Thursday, September 18, 2025

मंजिल

अनजान मुशफिर तुम भी हो, 
अनजान मुशफिर हम भी हैं.
अनजान डगर ये क्या जाने, 
रस्ते पे कहीं एक मंजिल भी है.

सरिता की धारा को हमने, 
क्या यूँ ही बहते देखा है.
जल की धारा क्या जाने है, 
इस रस्ते पे कहीं मंजिल भी है.

अनजान निशाना को आखिर, 
कब तक यूँ ही साधोगे.
तीर बेचारा क्या जाने,
कहीं तुम्हारी मंजिल भी है.

यौवन

जितने यौवन हो गये तुमसे, 
उतने यौवन बीते होंगे.
हर यौवन मे सावन आये, 
उतने यौवन मीठे होंगे.

अथक प्रशंसा ना हो मुझसे, 
फिर भी सावन मीठा होगा.
तेरा यौवन जैसे सावन, 
श्रृंगार सामने झूठा होगा.

तेरे यौवन की तरुणाई, 
जैसे सावन घिर घिर आई. 
यौवन को तुम पल्लवित करना, 
वरना साजन रूठा होगा.

Wednesday, September 17, 2025

सफलता

परिस्थितियों की धूप-छाँव में,
राहें बनतीं अपने आप में।
सफलता कोई संयोग नहीं,
यह विज्ञान है—नियम यही।
बीज मिले तो अंकुर फूटे,
मेहनत से ही सपने छूटे।
जब घटक सब जुड़ जाते हैं,
निश्चित फल तब आ जाते हैं।
संघर्षों से मत डर जाना,
हर नियम को अपनाना।
परिस्थितियाँ जब साथ मिलेंगी,
सफलता निश्चित हाथ आएगी।

Tuesday, September 16, 2025

चिड़ियों से बात करता हूँ।

जंगल के किनारे एक गाँव है, 
नदी है पेड़ है पहाड़ है। 
पेड़ पर पक्षियाँ हैं, 
पक्षियों की चहचहाहट है। 
कभी कभी मै चिड़ियों से बात करता हूँ। 

घर पर गाय है बैल है भैंस है
घर की रखवाली के लिए एक कूत्ता है
सभी मेरे से दोस्त हैं।  
पास ही एक जंगल है
साल है साजा है डुमर है। 
और भी ना जानें कितने अनगिनत पेंड़ है
मैं पेड़ों की पूजा करता हूँ। 
जो मेरे गाँव की हर ज़रूरत पूरी करते है। 
गाँव मे एक तालाब है
हम सभी साथ में तालाब जाते हैं। 

इन्ही से है मेरा जीवन
इनके बिना मैं कुछ भी नहीं।। 
धरती, नदियाँ, पेड़ मेरे पुराने साथी हैं
हम सबका रिश्ता है अटूट है, अमर है
जल जंगल जमीन, जन और जानवर।
इन पाँच चीजों मे बसती मेरी आत्मा है।। 

संवेदना

पशु पक्षियों की आवाज़ें 
उनके संचार और व्यवहार का हिस्सा हैं, 
पेड़ पौधों की बातें अक्सर 
हमें सुनाई देतें हैं। 
वे अपनी भाषा में हमसे बात करते हैं
हम सभी पहले कभी साथ रहते थे। 
साथ साथ बड़े होते थे। 
वो मुझसे प्रेम करते थे। 
मैं उनके लिये कुछ भी करने के लिए तैयार था। 
आज हम अलग अलग हो गये हैं। 
मैं उनके साथ नहीं रहता। 
वो मुझसे प्रेम भी नहीं करते। 
संवेदना तो बहुत है पर
आज मैं उनके लिए कुछ नहीं कर सकता। 
बस जो कर सकते हैं उनको
 मैं देख सुन व पढ़ ही सकता हूँ
इन अखबारों के माध्यम से। 

गोटुल

गोटुल
मानव जीवन की पहली पाठशाला हूँ
 मैं गोटुल हूँ
मानव मूल्यों, संस्कारों तथा आचार विचार व
व्यवहार को गढ़ने का काम किया है। 
मैंने भारतीय ज्ञान परंपरा को विकसित 
करने का काम किया है।
लोकसंगीत को सुरों में पिरोया है। 
लोकगीतों को विस्तार दिया है।
लोकनाट्य, लोककला जैसे विधा को 
एक आयाम दिया है। 
आज दुनियाँ में सुर संगीत की पहली पाठशाला रही हूँ मैं। 
दुनिया के ज्ञान परंपरा की संवाहक हूँ मैं। 
आदिम युग से मशीन युग तक ले सफर को देखा है मैंने। 
आदिम मानव से रोबोट मानव तक यात्रा का साक्षी होने का गौरव मुझे प्राप्त है। 
मेरी पाठ शाला में मानव मन मे संवेदना पहली जरूरत होती थी। 
पर आज के रोबोट मानव मे इंटलीजेंसी पहली जरूरत हो गई है। 

Sunday, September 14, 2025

मैं बातें नहीं करता।

पशु पक्षियों की आवाज़ें 
उनके संचार और व्यवहार का हिस्सा हैं, 
पेड़ पौधों की बातें अक्सर 
हमें सुनाई देतें हैं। 
वे अपनी भाषा में हमसे बात करते हैं
हम सभी पहले कभी साथ रहते थे। 
साथ साथ बड़े होते थे। 
वो मुझसे प्रेम करते थे। 
मैं उनके लिये कुछ भी करने के लिए तैयार था। 
आज हम अलग अलग हो गये हैं। 
मैं उनके साथ नहीं रहता। 
वो मुझसे प्रेम भी नहीं करते। 
संवेदना तो बहुत है पर
आज मैं उनके लिए कुछ नहीं कर सकता। 
बस जो कर सकते हैं उनको
 मैं देख सुन व पढ़ ही सकता हूँ
इन अखबारों के माध्यम से।