समृद्ध और विशेष है। यह कपड़ा लगभग 200 साल तक दुनिया का सबसे कीमती और बेजोड़ सूती कपड़ा माना जाता था। इसकी खासियत इसकी अति महीन बुनाई थी, जो एक दुर्लभ प्रकार के कपास "फूटी कारपास" (Gossypium arboreum) से बनती थी, जो मुख्यतः मेघना नदी के किनारे उगती थी। मलमल बुनने की प्रक्रिया 16 चरणों वाली बहुत नाजुक और श्रमसाध्य विधि थी, जिसमें हर कारीगर की बड़ी कुशलता और धैर्य लगा करता था। बुनाई की इतनी महीनाई थी कि कपड़े की कई तहों के बाद भी शरीर के अंग दिखाई देने लगते थे, इसलिए इसे "बुनाई हुई हवा" या "वोवन एयर" के नाम से भी जाना जाता था।ढाका मलमल प्राचीन काल से ही उच्च वर्गों व राजघरानों में बेहद लोकप्रिय था, विशेषकर मुगल बादशाहों द्वारा इसकी बुनाई को संरक्षण मिला था। यह कपड़ा फारस, तुर्की, मध्य पूर्व और यूरोप तक निर्यात होता था और वहां इसे खास सम्मान प्राप्त था। मुगलों के दौर में ये कपड़े शाही वस्त्रों और देवी-देवताओं की मूर्तियों की सजावट में भी उपयोग होते थे।ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के कारण इस उद्योग को बड़ा नुकसान हुआ। ईस्ट इंडिया कंपनी ने स्थानीय बुनकरों और व्यापारियों पर नियंत्रण कड़ा किया और मशीनों से कम गुणवत्ता वाली वस्तुएं बाजार में उतार दीं, जिससे असली मलमल उद्योग समाप्त हो गया। साथ ही, वह दुर्लभ फूटी कारपास कपास का पौधा भी लगभग विलुप्त हो गया। यह सब मिलकर ढाका मलमल के सम्मानित इतिहास को खत्म करने में प्रमुख कारण रहे।हाल ही में, बांग्लादेश सरकार और कुछ कला एवं सांस्कृतिक संस्थान ढाका मलमल को पुनर्जीवित करने की पहल कर रहे हैं। डीएनए विश्लेषण के माध्यम से फूटी कारपास के पौधों की खोज और पुनः खेती की कोशिशें भी की जा रही हैं, ताकि इस विरासत को फिर से जीवित किया जा सके।संक्षेप में, ढाका मलमल न केवल एक दुर्लभ कपड़ा था, बल्कि अपनी संस्कृति, कला और इतिहास में भी अत्यंत महत्वपूर्ण था। इसकी विरासत वह कला और कौशल है जो इस कपड़े के निर्माण में लगी कारीगरों और उनके ज्ञान की पीढ़ियों तक पहुंचती है.
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