Saturday, September 13, 2025

गुरु का द्वार

बड़ी दूर से आया हूँ आज तेरे द्वार पर,
पहना है मैंने हिम्मत उस हार को उतार कर।
तु ज्ञान का भंडार है, एक ज्ञान मुझको दीजिये,
कि जंग कैसे जीतते हैं हज़ार बार हार कर।।

हम संभलते हुए चलते हैं मंजिल की इस राह में
गिरते हैं कई कई बार हम, उस मंजिल की चाह में। 
ये तो हिम्मत है जिसने बाँधा रखा है मेरे उम्मीदों को, 
वरना कब के ख़ाक हो जाते उन पतंगों की तरह।। ।। 

कठिनाईयों की आँधियाँ चीर कर बढ़ना सिखाया है तुमने,
हर ज़ख़्म को मरहम बनाकर, उम्मीद बनाया है तुमने।
तुम चिराग बन मेरे अंधेरे में रौशनी दीजिये, 
तरासा हो जैसे मेरी कमियों को सुधार कर।। 
तु ज्ञान का भंडार है, एक ज्ञान मुझको दीजिये,
कि जंग कैसे जीतते हैं हज़ार बार हार कर।।

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