Tuesday, December 2, 2025

गुरु तेग बहादुर सिंह जी को नमन्

शहीद हुए जो माँ के खातिर, जीते थे जो शर्तों पे। 
गुरु तेग बहादुर जन्मा था जो, अमृतसर की धरती में।। 
झुके नहीं वो लड़ते थे, अपनी अंतिम सासों तक, 
अभी निकलना बाकी है इतिहास के परतों से।। 
पांच भाई को लेकर जिसने, हुआ रवाना दिल्ली को, 
पकड़ ना आया फिर भी वो औरंगी फर्मानी से। 
मतिदास को रेता जिसने, मुगलों की उस आरी से। 
भाई दयाला को जिसने बीच चौक पर उबाला था। 
सतीदास को उन मुगलों ने, रुई लपेट जलाया था। 
दिया यातना था मुगलों ने, अपने मजहब लहराने को, 
पर डिगा ना पाए, झुका ना पाये उन वीरों को, 
जो मातृभूमि पर हँसते हँसते शीश चढ़ाने जाते थे।। 

किया कैद था गुरु तेग को, शूलों के एक पिंजरे में। 
दिया यातना था फिर भी, वह वीर जो ना डोला था। 
किया वार था, एक प्रहार था, उस मुगली तलवारों ने। 
कर दिया अलग गुरु तेग को फिर से, फेका था चौराहों में। 
टुकड़े टुकड़े अंगों को, टांगा था दीवारों में। 
नहीं उठाना शीश गुरु का, ऐसा औरंगी फर्मानी था। 
धड़ के टुकड़ों को भी उसने, नहीं बक्शा था मुगलों ने। 
वीर हुआ धरती पर ऐसा, शीशगंज के गुरुद्वारे में। 
हुआ दुबारा दाह गुरु का, सुना कहीं इतिहासों में। 
हुए वीर बहादुर ऐसे, रहेंगे सदा एहसासों में। 
बन प्राणवायु गुरु तेग बहादुर, सदा रहेंगे सासों में। 
बन गये मिशाल अब तेग बहादुर, लोगों के विश्वाशों में।। 
लोगों के विश्वाशों में।। 

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